Chhindwara Cough Syrup Case: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया इलाके में कोल्ड्रिफ नामक कफ सिरप पीने के बाद अब तक 24 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है।
हैरान करने वाली बात यह है कि जिला प्रशासन को इस जानलेवा सिरप के खतरे के बारे में 15 सितंबर को ही चेतावनी मिल गई थी, लेकिन उसने इस पर रोक लगाने में 15 दिन का समय लगा दिया।
इस देरी ने कई मासूम बच्चों की जिंदगी छीन ली।
एक अखबार की एक विस्तृत जांच ने इस पूरे मामले की पोल खोलकर रख दी है…
नागपुर के डॉक्टर ने दिया था पहला अलर्ट: “बच्चों की किडनी फेल होना सामान्य बात नहीं”
इस मामले की जड़ नागपुर के कलर्स अस्पताल तक जाती है।
अस्पताल के संचालक डॉ. राजेश अग्रवाल वो पहले शख्स हैं जिन्होंने इस संभावित खतरे को भांपा।
डॉ. अग्रवाल ने अखबार को बताया कि उनके अस्पताल में एक बच्चा गंभीर हालत में भर्ती हुआ था, जिसकी किडनी अचानक फेल हो गई थी और उसे वेंटिलेटर पर रखना पड़ा।
“मैं चौंक गया,” डॉ. अग्रवाल कहते हैं, “क्योंकि बच्चों की किडनी का अचानक फेल होना कोई सामान्य बात नहीं है। इसके पीछे कोई गंभीर वजह होनी चाहिए।”
उन्होंने मामले की पड़ताल शुरू की और बच्चे के माता-पिता से पूछताछ की।

पता चला कि बच्चे को बुखार आया था, डॉक्टर के पास ले जाने पर वो ठीक हो गया, लेकिन फिर अचानक उसकी हालत बिगड़ गई।
जब उन्होंने यह सुना कि परासिया के और भी बच्चों को ऐसी ही समस्या हो रही है, तो उन्हें संदेह हुआ कि कोई सामान्य कारण है।
“सभी बच्चों के लक्षण एक जैसे थे,” डॉ. अग्रवाल ने समझाया, “मुझे लगा कि यह किसी दवा का दुष्प्रभाव हो सकता है।” इसी संदेह के आधार पर उन्होंने 16 सितंबर को परासिया के पार्षद अनुज पाटकर को फोन करके अलर्ट किया।
पार्षद और पत्रकार की मुहिम लेकिन प्रशासन ने नहीं दिया ध्यान
पार्षद अनुज पाटकर ने डॉ. अग्रवाल से मिले इस अहम संदेश को तुरंत जिला प्रशासन तक पहुंचाया।
उन्होंने परासिया के एसडीएम शुभम कुमार यादव और तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह को फोन करके पूरी जानकारी दी।
“एसडीएम यादव ने कहा कि वो देखते हैं,” पाटकर बताते हैं, “शाम को उन्होंने बताया कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मैसेज करवा दिया गया है।” लेकिन, इसके बाद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

वहीं, स्थानीय पत्रकार प्रशांत शेल्के, जो ढाई दशक से परासिया में काम कर रहे हैं, ने भी इस मामले को उठाया।
18 सितंबर को उन्होंने एक स्थानीय अखबार और सोशल मीडिया पर रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें साफ लिखा था कि बच्चों की किडनी फेल होने और मौतों की वजह परासिया में दी जा रही कोई दवा हो सकती है।
उनकी रिपोर्ट में नागपुर के डॉक्टरों और स्थानीय चिकित्सकों के बीच हुई दवा के दुष्प्रभावों को लेकर चर्चा का भी जिक्र था।
15 दिन की देरी के बाद लगा बैन, तब तक कई मौतें
डॉक्टर, पार्षद और पत्रकार द्वारा चेतावनी दिए जाने के बावजूद, जिला प्रशासन ने कोल्ड्रिफ सिरप पर रोक लगाने के लिए 30 सितंबर तक का इंतजार किया।
यह वह दिन था जब आखिरकार इस जानलेवा दवा पर बैन लगाया गया।
इस बीच, 15 सितंबर से 30 सितंबर तक के 15 दिनों के अंदर, कई बच्चों ने अपनी जान गंवा दी।
अगर प्रशासन नागपुर से मिले अलर्ट को गंभीरता से लेता और तत्काल कार्रवाई करता, तो इनमें से अधिकांश मौतों को टाला जा सकता था।

