Nepal Interim Government: भारत का पड़ोसी देश नेपाल इन दिनों एक गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है।
युवाओं (जेन-जेड) के बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के चलते प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा।
इसी बीच अंतरिम सरकार के गठन पर चर्चा तेज हो गई है। |
इस पद के लिए देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं सुशीला कार्की (Sushila Karki) का नाम सबसे आगे है, जिन्हें युवा आंदोलन और काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह का समर्थन हासिल है।
लेकिन दोपहर एक बजे तक ‘लाइट मैन’ कहे जाने वाले कुलमान घीसिंग का नाम भी सामने आ गया है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल सड़कों पर उतरे युवाओं का समर्थन एक अंतरिम प्रधानमंत्री को सत्ता तक पहुंचाने के लिए काफी है?
जवाब है – नहीं।
नेपाल के संविधान में अंतरिम सरकार बनाने की एक स्पष्ट और जटिल प्रक्रिया है, जहां सिर्फ जनआक्रोश नहीं, बल्कि राजनीतिक सहमति और राष्ट्रपति की मंजूरी सबसे महत्वपूर्ण है।
कौन हैं सुशीला कार्की और क्यों मिल रहा है समर्थन?
- सुशीला कार्की नेपाल की न्यायपालिका में एक प्रतिष्ठित और ईमानदार छवि वाली शख्सियत हैं।
- वह वर्ष 2016 में देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं।
- कार्यकाल को निष्पक्ष और साहसिक फैसलों के लिए जाना जाता है।
- राजनीतिक उथल-पुथल के इस दौर में, जनता एक ऐसे चेहरे को तलाश कर रही है जो भ्रष्टाचार और पुरानी राजनीति से दूर हो।
- कार्की का न्यायिक अनुभव और ‘साफ’ छवि उन्हें इस पद के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बनाती है।
- उन्हें सबसे बड़ा समर्थन नेपाल के Gen-Z आंदोलन से मिला है।
माननीय सुशीला कार्कीजी रंगमंच, नारी सशक्तिकरण र कलाको समर्थक हुनुहुन्छ । अन्याय अत्याचार विरुद्ध बोल्ने वहाँ हाम्रो प्रेरणाको श्रोत हुनुहुन्छ । हामी वहाँको नेतृत्वको बाटो कुरिरहेका छौं । @sarwanam मा “अर्को कुरुक्षेत्र” नाटकको पहिलो मंचन पछिको दृश्य । #Sushilakarki #nepal pic.twitter.com/P2UFqz2Zv1
— Usha Rajak (@UshaRajak) September 10, 2025
इस आंदोलन ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध की अगुवाई की।
आंदोलनकारियों नेपाल में काठमांडू के युवा और लोकप्रिय मेयर बालेन्द्र शाह को अपना नेता चुना था, लेकिन बाद में शाह ने खुद अपना समर्थन वापस लेते हुए सुशीला कार्की के नाम का समर्थन किया।
इससे कार्की की दावेदारी को और बल मिला।
Nepal | Kathmandu Mayor Balen Shah tweets, “My request to dear Gen-Z and all Nepalis: The country is currently in an unprecedented situation. You are now taking steps towards a golden future. Please do not panic at this time; be patient. Now the country is going to get an interim… pic.twitter.com/xwA3af8aI4
— ANI (@ANI) September 11, 2025
कौन हैं कुलमान घीसिंग
बिजली संकट के समय नेपाल को रोशनी की राह दिखाने वाले कुलमान घीसिंग भी देश के प्रधानमंत्री पद के संभावित दावेदार के तौर पर चर्चा में हैं।
उन्हें नेपाल की बिजली व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए जाना जाता है।
- कुलमान घीसिंग का जन्म 25 मार्च 1970 को बेथान में हुआ था।
- उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और साल 1994 से नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (NEA) से जुड़े।
- 2016 में जब वे NEA के मैनेजिंड डायरेक्टर बने, उस समय नेपाल में भीषण बिजली संकट था और देश में 18-18 घंटे तक लोडशेडिंग (बिजली कटौती) होती थी।
- उन्होंने अपने नेतृत्व में बिजली चोरी रोकने, सिस्टम में सुधार और नए पावर प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देने जैसे सख्त कदम उठाए।
- महज दो साल के भीतर ही उन्होंने नेपाल से बिजली कटौती की समस्या लगभग पूरी तरह खत्म कर दी।

