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कॉलेज मान्यता विवाद: कांग्रेस MLA आरिफ मसूद के खिलाफ FIR और जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Supreme Court-Arif Masood: भोपाल से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है।

सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज मामले में चल रही कानूनी कार्रवाई पर रोक लगा कर उन्हें बड़ी राहत प्रदान की है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें मसूद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन का निर्देश दिया गया था।

यह मामला भोपाल स्थित इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज की मान्यता से जुड़ा हुआ है, जहां विधायक पर फर्जी दस्तावेज जमा करके कॉलेज चलाने का आरोप लगा था।

हाईकोर्ट के तल्ख आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मसूद

इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने सोमवार को इस मामले में एक कड़ा फैसला सुनाया।

हाईकोर्ट ने पाया कि अमन एजुकेशन सोसाइटी, जिसके सचिव आरिफ मसूद हैं, ने इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज को चलाने के लिए फर्जी और कूटरचित (forged) दस्तावेजों का इस्तेमाल कर एनओसी और मान्यता हासिल की थी।

कोर्ट ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए यहां तक कहा कि बिना किसी “प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण” के इतने सालों तक ऐसा कॉलेज नहीं चल सकता था।

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हाईकोर्ट ने दिया था ये आदेश

हाईकोर्ट ने भोपाल के पुलिस आयुक्त को तीन दिन के अंदर विधायक आरिफ मसूद के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

साथ ही, राज्य के डीजीपी को ADG संजीव शमी की अगुवाई में एक तीन सदस्यीय SIT गठित करने और 90 दिनों के अंदर जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

हाईकोर्ट ने कॉलेज में नए दाखिलों पर भी पूर्ण रोक लगा दी थी, हालांकि मौजूदा छात्रों की पढ़ाई जारी रहने दी गई थी।

हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद, भोपाल के कोहेफिजा थाने में मसूद के खिलाफ एफआईआर दर्ज भी कर ली गई थी। इन्हीं कड़े आदेशों को चुनौती देने के लिए आरिफ मसूद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस माहेश्वरी की बेंच ने सुनवाई की

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

कांग्रेस विधायक की तरफ से देश के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और विवेक तन्खा ने पक्ष रखा।

उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश पर कई कानूनी आपत्तियां उठाईं।

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सुनवाई के बाद, मसूद के वकील विवेक तन्खा ने मीडिया को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया है।

इसका सीधा सा मतलब है कि आरिफ मसूद के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर की जांच और एसआईटी का गठन अब तब तक रोक दिया गया है, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट आगे कोई आदेश नहीं पारित करता।

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छात्रों के भविष्य पर भी सुप्रीम कोर्ट का ध्यान

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ आरिफ मसूद के लिए ही नहीं, बल्कि इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज में पढ़ रहे सैकड़ों छात्रों के लिए भी एक बड़ी राहत लेकर आया है।

कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि मौजूदा छात्रों की पढ़ाई बिना किसी रुकावट के जारी रहे।

इससे छात्रों के भविष्य को होने वाले नुकसान से बचाने का रास्ता तैयार हुआ है।

क्या हैं पूरा मामला?

यह मामला भोपाल के खानूगांव इलाके में स्थित इंदिरा प्रियदर्शनी कॉलेज का है, जिसका संचालन अमन एजुकेशन सोसाइटी करती है और आरिफ मसूद इस सोसाइटी के सचिव हैं।

पूर्व विधायक ध्रुवनारायण सिंह ने इसके संचालन को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी।

जांच में उच्च शिक्षा विभाग ने पाया कि कॉलेज को मान्यता दिलवाने के लिए जमीन की सेल डीड (बिक्री विलेख) समेत कई जरूरी दस्तावेज फर्जी तरीके से तैयार करवाए गए और उन्हें जाली तरीके से रजिस्टर्ड भी करवाया गया।

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इन्हीं आरोपों के आधार पर, उच्च शिक्षा विभाग ने पहले ही कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी थी, लेकिन छात्रों के हित को देखते हुए इसे बंद नहीं किया गया था।

हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस और एसआईटी जांच का रास्ता अपनाया था, जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है।

आगे की कार्रवाई

अब अगली सुनवाई का इंतजार है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच पर रोक तो लगा दी है, लेकिन यह कोई अंतिम फैसला नहीं है।

अब दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क रखेंगे और फिर कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि हाईकोर्ट का आदेश सही था या नहीं।

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