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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पहचान पत्र के लिए मान्य होगा आधार कार्ड, लेकिन नागरिकता के लिए नहीं

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Supreme Court Aadhaar Card: बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों के लिए चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम और स्पष्ट फैसला सुनाया है।

कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार करे।

हालांकि, कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण-पत्र नहीं माना जाएगा, बल्कि यह सिर्फ पहचान का प्रमाण है।

65 लाख मतदाताओं की समस्या का समाधान

यह फैसला बिहार के उन लाखों मतदाताओं के लिए एक राहत भरी खबर है, जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए थे और जो वोटर आईडी कार्ड बनवाने के लिए चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए 11 दस्तावेजों में से कोई भी दस्तावेज नहीं दिखा पा रहे थे।

अब उनके पास आधार कार्ड का विकल्प मौजूद होगा।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि वह अपने अधिकारियों को आधार कार्ड को पहचान के प्रमाण के तौर पर स्वीकार करने के निर्देश जारी करे।

आधार सिर्फ पहचान का प्रमाण, नागरिकता का नहीं

कोर्ट ने इस मामले में एक बहुत महत्वपूर्ण और स्पष्ट अंतर बताया।

कोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र के अलावा, 11 दस्तावेजों में से किसी भी दस्तावेज को नागरिकता का सबूत नहीं माना जा सकता। आधार भी उन्हीं में से एक है।

आधार कार्ड सिर्फ यह साबित करता है कि व्यक्ति कौन है, यह नहीं कि वह भारत का नागरिक है या नहीं।

चुनाव आयोग के अधिकारियों को यह अधिकार होगा कि वे आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की जांच कर सकें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल वास्तविक भारतीय नागरिकों को ही मतदाता सूची में शामिल किया जाए।

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चुनाव आयोग के नोटिस पर कोर्ट की नाराजगी

सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग उन बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का पालन करते हुए आधार कार्ड को स्वीकार किया था।

आयोग ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजे हैं, जिनमें कहा गया है कि उन्हें सिर्फ 11 निर्धारित दस्तावेज ही स्वीकार करने चाहिए।

इस पर कोर्ट ने चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा।

जस्टिस बागची ने पूछा कि नोटिस में सिर्फ 11 दस्तावेजों का ही जिक्र क्यों है, जबकि कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि यह सूची उदाहरणात्मक है।

कोर्ट ने आयोग से इस बारे में जवाब मांगा है और मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी।

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पारदर्शिता बनाए रखें

सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने पर भी जोर दिया।

कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि जिन 65 लाख लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, उनकी पूरी सूची अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे और साथ ही यह भी बताए कि उनका नाम क्यों हटाया गया है।

साथ ही, किसी का नाम हटाने से पहले उसे नोटिस जारी करना अनिवार्य है।

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राजनीतिक दलों को फटकार

कोर्ट ने राजनीतिक दलों को भी फटकार लगाई।

कोर्ट ने पूछा कि जब लाखों मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, तो राजनीतिक दलों के बूथ एजेंट और कार्यकर्ता मतदाताओं की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं?

उन्हें इस मामले में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक संतुलित और जन-हितैषी फैसला है।

एक तरफ इससे उन नागरिकों को मदद मिलेगी जिनके पास पहचान का कोई और दस्तावेज नहीं है, वहीं दूसरी तरफ कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि इसका इस्तेमाल नागरिकता साबित करने के लिए नहीं किया जा सकता।

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