Land Pooling Act Cancelled: मध्य प्रदेश सरकार ने उज्जैन में सिंहस्थ 2028 की तैयारियों के लिए प्रस्तावित विवादास्पद लैंड पूलिंग एक्ट को पूरी तरह से रद्द कर दिया है।
किसानों के व्यापक विरोध और भारतीय किसान संघ के दबाव के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने यह बड़ा फैसला लिया है।
इससे हजारों किसानों की जमीन और आजीविका सुरक्षित हो गई है।
क्या था लैंड पूलिंग एक्ट और क्यों हुआ विवाद?
लैंड पूलिंग एक्ट एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सरकार विकास परियोजनाओं के लिए किसानों से जमीन लेती है, उस भूमि को विकसित करती है, और फिर उसका एक हिस्सा प्लॉट या विकसित जमीन के रूप में मालिकों को लौटा देती है।
उज्जैन में इस एक्ट का प्रस्ताव सिंहस्थ 2028 के दौरान आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए स्थायी सुविधाएं बनाने के लिए लाया गया था।
हालांकि, किसानों को इस योजना पर कई आपत्तियां थीं।

उनका कहना था कि योजना को स्वैच्छिक बताया गया था, लेकिन व्यवहार में उनपर जमीन देने का दबाव बनाया जा रहा था।
किसानों को यह स्पष्ट नहीं था कि विकसित भूमि उन्हें कब मिलेगी, कितनी मिलेगी और मुआवजा किस आधार पर तय होगा।
सिंहस्थ और महाकाल लोक से जुड़े क्षेत्रों में जमीन की कीमत बहुत अधिक है, इसलिए किसानों को आर्थिक नुकसान की आशंका थी।
किसान आंदोलन और राजनीतिक दबाव ने बदला रुख
इस योजना के खिलाफ भारतीय किसान संघ ने बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया।
“घेरा डालो, डेरा डालो” के नारे के साथ शुरू हुए इस आंदोलन ने जल्द ही जोर पकड़ लिया।
उज्जैन और आसपास के इलाकों में विरोध प्रदर्शन तेज होते चले गए।
17 नवंबर को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सीएम हाउस में भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों के साथ बैठक की।
इस बैठक में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल भी मौजूद थे।

बैठक के बाद किसान संघ ने दावा किया कि लैंड पूलिंग एक्ट वापस लिया जाएगा।
19 नवंबर को सरकार ने एक संशोधन आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि अब स्थायी अधिग्रहण केवल सड़क, नाली जैसे बुनियादी विकास कार्यों के लिए ही किया जाएगा, बिल्डिंग निर्माण के लिए नहीं।
लेकिन यह संशोधन भी किसानों को मंजूर नहीं था और उन्होंने पूरे एक्ट को वापस लेने की मांग जारी रखी।
विधायक के पत्र ने बदला पूरा गेम
15 दिसंबर को उज्जैन उत्तर से बीजेपी विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर लैंड पूलिंग एक्ट को पूरी तरह वापस लेने की मांग की।
विधायक ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर एक्ट वापस नहीं लिया गया तो वे किसानों के आंदोलन में शामिल हो जाएंगे।
विधायक के पत्र के अगले ही दिन, 16 दिसंबर को सरकार ने लैंड पूलिंग एक्ट को पूरी तरह वापस लेने का आदेश जारी कर दिया।
इस तरह मुख्यमंत्री की किसान संगठनों से मुलाकात के 29 दिन बाद सरकार ने यह फैसला लेते हुए सिंहस्थ क्षेत्र में लैंड पूलिंग एक्ट को खत्म कर दिया।

किसानों को मिली बड़ी राहत
इस फैसले से उज्जैन और आसपास के क्षेत्रों के हजारों किसानों को बड़ी राहत मिली है।
किसानों का मानना है कि उनकी जमीन और आजीविका दोनों सुरक्षित रह गई हैं।
ग्रामीण इलाकों में जमीन किसानों की आजीविका का एकमात्र साधन होती है, और उन्हें डर था कि जमीन चली गई तो उनके पास रोजगार का कोई विकल्प नहीं बचेगा।
सरकारी आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उज्जैन सिंहस्थ 2028 के लिए प्रस्तावित लैंड पूलिंग योजना को किसानों के हित में निरस्त किया जाता है और इस पर आगे कोई प्रक्रिया नहीं की जाएगी।

सिंहस्थ 2028 की तैयारियों पर क्या होगा असर?
सिंहस्थ हर 12 साल में उज्जैन में आयोजित होने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक समागम है, जिसमें देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु आते हैं।
2028 में होने वाले इस समागम की तैयारियों के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता है।
लैंड पूलिंग एक्ट रद्द होने के बाद अब सरकार के सामने चुनौती है कि वह किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए सिंहस्थ की तैयारियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कैसे करे।
संभव है कि सरकार अब पारंपरिक भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया या अन्य विकल्पों पर विचार करे।


