Breaking marriage promise is not rape: मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के अजयगढ़ में एक न्यायिक अधिकारी (प्रथम श्रेणी के जज) मनोज सोनी के खिलाफ रेप और दहेज उत्पीड़न का मामला सामने आया था।
एक सरकारी कर्मचारी महिला ने उन पर शादी का वादा तोड़ने, बलात्कार और शारीरिक शोषण का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी।
हालांकि, जबलपुर हाईकोर्ट ने इस मामले की गहन जांच के बाद एफआईआर को रद्द कर दिया है और पीड़िता के आरोपों पर सवाल उठाए हैं।
10 साल पहले भेजा था रिश्ता
पीड़िता के अनुसार, मनोज सोनी ने 2015 में उनके परिवार के माध्यम से शादी का प्रस्ताव भेजा था।
2016 से उन्होंने व्हाट्सएप और फोन पर बातचीत शुरू की।
बाद में, उन्होंने पीड़िता को पन्ना के जुगल किशोर मंदिर में बुलाया और शादी का वादा किया।
इसके अलावा, रीवा में एक शिव मंदिर में रिश्तेदारों की मौजूदगी में माथे पर सिंदूर लगाकर शादी की पुष्टि भी की गई।
शादी से इंकार करने पर की शिकायत
पीड़िता का आरोप था कि 14 फरवरी, 2018 को मनोज सोनी ने उन्हें अपने सरकारी आवास पर बुलाकर सगाई की अंगूठी पहनाई और मंगेतर घोषित किया।
लेकिन 19 फरवरी को ही उन्होंने जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में लगातार शोषण किया।
जब जज ने शादी से मना कर दिया, तो पीड़िता ने पुलिस में शिकायत की और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जज का पक्ष – आरोप झूठे, इस वजह से तोड़ी शादी
जज मनोज सोनी ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा कि पीड़िता के परिवार ने शादी का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया।
बाद में पता चला कि पीड़िता पर रिश्वतखोरी का आपराधिक मामला लंबित है, जिसे छुपाया गया था।
इस वजह से उन्होंने शादी से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट का फैसला – शादी का वादा टूटना रेप नहीं
हाईकोर्ट ने पीड़िता के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए विस्तृत जांच की।
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता एक शिक्षित और सरकारी नौकरी करने वाली महिला हैं, जो दो साल तक सहमति से संबंध बनाती रहीं।
शादी का वादा टूटना रेप नहीं है, जब तक यह साबित न हो कि वादा शुरू से ही झूठा था।
दहेज के आरोपों के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले।
पीड़िता पर लंबित आपराधिक मामले ने उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए।
अदालत ने कहा कि पीड़िता शादी के इनकार के बाद जज को परेशान कर रही थी और उसके आरोपों में दम नहीं है
इसके बाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी।
फैसले का महत्व
यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि:
निर्दोषों की सुरक्षा: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि झूठे आरोपों से बचाना भी न्याय का हिस्सा है।
प्रेम संबंधों और कानूनी दुरुपयोग पर सवाल: अक्सर टूटे रिश्तों के बाद रेप के आरोप लगाए जाते हैं, जिसकी सच्चाई जांचना जरूरी है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता: एक न्यायाधीश के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की पड़ताल करके न्यायिक प्रक्रिया की मजबूती दिखाई गई।
आगे की कार्रवाई
पीड़िता अब सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है। वहीं, जज मनोज सोनी को कोर्ट से बड़ी राहत मिली है।
यह मामला समाज और कानूनी हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है।