MP HC On POCSO Act: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों को गंभीरता से लेते हुए स्वतः संज्ञान लिया है।
चीफ जस्टिस की डिवीजन बैंच ने राज्य और केन्द्र सरकार के खिलाफ नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट ने सरकारों से यह स्पष्ट करने को कहा है कि POCSO एक्ट के प्रचार-प्रसार और इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
POCSO एक्ट के प्रचार-प्रसार पर HC ने मांगा जवाब
चीफ जस्टिस ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकांश मामलों में हमने पाया कि पीड़ित बच्चों की उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच है और अपराधियों की उम्र 19 से 22 वर्ष के बीच है।
चीफ जस्टिस की बैंच ने कहा कि उनकी राय में ये एक गंभीर मुद्दा है और ये देश के युवाओं के भविष्य के लिए बड़ा खतरा है।
कोर्ट ने पूछा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 43 और 44 के तहत अपराधों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं।
पॉक्सो एक्ट का निर्माण महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा साल 2012 में POCSO Act -2012 के नाम से किया गया था।
18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के साथ किसी भी प्रकार से सैक्सुअल शोषण करने वाले व्यक्ति पर इस एक्ट के तहत कार्यवाही की जाती है।
इस कानून का निर्माण नाबालिग बच्चों के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, पोर्नोग्राफी और छेड़छाड़ के मामलों को रोकने के लिए किया गया था।
इस कानून के द्वारा अलग-अलग अपराधों के लिए अलग सजा का प्रावधान हैं।
14,531 लंबित मामलों पर HC ने जताई चिंता
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर बेंचों में बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित 14 हजार 531 मामलों के लंबित होने पर गहरी चिंता जताई।
चीफ जस्टिस ने कहा कि इन मामलों में देरी पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों के लिए न्याय मिलने में बाधा बन सकती है।
कोर्ट ने संबंधित बेंचों को भी निर्देश दिया है कि लंबित अपीलों की सुनवाई प्राथमिकता से की जाए।
हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाए गए पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) की जानकारी आम जनता तक पहुंचाने में सरकारें कितनी सक्रिय हैं।
कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि स्कूलों, समुदायों और सरकारी संस्थानों में इस कानून की जागरूकता को बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं।
HC ने मांगा केंद्र और राज्य सरकार से विस्तृत जवाब
हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई चार हफ्तों बाद निर्धारित की है।
वहीं हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र और राज्य सरकार से इन्हीं चार हफ्तों में विस्तृत जवाब मांगा है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राज्य बाल अधिकार आयोग, महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव, मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव और मध्यप्रदेश के डीजीपी को भी जवाब देने के निर्देश दिए गए हैं।
कोर्ट का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और सरकारों को इस दिशा में जवाबदेही तय करनी होगी।
यह कदम बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर न्यायपालिका की गंभीरता और जिम्मेदारी को दर्शाता है।
हाईकोर्ट का यह सख्त रुख कि वो इस गंभीर मुद्दे को लेकर सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।