Supreme Court Arrest Rules: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक और सशक्त फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने पुलिस, ईडी, सीबीआई समेत सभी जांच एजेंसियों को अब किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले या गिरफ्तारी के तुरंत बाद, उसे लिखित रूप में गिरफ्तारी का कारण बताना अनिवार्य कर दिया है।
इस फैसले को ‘लक्ष्मण रेखा’ बताते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी मनमानी नहीं, बल्कि पारदर्शी और कानूनी आधार पर होनी चाहिए।
गिरफ्तारी की प्रक्रिया में पारदर्शिता: क्या कहा कोर्ट ने?
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला मुंबई की बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन केस से जुड़े ‘मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र सरकार’ की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
न्यायमूर्ति मसीह द्वारा लिखित 52 पन्नों के इस फैसले में कहा गया कि संविधान का अनुच्छेद 22(1) गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में जानने का मौलिक अधिकार देता है।
यह केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मौलिक सुरक्षा है।
अदालत ने अपने आदेश में निम्नलिखित प्रमुख बातें स्पष्ट कीं:
- लिखित कारण अनिवार्य: गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में लिखित रूप से गिरफ्तारी का कारण दिया जाना चाहिए।
- तत्काल सूचना: गिरफ्तारी के कारण ‘यथाशीघ्र’ बताए जाने चाहिए ताकि आरोपी को अपने कानूनी अधिकारों और स्थिति का पता चल सके।
- अस्थायी व्यवस्था: यदि गिरफ्तारी के समय लिखित कारण देना तत्काल संभव न हो, तो अधिकारी को पहले मौखिक रूप से कारण बताने होंगे। हालांकि, रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले लिखित नोटिस आरोपी को सौंपना अनिवार्य होगा।
- अवैध मानी जाएगी गिरफ्तारी: यदि इन नियमों का पालन नहीं किया जाता, तो गिरफ्तारी और उसके बाद की रिमांड अवैध मानी जाएगी और आरोपी को तत्काल रिहा करने का अधिकार होगा।
फैसले का असर: गिरफ्तारी के बाद क्या बदलेगा?
यह फैसला जांच एजेंसियों की मनमानी पर अंकुश लगाने और आम नागरिकों के अधिकारों को मजबूती देने वाला है।
अब कोई भी एजेंसी बिना ठोस और लिखित आधार के किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकेगी।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि गिरफ्तारी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही हो।
हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर तकनीकी कारणों से (जैसे लिखित कारण न दिए जाने) किसी आरोपी को रिहा किया जाता है, लेकिन एजेंसी को उसकी हिरासत की सख्त जरूरत है, तो वह मजिस्ट्रेट के पास आवेदन दे सकती है।
मजिस्ट्रेट दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद, एक सप्ताह के भीतर इस पर फैसला देगा कि क्या गिरफ्तारी जरूरी है।
इस आदेश की एक प्रति देश के सभी उच्च न्यायालयों और राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजी जाएगी, ताकि इसे पूरे भारत में तुरंत प्रभाव से लागू किया जा सके।


