Western And Indian Culture: हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अब तक के इतिहास में मनोरंजन के लिए हॉरर और कॉमेडी के तड़के ने देश में अच्छा खासा बवाल काटा।
2018 में पर्दे पर आई हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘स्त्री’ की सीक्वल ‘स्त्री 2’ ने कमाई का नया रिकॉर्ड बनाया।
बॉलीवुड की भाषा में कहें तो ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपर डुपर हिट रही।
हिंदी या कोई दूसरी भारतीय भाषाओं की फिल्म इंडस्ट्री तरक्की करे इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।
होना भी नहीं चाहिए क्योंकि इस इंडस्ट्री से हजारों करोड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है।
देश की अर्थव्यवस्था में भी ये फिल्म इंडस्ट्रियां अपना योगदान दे रही हैं।
Western And Indian Culture: लोगों का बदल रहा है मनोरंजन का टेस्ट –
लेकिन, आपत्ति बदलते फिल्म मनोरंजन के इस स्वरूप और जनमानस के बदलते टेस्ट पर है।
अब मुम्बई में 2025 में होने वाले ब्रिटिश म्यूजिक बैंड कोल्ड प्ले के कॉन्सर्ट को ले लीजिए।
इसमें प्रवेश का टिकट 3,500 रुपये का है, लेकिन ये इसका टिकट ब्लैक में 70 हजार रुपये का बिका।
खबर ये भी है कि टिकट ब्लैक करने वाले 35 हजार रुपये से लेकर 12 लाख रुपये में टिकट मुहैया कराने का दावा कर रहे हैं।
भारत में विदेशी म्यूजिक बैंड का आनंद उठाने के लिए ऐसा नंगा नाच उस देश में हो रहा है जो महान संगीतज्ञों की धरती है।
जहां संगीत पर एक पूरा वेद (सामवेद) रचा गया है।
Western And Indian Culture: विदेशी म्यूजिक बैंड के लिए भारतीयोंं की दीवानगी –
विदेशी म्यूजिक बैंड के प्रति भारतीयों में ऐसी दीवानी अंदर तक झकझोर देती है और कई सवाल भी खड़े करती है।
इस आलेख का एक और दूसरा उदाहरण है। कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर मामला।
इस वारदात ने पूरे समाज और राजनीति को अपनी जद में ले लिया था।
बेंगलुरु में महिला की हत्या कर उसके शव के 50 टुकड़े कर फ्रीज में रखे गए।
महिला का अश्लील फोटो वायरल करने की धमकी देकर युवक ने दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया।
ऐसी अनगिनत घटनाएं आए दिन टीवी पर देखने सुनने और अखबारों में पढ़ने को मिल जाती हैं।
नारी जाति पर इंसानियत को झकझोर देने वाले कृत्य उस देश में घटित हो रहे हैं, जहां उन्हें शक्ति स्वरूपा मानकर पूजा जाता है।
Western And Indian Culture: ऐसे घटनाओं के पीछे की वजह क्या –
समाज में नारी जाति पर बढ़ते अपराध की घटनाएं सोचने को मजबूर करती हैं।
आखिर इन घटनाओं के पीछे की वजह क्या हो सकती हैं?
क्या हमारी सनातन संस्कृति और जीवन मूल्यों का गुलदस्ता बिखर रहा है?
क्या आधुनिकता की दौड़ में हमारा समाज दिग्भ्रमित हो गया है या किन्हीं शक्तियों द्वारा कर दिया गया है?
ये कुछ उदाहरण एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं। आलेख को पूरा पढ़ेंगे तो आपको सब समझ में आ जाएगा।
विशाल सांस्कृतिक ह्रदय वाले भारतीय समाज की ये एक दिलचस्प समालोचना है!
