Most Favored Nation: स्विट्जरलैंड ने नेस्ले विवाद के बाद भारत पर एक्शन लिया और भारत का मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म कर दिया।
इस फैसले के बाद भारतीय कंपनियों को 10% टैक्स ज्यादा टैक्स देना होगा।
आईए जानते हैं मोस्ट फेवर्ड नेशन क्या है और स्विस सरकार के इस फैसले का भारत पर क्या असर होगा ?
भारत का मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म
स्विट्जरलैंड ने 13 दिसंबर शुक्रवार को भारत को दिए मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा रद्द करने का ऐलान किया।
इस फैसले को दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
स्विस सरकार का कहना है कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से उसे यह कदम उठना पड़ा है।
इस ऐलान ने स्विट्जरलैंड और भारत के बीच व्यापार, निवेश और कराधान संबंधी समझौतों में एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है।
1 जनवरी 2025 से लागू होने इस फैसले का असर उन भारतीय कंपनियों पर पड़ेगा, जो स्विट्जरलैंड में कारोबार या निवेश करती हैं।
इन भारतीय कंपनियों को अब अपने डिविडेंड्स पर ज्यादा टैक्स चुकाना होगा, जिससे उनका रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) प्रभावित हो सकता है।
वहीं स्विट्जरलैंड ने इस फैसले का औचित्य बताते हुए कहा कि भारत और स्विट्जरलैंड के बीच डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) के तहत MFN प्रावधान को एकतरफा निलंबित किया गया है।
इसके परिणामस्वरूप, स्विस टैक्स सीटिजन और भारतीय कंपनियों को इस बदलाव का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनका कारोबार और निवेश प्रभावित हो सकता है।
नेस्ले विवाद और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
स्विट्जरलैंड के इस फैसले की वजह भारतीय सुप्रीम कोर्ट का वो आदेश है, जो नेस्ले से जुड़े एक विवाद से संबंधित है।
दरअसल नेस्ले ने भारतीय सरकार से यह दलील दी थी कि उसे स्लोवानिया, लिथुआनिया और कोलंबिया जैसे देशों की तरह बेहतर टैक्स छूट मिलनी चाहिए।
इन देशों के साथ भारत ने 2016 से पहले MFN समझौता किया था।
इसके तहत स्विस कंपनियों को 5% टैक्स छूट मिलती थी, जबकि इन देशों के साथ यह छूट ज्यादा थी।
नेस्ले ने यह दलील दी कि अगर भारत इन देशों को ज्यादा टैक्स छूट दे सकता है, तो उसे भी उसी तरह की छूट मिलनी चाहिए।
इस पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 19 अक्टूबर 2023 को फैसला सुनाया कि भारत को स्विट्जरलैंड के लिए अपने MFN समझौते को लागू करने के लिए अलग से इनकम टैक्स एक्ट की धारा 90 के तहत अधिसूचना जारी करनी होगी।
इसके बाद स्विट्जरलैंड और भारत की कंपनियों को इसका फायदा मिलेगा।
तब तक के लिए नेस्ले जैसी कंपनियों को अपने लाभांश पर ज्यादा टैक्स देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाते हुए स्विट्जरलैंड के वित्त मंत्रालय ने भारत का एमएफएन दर्ज़ा रद्द करने की घोषणा कर दी।
बता दें कि नेस्ले स्विट्जरलैंड की कंपनी है, जिसका मुख्यालय वेवे शहर में है।
DTAA के तहत भारत को मिला था MFN का दर्जा
1994 में स्विट्जरलैंड ने DTAA के तहत भारत को MFN राष्ट्र का दर्जा दिया था।
यह एक तरह का एग्रीमेंट है, जिसका इस्तेमाल दो देश अपने नागरिकों और कंपनियों को डबल टैक्स से बचाने के लिए करते हैं।
इसके तहत कंपनियों या व्यक्तियों को उनकी सेवाओं या प्रोडक्ट के लिए दो अलग देशों में अलग-अलग टैक्स नहीं देना पड़ता।
इस समझौते का उद्देश्य यह है कि टैक्स से संबंधित जटिलताओं को दूर किया जाए और व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा दिया जाए।
DTAA के तहत अगर किसी व्यक्ति ने एक देश में टैक्स चुका दिया है, तो वह दूसरे देश में अपनी आय पर टैक्स का क्रेडिट या छूट प्राप्त कर सकता है।
यह समझौता यह भी सुनिश्चित करता है कि दोनों देशों के बीच टैक्स की दरों में सहमति हो, ताकि व्यापार और निवेश में कोई दिक्कत न आए।
इससे दोनों देशों के नागरिकों और कंपनियों को टैक्स में राहत मिलती है और वे बिना किसी बाधा के दूसरे देशों में व्यापार या निवेश कर सकते हैं।
क्या है MFN ? क्यों और कैसे छीना जाता है यह दर्जा ?