यही नहीं, उनकी अगुआई में घाटे में चल रहे NEA को पहली बार मुनाफा हुआ और नेपाल ने 2023-24 में पहली बार भारत को बिजली निर्यात भी किया।
इस उपलब्धि के कारण उन्हें ‘लाइट मैन’ या ‘उज्यालो नेपाल का अभियंता’ कहा जाने लगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश के युवा वर्ग (GEN-G) के एक समूह ने उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे किया है।
हालांकि, यह अभी सिर्फ चर्चा का विषय है और किसी भी उम्मीदवार पर आम सहमति नहीं बन पाई है।
फिर भी, एक सफल प्रशासक और इंजीनियर के तौर पर उनकी छवि उन्हें राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए एक विश्वसनीय चेहरा बना रही है।

क्या होती है अंतरिम सरकार ?
नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 100 के तहत, जब देश में सरकार का पतन हो जाता है या प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देते हैं, तो एक अंतरिम या केयरटेकर सरकार का गठन किया जा सकता है।
इस सरकार का मुख्य उद्देश्य देश के दैनिक प्रशासनिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाना और अगले आम चुनावों की तैयारी करना है।
यहां यह समझना जरूरी है कि अंतरिम सरकार के पास सीमित अधिकार होते हैं। यह सरकार:
- कोई नया कानून या नीतिगत बदलाव नहीं कर सकती।
- विदेश नीति, सेना की तैनाती, या दीर्घकालिक अंतरराष्ट्रीय समझौते जैसे बड़े फैसले नहीं ले सकती।
- इसका कार्यकाल कुछ समय का ही होता है, जो आमतौर पर कुछ हफ्तों से लेकर कुछ महीनों तक सीमित रहता है।

सुशीला कार्की के सामने क्या हैं चुनौतियां?
नेपाल के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में सुशीला कार्की के रास्ते में कई अवरोध हैं:
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राजनीतिक दलों की सहमति: अंतरिम सरकार बनाने के लिए संसद में मौजूद प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमति जरूरी है। नेपाली कांग्रेस, एमाओवादी केंद्र, और UML जैसे बड़े दल एक ऐसे उम्मीदवार को समर्थन देने में हिचकिचा सकते हैं जो उनके दल से नहीं है और जिसे सीधे जनता का समर्थन मिला है। उनके लिए यह अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता को खतरे में डालने जैसा हो सकता है।
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राष्ट्रपति की मंजूरी: राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को कार्की के नाम पर औपचारिक मंजूरी देनी होगी। राष्ट्रपति ऐसा तभी करेंगे जब उन्हें यकीन होगा कि कार्की के पास संसद में बहुमत का समर्थन है या फिर प्रमुख दल उनके नाम पर सहमत हैं।
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100 सांसदों के हस्ताक्षर: कार्की को राष्ट्रपति के सामने एक प्रस्ताव पेश करना होगा, जिस पर कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की आवश्यकता हो सकती है। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि मौजूदा संसद में दलों की सहमति के बिना इतने हस्ताक्षर जुटाना मुश्किल होगा।
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वैकल्पिक दावेदार: हालांकि बालेन शाह ने अपना समर्थन कार्की को दे दिया है, लेकिन कुलमन घीसिंग, सागर ढकाल जैसे अन्य नाम भी चर्चा में हैं। अगर राजनीतिक दल कार्की के नाम पर सहमत नहीं हो पाते, तो वे किसी समझौता उम्मीदवार की तलाश कर सकते हैं।

आगे क्या होगा?
नेपाल की स्थिति अभी भी संवेदनशील है।
सेना ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत की है और हिंसा पर काबू पाने की कोशिश की है।
ऐसे में, एक स्थिर अंतरिम सरकार का गठन देश की सबसे बड़ी जरूरत है।
#Nepal – Así marcharon los nepaleses , hasta derrocar el gobierno.pic.twitter.com/U9qTEUxJmN
— DatoWorld (@DatosAme24) September 10, 2025
अगर सुशीला कार्की राजनीतिक दलों को अपने साथ लाने में सफल होती हैं और राष्ट्रपति का आश्वासन हासिल कर लेती हैं, तो वह नेपाल की पहली अंतरिम महिला प्रधानमंत्री बन सकती हैं।
उनकी भूमिका फिर देश में शांति व्यवस्था बहाल करने और जल्द से जल्द चुनाव कराने तक सीमित होगी।
हालांकि, अगर राजनीतिक दल सहमति नहीं बना पाते, तो देश एक लंबे राजनीतिक अवरोध (Deadlock) की ओर भी बढ़ सकता है, जो नेपाल के लोकतंत्र के लिए एक नया संकट पैदा कर सकता है।