Western And Indian Culture: सनातन संस्कृति पर पाश्चात्य का आक्रमण –
बात हो रही है भारतीय सनातन संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति के आक्रमण की।
भारत जातीय, भाषाई, क्षेत्रीय, आर्थिक, धार्मिक, वर्ग और जाति समूहों की विविधताओं वाला देश है।
भारत विविधताओं वाला देश होने के साथ-साथ शहरी-ग्रामीण अंतर और लिंग भेद से भी भरा हुआ है।
उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच अंतर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
लेकिन, इतनी असमान्यताओं, अपनी विशाल सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद भारत एक है।
भारत ने हमेशा किया है बाहरी संस्कृतियों का खुले हाथों से स्वागत –
इसके पीछे कोई ना कोई बड़ी शक्ति तो है। भारत सदियों से खुले दिल से दोनों हाथ फैलाकर बाहरी संस्कृतियों का स्वागत करता आया है।
इस विश्व बंधुत्व की भावना वाली संस्कृति के पीछे सबसे बड़ी ताकत या यूं कह लें कि भारतीय संस्कृति का सबसे ताकतवर केंद्र हिंदू धर्म है, जो सिर्फ एक धर्म ही नहीं बल्कि एक व्यापक जीवन शैली है।
भारतीय संस्कृति का लोकाचार हिंदू धर्म के सिद्धांतों और इसके सह-अस्तित्व और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के मूल दर्शन के साथ जुड़ा हुआ है।
वसुधैव कुटुंबकम का भाव भारत की आत्मा में बसा है और यही भाव सैकड़ों-हजारों वर्षों से दूसरों को अपने में समाहित करने का रास्ता खोलता आया है।
इसी संस्कार का हर काल खंड में बाहरी आततायियों ने फायदा उठाया है।
उन्होंने भारत में घुसपैठ की, यहां ऐतिहासिक इमारतों धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया, लूटपाट मचाई और चले गए लेकिन इतना सहकर भी भारतीय संस्कृति ना कभी दूषित हुई, ना खंडित, ना ही विभक्त हुई।
लेकिन, वर्तमान समय में खतरा परोक्ष रूप से सामने दिखलाई नहीं पड़ता है, ये खतरा उन आततायियों से भी ज्यादा खतरनाक लगता है।
जैसे मीडिया, इंटरनेट, मनोरंजक फिल्में, टीवी पर डेली सोप ओपरा, पाश्चात संगीत और ना जाने क्या-क्या।
Western And Indian Culture: आधुनिक साधनों से बुराइयों की हो रही घुसपैठ –
इन आधुनिक साधनों से मिल रही बुराइयां भारत की संस्कृति और सामाजिक मूल्यों में घुसपैठ कर गयी है।
ताज्जुब की बात तो ये है कि इन बुराइयों का भारतीयों को इल्म तक नहीं है। लेकिन,हमारे समाज द्वारा घटित क्रिया-कलाप इसकी चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं।
राह चलती कन्याओं से छेड़छाड़, छोटी-छोटी बच्चियों से बलात्कार, पिता की अपनी ही पुत्री पर बुरी नजर, बात-बात पर मारपीट और हत्या जैसी घटनाएं आम बात हो गई हैं।
सामाजिक मूल्य और संस्कार तो जैसे ताक में रख दिए गए हैं। रिश्तों का गला घोंट दिया गया है।
इस तरह की सामाजिक गिरावट चिंतित करती हैं। हमारी अपनी संस्कृति के प्रति वफादारी कम नहीं हो रही है।
हम अपने मौलिक सांस्कृतिक तथ्यों को भुलाकर पश्चिम की ओर नहीं झुके जा रहे हैं।
भाषा, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र जैसे कई पहलुओं में अनेकता एक-दूसरे को लील नहीं रही है।
सामान्य बोलचाल की भाषा में सम्मान सूचक शब्दों का इस्तेमाल कम नहीं हो रहा है।
मातृ भाषा हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अंग्रेज़ी शब्दों का इस्तेमाल बेतहाशा नहीं बढ़ रहा है।
पारंपरिक परंपराओं पर आघात कर रही विदेशी संस्कृति –
ये विदेशी संस्कृति हिंदू सनातन संस्कृति की गहराई पर, पर्यावरण पर भी असर डाल रही है।
कई पारंपरिक परंपराएं प्रकृति के प्रति गहरे सम्मान पर आधारित थी।
इन परंपराओं के गायब होने से प्रकृति के प्रति समाज का नजरिया बदल गया है, प्रकृति के प्रति सम्मान भी कम हो रहा है।
ये कुछ साल से नहीं बल्कि भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों का मिश्रण काफी समय से हो रहा है, खासकर वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकीकरण और जब से मीडिया का ग्लोबल स्वरुप सामने आया।
भारत में बहुत से लोग पश्चिमी जीवनशैली, फैशन और यहां तक कि संचार शैलियों को अपना रहे हैं, अक्सर इसके प्रभाव को पूरी तरह से समझे बिना।
जहां पश्चिमी संस्कृतियां तेजी से भारतीय परंपराओं, व्यंजनों और आध्यात्मिकता को अपना रही हैं।
यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान एक समृद्ध संलयन को जन्म तो दे रहा है, लेकिन यह पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण के बारे में सवाल भी उठाता है।
उदाहरण के लिए आजकल देश में दक्षिण भारत में बनी फिल्में धूम मचा रही हैं।
Western And Indian Culture: हॉलीवुड फिल्मों का पड़ रहा है दुष्प्रभाव ?
