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MP हाईकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण की नई नीति पर लगाई रोक, 2016 से पहले के प्रमोशन होंगे मान्य

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Reservation in Promotion: मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण का मामला एक बार फिर से सुर्खियों में है।

जबलपुर हाईकोर्ट में मंगलवार, 16 अक्टूबर को इस मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने कई अहम फैसले सुनाए।

कोर्ट ने राज्य सरकार की उस मांग को ठुकरा दिया, जिसमें वह प्रमोशन प्रक्रिया पर लगे स्टे को हटवाना चाहती थी।

साथ ही, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि नई प्रमोशन नीति केवल 2016 के बाद होने वाले प्रमोशन पर ही लागू होगी, जबकि 2016 से पहले हुए प्रमोशन पुराने नियमों के तहत ही मान्य रहेंगे।

इस फैसले का मतलब है कि प्रदेश के हजारों कर्मचारियों को अपने प्रमोशन का इंतजार अभी और करना होगा।

कोर्ट ने क्यों दिया सरकार को झटका? स्टे हटाने से इनकार

सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार की ओर से वकीलों ने कोर्ट से अंतरिम राहत देने और डीपीसी (डिपार्टमेंटल प्रोमोशन कमेटी) की बैठक बुलाकर प्रमोशन प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति मांगी।

सरकार का तर्क था कि ग्रेड-1 और ग्रेड-2 के कई अधिकारी प्रमोशन से वंचित हैं और ऑडिट की प्रक्रिया लगभग पूरी होने के कगार पर है। हालांकि, हाईकोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ।

कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब तक यह पता नहीं चल जाता कि विभिन्न विभागों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग का प्रतिनिधित्व कितना है, तब तक प्रमोशन पर रोक जारी रहेगी।

कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करने के बजाय अंतिम फैसला सुनाया जाएगा।

इसके साथ ही, अदालत ने सरकार को यह विकल्प दिया कि यदि वह चाहे तो क्वांटिफायबल डेटा (मात्रात्मक आंकड़े) एक सीलबंद लिफाफे में पेश कर सकती है।

मामले की अगली सुनवाई 28 और 29 नवंबर को तय की गई है।

क्या है प्रमोशन के नए फॉर्मूले में?

मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में प्रमोशन में आरक्षण के लिए एक नया फॉर्मूला पेश किया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। आइए समझते हैं कि यह नया फॉर्मूला कैसा है:

रिक्त पदों का बंटवारा:

सबसे पहले, सभी रिक्त पदों को अलग-अलग वर्गों में बांटा जाएगा। कुल रिक्त पदों में से SC वर्ग के लिए 16% और ST वर्ग के लिए 20% पद आरक्षित रहेंगे, जबकि बाकी पद अनारक्षित रहेंगे। सबसे पहले SC और ST वर्ग के लिए आरक्षित इन पदों पर भर्ती की जाएगी। इसके बाद, बचे हुए सभी पदों पर सभी वर्गों (आरक्षित और अनारक्षित) के दावेदारों को मौका मिलेगा।

मेरिट और सीनियरिटी का आधार:

प्रमोशन की लिस्ट दो तरह से बनाई जाएगी। क्लास-1 के उच्च पदों (जैसे डिप्टी कलेक्टर) के लिए लिस्ट मेरिट और वरिष्ठता (सीनियरिटी) दोनों के आधार पर तैयार होगी। वहीं, क्लास-2 और उससे निचले पदों के लिए केवल वरिष्ठता (सीनियरिटी) के आधार पर ही लिस्ट बनेगी।

ACR (गोपनीय रिपोर्ट) की अनिवार्यता:

प्रमोशन पाने के लिए कर्मचारी की ACR (एनुअल कंफिडेंशियल रिपोर्ट) का बेहतर होना जरूरी है। नए नियमों के मुताबिक, कर्मचारी के पास या तो पिछले 2 साल में कम से कम एक ‘आउटस्टैंडिंग’ रिपोर्ट होनी चाहिए, या फिर पिछले 7 साल में कम से कम 4 ‘A+’ ग्रेड वाली रिपोर्ट्स होनी चाहिए। अगर किसी कर्मचारी की ACR गलती से नहीं बनी है, तो उसका प्रमोशन नहीं होगा।

आरक्षित वर्ग के वकीलों ने उठाए सवाल, कोर्ट ने दिया यह जवाब

सुनवाई के दौरान, SC और ST वर्ग की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं ने हस्तक्षेप करते हुए याचिकाकर्ताओं पर सवाल उठाया।

उनका तर्क था कि जो लोग कोर्ट में याचिका दायर कर रहे हैं (मुख्यतः अनारक्षित वर्ग), वे इस नई आरक्षण नीति से प्रभावित ही नहीं हो रहे हैं, इसलिए उनकी याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है।

इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट जवाब दिया कि अगर अनारक्षित वर्ग को पहले 60% प्रमोशन के अवसर मिल रहे थे और नई आरक्षण नीति लागू होने के बाद उनके अवसर घटकर 55% हो जाते हैं, तो वे स्पष्ट रूप से प्रभावित होते हैं।

इसलिए, उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का पूरा अधिकार है।

कोर्ट ने आरक्षित वर्ग के अधिवक्ताओं के इस हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया।

9 साल से क्यों अटके हैं प्रमोशन?

मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण का यह विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें 9 साल पुरानी हैं।

  • साल 2016 में, जबलपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की तत्कालीन प्रमोशन आरक्षण नीति को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
  • इस फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, जहां से यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश आए थे।
  • इसका मतलब यह हुआ कि जब तक मामला कोर्ट में है, तब तक पुरानी व्यवस्था ही कायम रहेगी।
  • लगभग एक दशक से प्रमोशन ठप्प होने के बाद, राज्य सरकार ने इसी साल 2025 में एक नई प्रमोशन नीति बनाई।
  • लेकिन SAPAKS जैसे संगठनों और कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस नई नीति को भी हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।
  • उनका आरोप है कि पुरानी नीति पर अदालत में सुनवाई जारी है, ऐसे में नई नीति लाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना है।
  • इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकार ने मौखिक रूप से वादा किया था कि वह नई नीति के तहत फिलहाल कोई प्रमोशन नहीं करेगी, जिसके चलते यह नीति अभी तक लागू नहीं हो सकी है।

अब सबकी निगाहें 28-29 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जब हाईकोर्ट इस जटिल मसले पर अपना अंतिम निर्णय सुनाएगा और लाखों कर्मचारियों के भविष्य का रास्ता साफ होगा।

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