नागपुर मेडिकल कॉलेज की जांच ने बढ़ाया शक
नागपुर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने गोपनीयता बनाए रखते हुए अखबार को बताया कि छिंदवाड़ा से आए सभी बच्चों में एक जैसे लक्षण थे।
सभी को सर्दी-खांसी-बुखार हुआ था और उनके मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन में कोल्ड्रिफ सिरप एक सामान्य दवा थी।
इसकी पुष्टि के लिए बच्चों की किडनी की बायोप्सी जांच की गई, जिसमें ‘एक्यूट ट्यूबलर इंजरी’ पाई गई।

मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, यह स्थिति डाइएथिलीन ग्लाइकॉल नामक जहरीले तत्व के दूषित होने से होती है, जो किडनी के लिए घातक साबित होता है।
इस तथ्य ने कोल्ड्रिफ सिरप और बच्चों की मौत के बीच सीधा संबंध स्थापित कर दिया।
गिरफ्तार हुआ कंपनी का डायरेक्टर
इस मामले में एसआईटी ने कोल्ड्रिफ सिरप बनाने वाली कंपनी ‘श्रीसन फार्मा’ के डायरेक्टर गोविंदन रंगनाथन को चेन्नई से गिरफ्तार कर लिया है।
उन पर 20 हजार रुपए का इनाम था और वह पत्नी के साथ फरार थे।
एसआईटी ने कंपनी के दस्तावेज और प्रोडक्शन रिकॉर्ड भी जब्त किए हैं।

एमपी के मंत्री ने तमिलनाडु सरकार पर मढ़ा दोष
वहीं, मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने इस पूरी घटना का दोष तमिलनाडु सरकार पर मढ़ दिया है।
उन्होंने कहा कि दवा फैक्ट्री को लाइसेंस देने और उसकी गुणवत्ता की जांच का जिम्मा राज्य सरकार का होता है।
उनके मुताबिक, तमिलनाडु सरकार ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई।

मुख्यमंत्री नागपुर पहुंचे, बच्चों का हाल जाना
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज नागपुर पहुंचे।
सीएम ने वहां के अस्पतालों में भर्ती चारों बच्चों का हाल जाना। उनके परिजन से बात की।
इनमें से गार्विक पवार नागपुर मेडिकल कॉलेज में, अंबिका विश्वकर्मा न्यू हेल्थ सिटी हॉस्पिटल जबकि कुणाल यदुवंशी और हर्ष यदुवंशी नागपुर एम्स में इलाज करा रहे हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अमानक कफ सिरप प्रकरण में महाराष्ट्र के नागपुर में अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती मध्यप्रदेश के बच्चों से मिलकर उनका हाल जाना। उन्होंने उपचाररत बच्चों के परिजनों से भेंटकर सभी बच्चों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की और आश्वस्त किया कि मध्यप्रदेश सरकार इस… pic.twitter.com/MuzMxJTSje
— Chief Minister, MP (@CMMadhyaPradesh) October 9, 2025
छिंदवाड़ा की यह घटना प्रशासनिक लापरवाही का एक चौंकाने वाला उदाहरण है।
समय रहते मिली चेतावनियों पर फौरन कार्रवाई न होने का खामियाजा निर्दोष बच्चों ने अपनी जान देकर चुकाया।
अब जबकि दोषी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई है, सवाल यह उठता है कि जिन अधिकारियों की लापरवाही से यह त्रासदी हुई, उनकी जवाबदेही कब तय होगी?


