Indore Medical Miracle: इंदौर की जागृति कुशवाहा (35) ने मां बनने की चाहत में अपनी जान भी दांव पर लगा दी और असंभव को संभव कर दिखाया।
7 साल के लंबे इंतजार के बाद जब वह गर्भवती हुईं, तो उन्हें पता चला कि उनकी दोनों किडनियां काम करना बंद कर चुकी हैं।
डॉक्टरों ने गर्भपात की सलाह दी, लेकिन जागृति ने हार नहीं मानी।
गर्भावस्था के दौरान उनका हृदय 7 मिनट के लिए रुक गया, पीलिया हो गया, लेकिन आखिरकार उन्होंने स्वस्थ जुड़वां बच्चों (एक बेटा और एक बेटी) को जन्म दिया।
डॉक्टर इसे मेडिकल इतिहास का दुनिया का पहला ऐसा मामला बता रहे हैं, जहां इतनी गंभीर परिस्थितियों में मां और नवजात शिशुओं ने जिंदगी की लड़ाई जीती।

मेडिकल जर्नी: एक के बाद एक मुश्किलों का सामना
जागृति की यह यात्रा सामान्य गर्भावस्था के रूप में शुरू हुई।
लेकिन 18वें हफ्ते में ब्लीडिंग शुरू होने पर पता चला कि संक्रमण के कारण उनकी दोनों किडनियां पूरी तरह फेल हो गई थीं।
शरीर में विषाक्त पदार्थ बढ़ने लगे और मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का खतरा पैदा हो गया।
डॉक्टरों ने तुरंत रोजाना 6 घंटे की डायलिसिस शुरू की।
22वें हफ्ते में की गई जोखिम भरी बायोप्सी में पुष्टि हुई कि किडनियां अब ठीक नहीं हो सकतीं।
गर्भावस्था के कारण किडनी ट्रांसप्लांट भी संभव नहीं था।
ऐसे में डॉक्टरों ने गर्भपात का सुझाव दिया ताकि जागृति की जान बचाई जा सके।
लेकिन जागृति का जवाब स्पष्ट था: “मेरे लिए यह बच्चे अनमोल हैं। सात साल बाद मां बनने का सपना मैं इसी दौरान पूरा करूंगी।”

7 मिनट का कार्डियक अरेस्ट और चमत्कारी CPR
24वें हफ्ते में, डायलिसिस के दौरान ही जागृति की सांस फूलने लगी और फेफड़ों में पानी भर गया।
वेंटिलेटर पर रखे जाने के दौरान अचानक उनका हृदय 7 मिनट के लिए पूरी तरह रुक गया।
पूरी टीम ने तत्काल सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) शुरू किया।
लगातार 7 मिनट तक चेस्ट कम्प्रेशन और मेडिकल प्रयासों के बाद उनकी धड़कन लौट आई।
यह पल बेहद नाजुक था। इतने लंबे समय तक हृदय रुके रहने और ऑक्सीजन न मिलने से मां के साथ-साथ गर्भ में पल रहे शिशुओं के भी मस्तिष्क को गंभीर नुकसान पहुंच सकता था।
लेकिन चमत्कारिक रूप से, अल्ट्रासाउंड में दोनों शिशु पूरी तरह स्वस्थ पाए गए।
जागृति को अगले 24 घंटे वेंटिलेटर पर रखना पड़ा।

पीलिया का संकट और समय से पहले डिलीवरी
30वें हफ्ते में एक नया संकट आया – गंभीर पीलिया।
यह मां और शिशुओं दोनों के लिए जानलेवा था। अब और इंतजार जोखिम भरा था।
डॉक्टरों की टीम ने इमरजेंसी सी-सेक्शन (सिजेरियन) ऑपरेशन करने का फैसला किया।
आखिरकार, सभी मुश्किलों को पार करते हुए, जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया।
एक बेटी का वजन 1.13 किलो और एक बेटे का वजन 835 ग्राम था।
दोनों को तुरंत NICU (नवजात गहन देखभाल इकाई) में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें विशेष देखभाल मिली।
लड़के में हृदय की एक समस्या (पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस) पाई गई, जिसे दवाओं से नियंत्रित कर लिया गया।
करीब दो महीने की देखभाल के बाद, दोनों बच्चों का वजन बढ़कर क्रमशः 2 किलो और 1.6 किलो हो गया और उन्हें स्वस्थ घर ले जाया गया।

डॉक्टरों का दावा: “यह दुनिया का पहला केस है”
इस पूरे मामले को देखने वाले प्रमुख नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. सनी मोदी का कहना है कि यह मेडिकल लिटरेचर में दर्ज दुनिया का पहला ऐसा मामला है।
डायलिसिस पर रहते हुए, इतनी लंबी गर्भावस्था, 7 मिनट के कार्डियक अरेस्ट से उबरना और फिर स्वस्थ शिशुओं का जन्म यह सब एक साथ पहले कभी नहीं देखा गया।
डॉ. मोदी कहते हैं, “जागृति एक फाइटर थीं। अक्सर महिलाएं ऐसी स्थिति में गर्भपात का विकल्प चुन लेती हैं, लेकिन उन्होंने अडिग रहकर अपनी मातृत्व की इच्छा को प्राथमिकता दी। हमारी पूरी टीम ने हर पल उनकी और शिशुओं की निगरानी की। हर हफ्ते अल्ट्रासाउंड कर यह सुनिश्चित किया गया कि बच्चे सुरक्षित हैं।”

अभी भी जारी है स्वास्थ्य संघर्ष
जागृति की लड़ाई अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। उनकी किडनियां अब भी काम नहीं कर रही हैं।
वह सप्ताह में दो बार डायलिसिस पर हैं और किडनी ट्रांसप्लांट के लिए राज्य अंग प्रत्यारोपण संगठन (SOTO) की प्रतीक्षा सूची में पंजीकृत हैं।
हालांकि, अपने दोनों स्वस्थ बच्चों को गोद में लेकर वह और उनके पति राहुल अब उस ट्रांसप्लांट के लिए एक नई उम्मीद और ताकत के साथ इंतजार कर रहे हैं।
यह कहानी केवल एक मेडिकल केस नहीं, बल्कि एक मां के अद्भुत साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की अद्भुत मिसाल है।
जागृति ने साबित किया कि जीने की जिद और मां बनने का प्यार, मृत्यु जैसी चुनौतियों को भी पीछे छोड़ सकता है।


