MP Promotion Reservation: मध्यप्रदेश सरकार की नई प्रमोशन नीति 2025 को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
जबलपुर हाईकोर्ट ने सोमवार को इस नीति पर रोक लगाते हुए कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि यह नीति संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप है, तब तक इसे लागू नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने यह आदेश सपाक्स संघ (SAPAKS Sangh) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
हाईकोर्ट ने सरकार से पूछे सवाल
हाईकोर्ट की डिवीजनल बेंच (एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव द्विवेदी और जस्टिस विनय सराफ) ने सरकार से कड़े सवाल पूछे:
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“जब सुप्रीम कोर्ट ने 2002 की नीति पर रोक लगा रखी है, तो नई नीति कैसे बनाई गई?”
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“क्या सरकार के पास यह साबित करने के लिए डेटा है कि SC/ST वर्ग का प्रतिनिधित्व अभी भी कम है?”
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“क्या 2002 और 2025 की नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया?”
सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने कहा कि प्रमोशन न होने से कर्मचारियों और प्रशासनिक व्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है, लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना।
जून में लागू हुई थी नई प्रमोशन नीति
मध्यप्रदेश सरकार ने जून 2025 में एक नई प्रमोशन नीति लागू की, जिसमें SC/ST और OBC कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था।
हालांकि, अनारक्षित श्रेणी के कर्मचारियों ने इस नीति को कोर्ट में चुनौती दी।
उनका तर्क था कि यह नीति सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के खिलाफ है और बिना ठोस आंकड़ों (Quantifiable Data) के आरक्षण देना गलत है।
सुप्रीम कोर्ट के 6 मापदंड क्या कहते हैं?
हाईकोर्ट ने जरनैल सिंह बनाम भारत सरकार और एम. नागराज केस के फैसलों का हवाला देते हुए बताया कि प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए इन शर्तों को पूरा करना जरूरी है:
- SC/ST वर्ग का प्रतिनिधित्व कम होने का ठोस डेटा होना चाहिए।
- यह डेटा विभाग, पद और स्तर के अनुसार होना चाहिए।
- सिर्फ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
- सरकार को यह समीक्षा करनी होगी कि क्या अभी भी प्रतिनिधित्व कम है।
- भविष्य के लिए लागू की गई नीति अवैध होगी।
- सैंपल डेटा के आधार पर निर्णय नहीं लिए जा सकते।
नई प्रमोशन नीति पर स्पष्टीकरण नहीं तो पदोन्नति पर रोक
सरकार की नई प्रमोशन नीति को लेकर कोर्ट ने कहा है कि जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि 2025 की नई नीति उसके पुराने आदेशों के अनुरूप है, तब तक प्रदेश सरकार किसी भी कर्मचारी को पदोन्नति नहीं दे सकती।
हालांकि, कोर्ट ने लिखित में कोई आदेश नहीं दिया, लेकिन मौखिक तौर पर सरकार से इसका पालन करने की उम्मीद जताई है।
9 साल से रुके हैं प्रमोशन, बिना प्रमोशन के रिटायर हुए कर्मचारी
प्रदेश में पदोन्नति पर लगी रोक का असर लाखों कर्मचारियों पर पड़ा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले 9 सालों में करीब 1 लाख से ज्यादा कर्मचारी और अधिकारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं।
हालांकि, सरकार ने उन्हें “क्रमोन्नति” और “समयमान वेतनमान” के जरिए प्रमोशन जैसा वेतन देना शुरू कर दिया है, लेकिन उनके पद और कार्य वही पुराने बने हुए हैं।
2025 की नई प्रमोशन नीति क्या कहती है?
जून 2025 में राज्य सरकार ने एक नई प्रमोशन नीति लागू की, जिसमें आरक्षण का प्रावधान शामिल किया गया। इसके तहत:
पदों का आरक्षण:
- रिक्त पदों को SC/ST (16%-20%) और अनारक्षित श्रेणियों में बांटा जाएगा।
- पहले SC/ST वर्ग को पद आवंटित किए जाएंगे, उसके बाद बाकी पदों पर सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को मौका दिया जाएगा।
मेरिट और सीनियरिटी के आधार पर चयन:
- क्लास-1 अधिकारियों (जैसे DPT क्लर्क) की लिस्ट मेरिट और सीनियरिटी दोनों के आधार पर बनेगी।
- क्लास-2 और निचले पदों के लिए सिर्फ सीनियरिटी को आधार बनाया जाएगा।
ACR (गोपनीय रिपोर्ट) अनिवार्य:
- प्रमोशन के लिए कर्मचारी की ACR रिपोर्ट उत्कृष्ट होनी चाहिए।
- पिछले 2 साल में कम से कम एक बार “आउटस्टैंडिंग” या पिछले 7 साल में 4 बार “A+” ग्रेड मिला होना चाहिए।
- अगर किसी कर्मचारी की ACR नहीं बनी है, तो उसे प्रमोशन नहीं मिलेगा।
क्यों उठ रहे हैं विवाद?
सरकार की इस नई नीति को “सपाक्स संघ” नामक संगठन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि प्रमोशन में आरक्षण संविधान के खिलाफ है।
2002 की नीति को हाईकोर्ट ने पहले ही खारिज कर दिया था, लेकिन सरकार ने फिर से वही प्रावधान लागू किए हैं।
इससे सामान्य वर्ग के कर्मचारियों का करियर प्रभावित हो रहा है।
2016 से क्यों रुके हैं प्रमोशन?
- 2002 में तत्कालीन सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण लागू किया, जिसके बाद SC/ST कर्मचारियों को तो पदोन्नति मिलती गई, लेकिन सामान्य वर्ग के लोग पीछे रह गए।
- इसके विरोध में कर्मचारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- 30 अप्रैल 2016 को मप्र हाईकोर्ट ने 2002 की नीति को रद्द कर दिया।
- सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया गया। तब से प्रमोशन पर रोक लगी हुई है।
15 जुलाई को अगली सुनवाई
यह मामला अब एक गंभीर संवैधानिक बहस का रूप ले चुका है।
15 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई इस मामले में अहम होगी।
अगर कोर्ट सरकार के तर्कों से संतुष्ट नहीं होता, तो नई नीति को भी रद्द किया जा सकता है।
वहीं, अगर सरकार अपनी नीति को सही ठहराने में कामयाब हो जाती है, तो 9 साल से रुके प्रमोशन प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जा सकता है।
फिलहाल, लाखों कर्मचारियों की नियति कोर्ट के फैसले पर ही निर्भर है।