Supreme Court Verdict On Child Porn: नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े् मामले पर बड़ा फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने साफ किया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्री देखना, डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना POCSO एक्ट के तहत अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह की सामग्री को मिटाता नहीं है या पुलिस को इसके बारे में सूचना नहीं देता, तो पॉक्सो एक्ट की धारा 15 इसे अपराध करार देती है।
सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर दिए गए मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को भी पलट दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानूनन ऐसी सामग्री को रखना भी अपराध है।
मद्रास हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज केस यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि उसने चाइल्ड पोर्नोग्राफी सिर्फ डाउनलोड किया और अपने पास रखा। उसने इसे किसी और को नहीं भेजा।
Supreme Court Verdict On Child Porn: Pocso एक्ट में बदलाव की दी सलाह –
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वह POCSO एक्ट में बदलाव कर चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह child sexually abusive and exploitative material (CSAEM) लिखे।
भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सदस्य जस्टिस जे बी पारडीवाला ने 200 पन्ने का यह फैसला लिखा।
उन्होंने कहा कि जब तक पॉक्सो एक्ट में बदलाव को संसद की मंजूरी नहीं मिलती है, तब तक के लिए एक अध्यादेश लाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की अदालतों को भी सलाह दी है कि वह अपने आदेशों में CSAEM ही लिखें।
पारदीवाला ने कहा कि धारा 15(1)- बाल पोर्नोग्राफी सामग्री को दंडित करती है।
एक अपराध का गठन करने के लिए परिस्थितियों को ऐसी सामग्री को साझा करने या स्थानांतरित करने के इरादे का संकेत देना चाहिए।
धारा 15(2)- पॉक्सो के तहत अपराध दिखाना होगा।
यह दिखाने के लिए कुछ होना चाहिए कि (1) वास्तविक प्रसारण है या (2) धारा 15(3) पॉक्सो के तहत अपराध गठित करने के लिए प्रसारण करने की सुविधा है।
वहां यह दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है कि कुछ अर्जित किया गया है। ये तीन उपखंड एक दूसरे से स्वतंत्र हैं।
Supreme Court Verdict On Child Porn: मद्रास हाईकोर्ट ने कही थी ये बात –
मद्रास हाईकोर्ट ने इसी साल जनवरी में पॉक्सो एक्ट के एक आरोपी के खिलाफ केस को रद्द कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि अपनी डिवाइस पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध के दायरे में नहीं आता है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी 28 साल के एक शख्स के खिलाफ चल रहे केस पर सुनवाई के दौरान की थी।
उसके खिलाफ चाइल्ड पोर्नोग्राफी के आरोप में POCSO और IT कानून के तहत मामला दर्ज था।
कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ चल रहे केस को रद्द कर दिया था।
वहीं, 2023 में केरल हाईकोर्ट ने भी इसी तरह का बयान दिया था।
कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति अश्लील फोटो या वीडियो देख रहा है तो यह अपराध नहीं है, लेकिन अगर दूसरे को दिखा रहा है तो यह गैरकानूनी होगा।
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