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MP: खंडवा की सिंगाजी थर्मल पावर प्रोजेक्ट की राख बनी मुसीबत, 6 गांव के लोग हो रहे बीमार

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Prashant Sharma
Prashant Sharma
प्रशांत शर्मा, 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। शुरुआत साधना न्यूज एमपी-सीजी से हुई। इसके बाद प्रदेश टुडे के फाउंडर मेंबर रहे। प्रदेश टुडे के बाद न्यूज एक्सप्रेस एमपी-सीजी चैनल की लॉन्चिंग टीम के साथ बतौर क्राइम रिपोटर जुड़े रहे। इसके बाद लंबी पारी नेशनल और रीजनल चैनल इंडिया न्यूज में रही। कुछ दिन न्यूज वर्ल्ड चैनल में दमदार रिपोर्टिंग करने के बाद मृदुभाषी अखबार में संपादक की भमिका में रहे। फिलहाल चौथा खंभा टीम के साथ मिलकर दमदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं।
  • थर्मल पावर से उड़ रही राख से 6 गांव के लोग हो रहे बीमार
  • गांवों में लोगों के घर, खेतों में जमी थर्मल पावर से उड़ने वाली राख
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर रहा है सिंगाजी थर्मल पावर
  • फेस वन और फेस टू से 25 किलोमीटर तक फ्लाई ऐश बनी जान की दुश्मन

खंडवा। मध्य प्रदेश का खंडवा जिला वैसे तो बिजली बनाने के मामले में देश भर के बड़े पावर हाउस के रूप में उभरा है, लेकिन जिले में स्थित कुछ परियोजनाएं वरदान की बजाय अभिशाप भी बन गई हैं।

खंडवा जिले के दो गलियां गांव में स्थित सिंगाजी ताप परियोजना से उड़ रही राख ने छह गांव के लोगों का जीना दूभर कर दिया है। कई लोग त्वचा सहित अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो गए हैं।

वहीं खेतों में हजारों एकड़ फसल भी बर्बाद हो गई है। लगातार उड़ रही राख सांस के जरिये फेफड़ों में जाने से रहवासी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर बीमारी से पीड़ित होकर मौत के मुहाने तक भी पहुंच गए हैं।

सिंगाजी सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट भारत के मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के मुंदी के पास डोंगलिया गांव में स्थित मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी (MPPGCL) का कोयला आधारित बिजली संयंत्र है। यह परियोजना एमपीपीजीसीएल (MPPGCL) के स्वामित्व में है।

नर्मदा नदी पर इंदिरा सागर जलाशय से परियोजना हेतु आवश्यक पानी लिया जाता है। गर्मी में थर्मल पॉवर के फेस वन और फेस टू से निकलने वाली फ्लाई ऐश लोगों के जान की दुश्मन बनी हुई है।

प्रभावित ग्रामीणों की शिकायत पर परियोजना प्रबंधन व जिला प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नहीं देने और हर साल गर्मी के सीजन में होने वाली परेशानी से लोग हताश हो चुके हैं। MPPGCL द्वारा राख को उड़ने से रोकने और इसे खपाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों से इस समस्या का स्थायी हल नहीं हो रहा है।

राख को उड़ने से रोकने पर हर साल करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। इसके लिए बाकायदा टेंडर कर राख बांध से राख को उड़ने से रोकने के लिए लगातार पानी का छिड़काव और मिट्टी-मुरम बिछवाई जाती है। पूर्व में यहां पौधे व घास भी लगवाई गई, लेकिन हालात में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ।

इतना ही नहीं यहां संचालित चार यूनिट्स से बिजली उत्पादन के दौरान निकलने वाली कोयले की राख के निपटान के लिए पावर जनरेटिंग कंपनी द्वारा हाईवे निर्माण में इसका भराव करवाया जा रहा और इसके लिए राख निःशुल्क देने के अलावा अन्य सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं। इंदौर-एदलाबाद हाइवे निर्माण में प्रतिदिन 100 से 150 डंपर राख यहां से भेजी जा रही है।

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