भोपाल। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की वोटिंग 1 जून को है, लेकिन 4 जून के रिजल्ट को लेकर कांग्रेस ही नहीं बीजेपी खेमे में भी नेताओं की धड़कनें बढ़ रही हैं। मध्यप्रदेश में बीजेपी सभी की सभी 29 सीटों पर विजय पताका फहराने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
भाजपा नेताओं में इस बेचैनी का कारण भी है। संभागवार देखें तो विधानसभा चुनाव 2023 में प्रदेश के बाकी अंचलों के साथ ग्वालियर-चंबल, मालवा और विंध्य ने बीजेपी को वोट दिया, लेकिन इन्हीं क्षेत्रों ने लोकसभा चुनाव में उसके लिए कड़ी चुनौती पेश कर दी है।
चार चरण के मतदान के बाद हो रही समीक्षा में पता चल रहा है कि ग्वालियर-चंबल की मुरैना सीट को तो पहले से ही चुनौतीपूर्ण माना जा रहा था, लेकिन ग्वालियर में बीजेपी प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाह के प्रति नाराजगी ने वहां मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
विंध्य की रीवा सीट पर राष्ट्रीय बनाम स्थानीय मुद्दों की लड़ाई है। कांग्रेस ने यहां स्थानीय मुद्दों को हवा देकर माहौल बनाया था। जनार्दन मिश्रा के तीसरी बार चुनाव लड़ने से भी पार्टी के भीतर नाराजगी है। सीधी सीट पर कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
मालवांचल में धार सीट पर जयस के प्रभाव क्षेत्र से बीजेपी परेशान है। रतलाम-झाबुआ सीट पर आदिवासियों को लेकर बीजेपी सांसत में है। उधर आदिवासी सीट खरगोन पर भी बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी देखी जा रही है।
7 सीटों पर बीजेपी के लिए साढ़े साती!
मुरैना को लेकर सांसत में बीजेपी
शिवमंगल सिंह तोमर, बीजेपी प्रत्याशी Vs सत्यपाल सिकरवार, कांग्रेस प्रत्याशी
ग्वालियर को लेकर सांसत में बीजेपी
भारत सिंह कुशवाह, बीजेपी प्रत्याशी Vs प्रवीण पाठक, कांग्रेस प्रत्याशी
रीवा सीट को लेकर सांसत में बीजेपी
जनार्दन मिश्रा, बीजेपी प्रत्याशी Vs नीलम मिश्रा, कांग्रेस प्रत्याशी
सीधी को लेकर सांसत में बीजेपी
राजेश मिश्रा, बीजेपी प्रत्याशी Vs कमलेश्वर पटेल, कांग्रेस प्रत्याशी
धार को लेकर सांसत में बीजेपी
सावित्री सिंह, बीजेपी प्रत्याशी VS राधेश्याम मुवेल, कांग्रेस प्रत्याशी
रतलाम-झाबुआ को लेकर सांसत में बीजेपी
अनीता चौहान, बीजेपी प्रत्याशी Vs कांतिलाल भूरिया
खरगोन को लेकर सांसत में बीजेपी
गजेंद्र सिंह पटेल, बीजेपी प्रत्याशी Vs पोरलाल खरते, कांग्रेस प्रत्याशी
7 सीटों को लेकर बीजेपी में क्यों बेचैनी?
इन 7 सीटों को लेकर बीजेपी में क्यों बेचैनी बढ़ी हुई है? ये भी आपको बताते हैं। दरअसल पार्टी के बड़े नेताओं के दौरे से जो फीडबैक आया है, उसमें ग्वालियर-चंबल में बीजेपी कार्यकर्ता और सिंधिया समर्थक दोनों ही नाराज थे। वहीं, विंध्य क्षेत्र में प्रत्याशी चयन ने स्थानीय कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया। मालवांचल में भी यही मुद्दा हावी रहा।
औसत से कम मतदान ने भी दिया टेंशन
वैसे तो बीजेपी हाईकमान ने पहले चरण में कम मतदान होने के बाद मंत्रियों को ताकीद कर दिया था, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं दिखा और चारों चरणों की वोटिंग के बाद जो आंकड़े आए उसने पूरी बीजेपी को चिंता में डाल दिया। 2019 के मुकाबले 3 से 4 फीसदी कम वोटिंग हुई है।
हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषक ये भी कहते हैं कि बीजेपी के कई पारंपरिक वोटर्स ने अति आत्मविश्वास के कारण मतदान में भाग नहीं लिया। वहीं, कुछ पुराने और वफादार कांग्रेस मतदाताओं ने भी मतदान में कम रुचि दिखाई होगी। उन्हें लगता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के कारण कांग्रेस को हासिल करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। इस कारण से भी प्रदेश में वोटिंग प्रतिशत घटा है।
इस कम वोटिंग प्रतिशत ने दोनों दलों के दिग्गज थिंकटैंक के साथ-साथ अच्छे अच्छे पॉलिटिकल पंडितों को भी भ्रमित कर दिया है। अब बस सबको इंतजार है तो 4 जून के रिजल्ट का जिसमें दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।