हिंसा, खून खराबा और मारधाड़ के मसाले से भरपूर ये कहानियां लोगों में खूब पसंद की जा रही हैं।
आखिर क्यों? ये सोचने का विषय है। इतना ही नहीं हॉरर में कॉमेडी का तड़का लिए फिल्म टिकट खिड़की पर छप्पर फाड़ कमाई कर रही हैं।
ऐसा लगता है कि फिल्म देखने थियेटर गया दर्शक अपना दिमाग ही घर रख कर चला गया है।
2018 में आई हॉर कॉमेडी फिल्म ‘स्त्री’ की सीक्वल ‘स्त्री-2’ की बात की जाए तो हॉरर पॉप संस्कृति की जो कहानी गढ़ी गई है उसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी।
लेकिन दर्शक दहशतजदा चीखों और अनियंत्रित ठहाकों के बीच बारी-बारी से डूबते-उतराते ऐसी फिल्म को मजे से गले लगा रहे हैं।
दर्शक इस फिल्म में भूतहा किरदार ‘सरकटे के आतंक’ से डर के साथ-साथ हास्य का आनंद लेता दिखाई देता है।
है ना दर्शकों में ये अजीब परिवर्तन। भारतीय समाज की सोच में ये बदलाव पाश्चात संस्कृति की घुसपैठ का नतीजा नहीं तो और क्या है।
हॉलीवुड फिल्मों का सीधा-सीधा दुष्प्रभाव नहीं तो क्या है।
मनोरंजन का ये नया मॉडल एक डेढ़ दशक में काफी पॉपुलर हुआ।
इस सीरीज की फिल्म ‘भूल भूलैया’ के तीन पार्ट बन गए हैं। पहले दो पार्ट हिट रहे अब ‘भूल भुलैया-3’ दिवाली पर आ रही है।
हॉरर कॉमेडी की श्रृंखला में एक फिल्म और आई थी ‘मुन्ज्या’ ये भी काफी हिट हुई।
इसी सीरीज की एक फिल्म थी ‘भेड़िया’ इसने भी अच्छा कारोबार किया था।
ऐसी अनगिनत फिल्मों ने भारतीय जनमानस का टेस्ट बदल कर रख दिया है।
ऐसा नहीं है कि भारत में हॉरर फिल्में पहले नहीं बनी हों, बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों का चलन रामसे ब्रदर्स ने शुरू किया था।
धीरे-धीरे बदल रही कहानियों को कहने की शैली –
भारत में एक समय कहां तो पारिवारिक रिश्तों, संबंधों, मूल्यों और सामाजिक बुराइयों की कहानियों पर फिल्मों का निर्माण होता था।
फिर एंग्री यंगमैन जैसे किरदार गढ़े गए, रोमांटिक कॉमेडी फिल्में आईं, लेकिन अब ये भी बीते जमाने की बात होती जा रही है।
भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचाने में टेलीविजन का हाथ भी कम नहीं है।
टीवी के सोप ओपेरा अब सास बहू और साजिश से कहीं आगे निकल गए हैं।
इनकी कहानियों में रिश्तों का भटकाव, बहु विवाह, तलाक, शादी जैसे पवित्र बंधन की कहानियों को तोड़-मरोड़ कर प्रदर्शित किया जा रहा है।
या यूं कह लें कि धीमे-धीमे हमारे घरों तक जहर पहुंचाया जा रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म इन सबका बाप बन गया है।
इन पर आने वाली वेबसीरीज ने भारतीय जनमानस के अंदर रचे बसे संस्कारों, नैतिक मूल्यों को विचारों की काल कोठरी में बंद कर दिया है।
आज परिवारों में टूटने-बिखरने की क्या यही वजहें नहीं हैं।
याद करिए 80-90 के दशक में जब दूरदर्शन पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के सीरियल दिखाए जाते थे, तो शहरों में कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था।
यही इन पश्चिम वालों को रास नहीं आया। उसके बाद इन ‘संस्कारों के लुटेरों’ ने भारत के खिलाफ साजिश शुरू कर दी।
इन पश्चिम वालों ने भारत से हीरे जवाहरात, मोती, कलाकृतियां, हमारी विद्याएं, हमारे स्वादिष्ट व्यंजन, मसाले, तकनीक, जहां तक कि हमारे सुपर ह्यूमन ब्रेन तक हथिया लिए हैं।
हमारे पास ले-देकर अब कुछ चीजें बची हैं, जिसे भी वे छीनने के लिए आमादा हैं।
वो चीजें हैं हमारी विरासत, हमारी संस्कृति-संस्कार और परिवार।
पश्चिम वालों ने अब इन पर भी डाका डाल दिया है।
हम भोले-भाले भारतीयों को उनके इस फरेब का पता भी नहीं चला है।
पश्चिम के इस सांस्कृतिक आक्रमण को भारत के भाग्यविधाता कब समझ पाएंगे।
क्या कोई उपाय खोजेंगे और कदम उठाएंगे? ये भारत की संस्कृति में रहने वाले सभी इंसानों के सामने बड़ा प्रश्नचिन्ह है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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