UNO (संयुक्त राष्ट्र संघ) की एक संस्था वर्ल्ड ट्रे़ड ऑर्गनाइजेशन (WTO) है, 164 देश इसके सदस्य हैं। इ
सके तहत आने वाले सभी देश एक दूसरे को मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा देते हैं।
यह दर्जा दिए जाने के बाद बिना किसी भेदभाव के सभी देश एक दूसरे के साथ आसनी से बिजनेस कर सकते हैं।
अगर एक देश किसी तीसरे देश को व्यापार में विशेष लाभ देता है, तो एमएफएन के तहत अन्य देशों को भी स्वचालित रूप से यह लाभ मिल जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य व्यापारिक बाधाओं को कम करना और देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना होता है।
एमएफएन दर्ज़ा किसी भी देश के लिए यह सुनिश्चित करता है कि उसे व्यापारिक मामले में किसी अन्य देश के समान अवसर और लाभ मिलेंगे।
सामान्य तौर पर WTO के आर्टिकल 21बी के तहत कोई भी देश सुरक्षा संबधी विवादों के चलते दूसरे देश से यह दर्जा वापस ले सकता है।
इसे वापस लेने के लिए कई मुख्य शर्ते पूरी करनी होती हैं, पर असल में इसे हटाने को लेकर कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं है।
वहीं यह बात भी साफ नहीं है कि अगर कोई देश MFN का दर्जा किसी देश से छीन रहा है, तो वह WTO को सूचित करने के लिए बाध्य है या नहीं।
बता दें जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 2019 को हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने भी पाकिस्तान से MFN का दर्जा छीना था।
जिसके तहत पाकिस्तान से आयात होने वाली कई चीजों पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया था।
स्विस सरकार के फैसले का भारत पर असर
स्विस सरकार का यह फैसला 1 जनवरी 2025 से लागू होगा।
स्विट्जरलैंड में काम करने वाली भारतीय कंपनियों को स्विस विदहोल्डिंग टैक्स पर 10% टैक्स चुकाना होगा।
इससे पहले स्विट्जरलैंड में भारतीय कंपनियों के डिविडेंड्स पर 5% टैक्स लिया जाता था।
स्विट्जरलैंड भारत में प्रमुख निवेशक देशों में से एक है और इस फैसले का असर भारत के व्यापार और निवेश पर भी असर पड़ सकता है।
स्विट्जरलैंड में काम कर रही 323 भारतीय कंपनियां इस समय भारत में करीब 1.35 लाख लोगों को रोजगार देती हैं।
साल 2021 में भारत और स्विट्जरलैंड के बीच 30.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था।
इसमें भारत ने 29.5 अरब डॉलर का आयात और 1.2 अरब डॉलर का निर्यात किया था।
स्विट्जरलैंड से भारत में आने वाली प्रमुख वस्तुएं सोने-चांदी, कैमिकल्स, दवाइयां और इंजीनियरिंग सामान हैं।
वहीं भारत स्विट्जरलैंड को ऑर्गेनिक कैमिकल्स, मोती, कीमती रत्न और कपड़े निर्यात करता है।
स्विट्जरलैंड का भारत में निवेश पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है, वर्तमान निवेश 9.77 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका है।
अगर स्विट्जरलैंड से भारत में आने वाले निवेश में कमी आती है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।
वहीं यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के तहत स्विट्जरलैंड के चार देशों ने भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने का लक्ष्य रखा था।
अगर स्विट्जरलैंड में व्यापारिक सहूलियतें और टैक्स में राहत कम होती है, तो यह निवेश भी प्रभावित हो सकता है।
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