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लोकसभा में Online Gaming Bill पेश: क्या BAN हो सकती है भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सर ड्रीम-11!

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Online Gaming Bill 2025: 20 अगस्त, 2025 को केंद्र सरकार की तरफ से गृह मंत्री अमित शाह ने एक ऐसा बिल लोकसभा में पेश किया जिसने करोड़ों भारतीय युवाओं की डिजिटल आदतों और हजारों करोड़ के ऑनलाइन गेमिंग बिजनेस का भविष्य एक पल में बदल कर रख दिया।

इस बिल का नाम है – ‘प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025’

इसका सीधा निशाना हैं वे सभी ऑनलाइन गेम्स है जहां पैसा लगता है, चाहे वह स्किल बेस्ड हों या चांस बेस्ड।

यानी, ड्रीम11, रमी, पोकर जैसे लोकप्रिय गेम्स पर पूरी तरह से रोक लग सकती है।

इस बिल के पेश होते ही एक तरफ जहां सोशल मीडिया पर चर्चा तेज हो गई, वहीं दूसरी तरफ शेयर बाजार में गेमिंग कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली।

सबसे बड़ा सवाल यह है: क्या भारत में ऑनलाइन गेमिंग का युग समाप्त होने वाला है?

क्या है इस बिल में? जानें मुख्य बातें

सरकार द्वारा प्रस्तावित इस बिल के कुछ अहम प्रावधान इस प्रकार हैं:

  • रियल-मनी गेम्स पर पूर्ण प्रतिबंध: अब कोई भी कंपनी रियल मनी (पैसे लगाकर खेलने और जीतने वाले) गेम ऑफर, चला या प्रचार नहीं कर पाएगी। हालांकि, इन गेम्स को खेलने वाले यूजर्स पर कोई सजा का प्रावधान नहीं है।

  • कड़ी सजा का प्रावधान: अगर कोई कंपनी इन गेम्स को ऑफर करती पकड़ी गई, तो उसे 3 साल तक की जेल और 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। इनके विज्ञापन देने वालों को भी 2 साल की जेल और 50 लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है।

  • नियामक प्राधिकरण (Regulatory Authority): एक नई संस्था बनाई जाएगी जो पूरे गेमिंग उद्योग को regulate करेगी। यह तय करेगी कि कौन सा गेम रियल-मनी गेम की श्रेणी में आता है और कौन सा नहीं।

  • ई-स्पोर्ट्स और मनोरंजन वाले गेम्स को बढ़ावा: PUBG, Free Fire जैसे ई-स्पोर्ट्स गेम और वे गेम जिनमें पैसे लगाकर दांव नहीं लगाया जाता, उन्हें पूरा समर्थन दिया जाएगा।

  • छूट का प्रावधान: जो गेम फ्री-टू-प्ले (मुफ्त में खेले जाने वाले) हैं या जहाँ सिर्फ fixed सब्सक्रिप्शन फीस देनी होती है (जैसे Netflix), उन पर यह बैन लागू नहीं होगा।

आखिर क्यों लाया जा रहा है यह बिल?

सरकार का मानना है कि पैसे वाले ऑनलाइन गेम्स देश के युवाओं के लिए एक बड़ा खतरा बन गए हैं।

आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनती हैं – “ऑनलाइन गेम हारने के बाद छात्र ने की आत्महत्या”, “रमी खेलते-खेलते लाखों रुपये डूब गए”।

इन घटनाओं ने सरकार को कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर किया है।

सरकार के सामने मुख्य चिंताएं ये हैं:

  1. मानसिक और आर्थिक नुकसान: लोगों में गेमिंग की लत लग रही है, जिससे वे आर्थिक तंगी का शिकार हो रहे हैं।

  2. सामाजिक समस्याएं: आत्महत्या, पारिवारिक कलह जैसी घटनाओं में इजाफा।

  3. मनी लॉन्ड्रिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा: ऐसे प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए होने का खतरा।

इंडस्ट्री पर गहरा असर, 2 लाख नौकरियां खतरे में

भारत का ऑनलाइन गेमिंग बाजार लगभग 32,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 86% राजस्व रियल-मनी गेम्स से आता है।

इस बैन का सीधा असर Dream11, Games24x7 (रमीकल्चर), WinZo, Gameskraft जैसी बड़ी कंपनियों पर पड़ेगा।

इन कंपनियों ने भारतीय क्रिकेट टीम जैसे बड़े ब्रांड्स को स्पॉन्सर किया हुआ है।

इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से लगभग 2 लाख लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।

साथ ही, सरकार को हर साल करोड़ों रुपये के टैक्स का नुकसान भी होगा।

गेमिंग कंपनियों की प्रतिक्रिया: ‘बैन नहीं, रेगुलेशन चाहिए’

गेमिंग इंडस्ट्री इस बिल का पुरजोर विरोध कर रही है।

ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (AIGF) और फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स (FIFS) जैसे संगठनों ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर मांग की है कि बैन के बजाय एक “प्रोग्रेसिव रेगुलेशन” (उन्नत नियमन) का मॉडल लाया जाए।

उनका तर्क है कि पूर्ण प्रतिबंध से यूजर्स गैर-कानूनी और विदेशी गेमिंग वेबसाइट्स की ओर चले जाएंगे, जो न तो भारत का टैक्स देंगी और न ही किसी नियम का पालन करेंगी।

इससे यूजर्स की सुरक्षा और भी ज्यादा खतरे में पड़ जाएगी।

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सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था – ‘स्किल गेम जुआ नहीं’

इस मामले की सबसे बड़ी कानूनी जटिलता यह है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही फैसला सुनाया है कि फैंटेसी स्पोर्ट्स (जैसे ड्रीम11) और रमी जैसे गेम स्किल बेस्ड हैं और इन्हें जुए की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

इसीलिए, गेमिंग कंपनियां इस बिल को कोर्ट में चुनौती देने की पूरी तैयारी में हैं।

उनका कहना है कि यह बिल संविधान का उल्लंघन करता है क्योंकि यह स्किल और चांस बेस्ड गेम्स में अंतर नहीं करता।

आम खिलाड़ी पर क्या पड़ेगा असर?

भारत में लगभग 50 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े हैं। अगर यह बिल पास हो जाता है, तो:

  • आप रेगुलेटेड और सुरक्षित भारतीय ऐप्स पर इन गेम्स को नहीं खेल पाएंगे।
  • जो लोग इन गेम्स से छोटी-मोटी कमाई कर रहे थे, उनका यह स्रोत बंद हो जाएगा।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि लोग अनियंत्रित विदेशी ऐप्स की ओर भागेंगे, जहां फ्रॉड, डेटा चोरी और पैसों के गायब होने का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।
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सरकार का उद्देश्य लोगों को आर्थिक और मानसिक नुकसान से बचाना है, जो एक सराहनीय कदम है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या पूर्ण प्रतिबंध इसका सही समाधान है?

क्या इससे एक बड़ा उद्योग खत्म होगा और लोग और भी खतरनाक रास्तों पर चले जाएंगे?

इस बिल पर संसद में लंबी बहस की उम्मीद है, और यह तय है कि इसका रास्ता अब सुप्रीम कोर्ट तक भी जाएगा।

भारत के डिजिटल गेमिंग का भविष्य अब एक अनिश्चित दौर में प्रवेश कर गया है।

#ResponsibleOnlineGaming

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