What Is Santhara: इंदौर में एक जैन परिवार की 3 साल 4 महीने की मासूम बच्ची वियाना जैन ने जैन धर्म की सर्वोच्च प्रथा संथारा (सल्लेखना) को स्वीकार किया और कुछ ही मिनटों में उसकी मृत्यु हो गई।
दरअसल, वियाना को ब्रेन ट्यूमर था, जिसके बाद परिवार ने उसे धार्मिक संस्कार देने का निर्णय लिया।
मामला 21 मार्च का है, जो बीते बुधवार को जैन समाज के एक कार्यक्रम में बच्ची के माता-पिता का सम्मान किए जाने के बाद सामने आया।
यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि वियाना संथारा लेने वाली विश्व की सबसे कम उम्र की बच्ची बन गई है।
आइए जानते हैं आखिर क्या है जैन धर्म की संथारा प्रथा…
संथारा (सल्लेखाना) क्या है?
संथारा, जिसे सल्लेखाना भी कहा जाता है, जैन धर्म की एक प्राचीन प्रथा है।
- इसमें व्यक्ति स्वेच्छा से उपवास करके मृत्यु को गले लगाता है।
- यह प्रक्रिया धीरे-धीरे भोजन और पानी छोड़कर की जाती है।
- जैन धर्म के अनुसार, यह आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग है।
- यह परंपरा उन लोगों के लिए है जो गंभीर बीमारी, बुढ़ापे या अंतिम समय में होते हैं और शारीरिक व मानसिक रूप से धार्मिक जीवन जीने में असमर्थ होते हैं।

संथारा कब लिया जा सकता है?
जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, संथारा केवल चरम परिस्थितियों में ही लिया जाना चाहिए, जैसे:
- लाइलाज बीमारी
- बुढ़ापा
- अकाल या प्राकृतिक आपदा
- जब व्यक्ति धार्मिक कर्तव्यों का पालन न कर पाए
- इसके अलावा, यह प्रथा स्वैच्छिक होनी चाहिए और किसी दबाव में नहीं।
संथारा का पालन कैसे किया जाता है?
जैन ग्रंथ रत्नकरंद श्रावकाचार (चौथी शताब्दी) में संथारा की विस्तृत प्रक्रिया बताई गई है:
- संपत्ति का त्याग: व्यक्ति को अपनी सारी संपत्ति दान कर देनी चाहिए।
- माफी मांगना: अपने सभी पापों के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।
- भावनाओं पर नियंत्रण: मोह, क्रोध और लालच से मुक्त होना चाहिए।
- धीरे-धीरे उपवास: भोजन और पानी का सेवन कम करते हुए पूर्ण त्याग करना।

क्या संथारा कानूनी है?
- 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने संथारा को आत्महत्या (IPC धारा 306) के समान मानते हुए अवैध घोषित किया था।
- कोर्ट का कहना था कि “धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर किसी की जान लेना गलत है।”
- जैन समुदाय के विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी।
- अभी तक इस मामले पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है।
क्या एक बच्ची संथारा ले सकती है?
वियाना जैन का मामला इसलिए विवादास्पद है क्योंकि 3 साल की बच्ची अपने निर्णय लेने में सक्षम नहीं होती।
ऐसे में क्या माता-पिता को बच्चे के लिए ऐसा निर्णय लेने का अधिकार है?

क्या यह बाल अधिकारों का उल्लंघन है?
कुछ लोग मानते हैं कि अगर बच्ची का इलाज नहीं हो सकता था, तो संथारा एक दर्दमुक्त मृत्यु का विकल्प था।
वहीं, दूसरों का कहना है कि बच्चों को इस तरह की प्रथा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
वियाना जैन का केस
वियाना जैन पेशे से आईटी प्रोफेशनल पीयूष और वर्षा जैन की बेटी थी।
बच्ची को दिसंबर 2023 में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था।
डॉक्टरों ने सर्जरी और इलाज किया, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया।
जब चिकित्सा विज्ञान ने जवाब दे दिया, तो परिवार ने आध्यात्मिक रास्ता अपनाया।
21 मार्च को, जैन भिक्षु राजेश मुनि महाराज के सुझाव पर वियाना को संथारा व्रत दिलाया गया।
संथारा की प्रक्रिया आधे घंटे तक चली, जिसमें मंत्रोच्चार और धार्मिक विधियां हुईं।
कुछ ही मिनटों बाद वियाना ने शांति से प्राण त्याग दिए।

विश्व रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम
वियाना का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में “संथारा लेने वाली सबसे कम उम्र की बच्ची” के रूप में दर्ज हुआ है।
उसके माता-पिता ने बताया कि वियाना बहुत ही चंचल और खुश मिजाज बच्ची थी।
हम शुरू से ही उसे धर्म के संस्कार दे रहे थे।
गोशाला जाना, पक्षियों को दाना डालना, गुरुदेव के दर्शन करना, पचखाण करना उसकी दिनचर्या में शामिल था।

बहरहाल वियाना जैन का मामला धार्मिक आस्था, कानून और नैतिकता के बीच एक गंभीर बहस छेड़ता है।
जहां जैन समुदाय इसे मोक्ष का मार्ग मानता है, वहीं आधुनिक विचारधारा इसे चिंताजनक मानती है।