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MP में SIR पर विवाद: कांग्रेस ने लगाया 50 लाख वोटर्स को हटाने का आरोप, कहा- 1 महीने में जांच कैसे संभव

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

MP SIR Voter List Dispute: मध्य प्रदेश में SIR प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग पर 40-50 लाख मतदाताओं को सूची से हटाने का आरोप लगाते हुए इसे ‘लोकतंत्र की सफाई’ करार दिया है।

वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि फर्जी मतदाताओं के हटने से कांग्रेस परेशान है।

विवाद की जड़: क्या है SIR?

चुनाव आयोग द्वारा एमपी सहित 12 राज्यों में चलाई जा रही ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (SIR) प्रक्रिया इस विवाद का केंद्र है।

आयोग का कहना है कि इसका उद्देश्य मतदाता सूचियों को और अधिक सटीक और स्वच्छ बनाना है।

हर साल जनवरी में होने वाले ‘विशेष सारांश पुनरीक्षण’ (SSR) के अलावा अचानक SIR की शुरुआत पर सवाल उठ रहे हैं।

उमंग सिंघार का आरोप है कि SIR का मतलब ‘सिलेक्टिव इंटेंसिव रिमूवल’ है।

उनका कहना है कि इस प्रक्रिया के तहत विशेष रूप से आदिवासी, दलित, OBC और अल्पसंख्यक समुदायों के मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, जो भाजपा की एक ‘सुनियोजित साजिश’ है।

कांग्रेस के आरोप 

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अपनी दलीलों को कई बिंदुओं पर रखा:

  1. 1 महीने में जांच कैसे संभव: सिंघार ने सवाल उठाया कि मात्र एक महीने (4 नवंबर से 4 दिसंबर) में राज्य के 5.65 करोड़ मतदाताओं की गहन जांच करना और उनके दस्तावेजों का सत्यापन करना असंभव है। उनका कहना है कि इस जल्दबाजी में गलतियां होंगी और पारदर्शिता नहीं रहेगी।

  2. प्रवासी मजदूरों पर संकट: उन्होंने कहा कि एमपी के लगभग 50 लाख लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में रहते हैं। बिहार के उदाहरण का हवाला देते हुए उन्होंने आशंका जताई कि जब बूथ लेवल अधिकारी (BLO) इन मजदूरों को उनके घर पर नहीं पाएंगे, तो उनके नाम डिलीट हो जाएँगे। ऐसे में क्या उन्हें सिर्फ वोटर लिस्ट में बने रहने के लिए वापस एमपी आना पड़ेगा?

  3. आदिवासी मतदाताओं को निशाना: सिंघार ने आरोप लगाया कि आदिवासी इलाकों में इंटरनेट और दस्तावेजों तक पहुंच की कमी है, जिसका फायदा उठाकर उनके नाम काटे जा रहे हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि लगभग 3 लाख आदिवासियों के वनाधिकार पट्टे पहले ही रद्द कर दिए गए हैं, जिससे 12-18 लाख वोट कटने का खतरा पैदा हो गया है।

  4. 2023 चुनाव में ‘वोट चोरी’ का आरोप: सिंघार ने 2023 के विधानसभा चुनाव का हवाला देते हुए दावा किया कि चुनाव से ठीक पहले 16 लाख ‘फर्जी’ वोटर जोड़े गए थे, जिससे भाजपा को 40 सीटों पर फायदा हुआ और कांग्रेस के कई उम्मीदवार कम वोटों से हार गए।

  5. चुनाव आयोग पर अविश्वास: सिंघार ने कहा कि चुनाव आयोग ने ही निर्देश दिया है कि अंतिम सूची के बाद जोड़े गए नामों की जानकारी किसी को नहीं दी जाएगी। उनका सवाल है, “जब आयोग ही गड़बड़ी कर रहा है, तो हम SIR पर कैसे विश्वास करें?”

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भाजपा का पलटवार: ‘फर्जी वोटर हटने से कांग्रेस की पोल खुलेगी’

कांग्रेस के आरोपों पर भाजपा ने स्पष्ट और तीखा जवाब दिया है। भाजपा प्रवक्ता भगवानदास सबनानी ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ इसलिए परेशान है क्योंकि फर्जी मतदाताओं की सूची में सफाई हो रही है।

भाजपा के तर्क इस प्रकार हैं:

  • फर्जी नाम हटाना चुनाव आयोग का नियमित और जरूरी काम है ताकि चुनावों की शुचिता बनी रहे।
  • सभी राजनीतिक दलों को हटाए गए नामों की सूची दी जाएगी और उनके पास दावा-आपत्ति दर्ज कराने का पूरा मौका होगा।
  • कांग्रेस का षड्यंत्र अब विफल हो रहा है, इसलिए वह बेबस होकर झूठे आरोप लगा रही है।
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लोकतंत्र के लिए चुनौती

यह विवाद लोकतंत्र की एक बुनियादी इकाई मतदाता सूची पर सवाल खड़ा करता है।

एक ओर, मतदाता सूचियों से फर्जी नाम हटाना निश्चित रूप से जरूरी है।

वहीं, दूसरी ओर, यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि इस प्रक्रिया में कोई वैध मतदाता सूची से बाहर न हो जाए, खासकर वे जो समाज के कमजोर तबके से आते हैं।

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