Who Is Arshad Nadeem
27 साल के Javelin Thrower अरशद नदीम (Arshad Nadeem) ने पेरिस ओलंपिक में गोल्ड जीतकर 32 साल बाद पाकिस्तान को ओलंपिक मेडल दिलाया।
लेकिन यहां तक पहुंचना अरशद के लिए आसान नहीं था।
पाकिस्तान से पेरिस तक
एक गरीब परिवार में जन्में अरशद ने पाकिस्तान से पेरिस तक लंबा फासला तय किया है। अरशद का जन्म 2 जनवरी, 1997 को पाकिस्तान के पंजाब के मियां चन्नू में एक पंजाबी परिवार में हुआ था।
वह आठ भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर हैं।
क्रिकेट के शौकीन थे अरशद
अरशद स्कूल के दिनों से ही खेलों के शौकीन थे लेकिन उनका सबसे ज्यादा क्रिकेट खेलना पसंद था।
उन्हें जिला स्तर पर कई क्रिकेट मुकाबले खेले लेकिन उनकी किस्मत में भाला फेंक लिखा था।
2015 में शुरू हुई जेविलन जर्नी
अरशद नदीम ने 2015 में भाला फेंक स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू किया था।
2016 में, उन्हें विश्व एथलेटिक्स से स्कॉलरशिप मिली जिससे वे मॉरीशस में IAAF उच्च प्रदर्शन ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग लेने के लिए पात्र हो गए।
कोच ने बदली जिंदगी
अरशद नदीम की प्रतिभा को निखारने में उनके कोच फैसल अहमद का अहम योगदान रहा है।
फैसल अहमद ने अरशद नदीम को शुरू से ही ट्रेनिंग दी है और उन्हें एक विश्व स्तरीय एथलीट बनाया है।
बांस की छड़ी से करते थे प्रैक्टिस
एक इंटरव्यू में नदीम ने बताया था कि उनके पास शुरुआत में भाला खरीदने के पैसे नहीं थे। ऐसे में वो एक बांस की बड़ी छड़ी लेते और उसे भाला का शेप देकर प्रैक्टिस करते।
45 डिग्री में भी किया अभ्यास
अरशद जहां रहते हैं वहां का तापमान कभी-कभी 45 डिग्री भी पार कर जाता है, ऐसी तपती गर्मी में भी उन्होंने प्रैक्टिस नहीं छोड़ी और अभ्यास करते रहे।
गांववालों से लेते थे पैसे
अरशद के गोल्ड जीतने के बाद उनके पिता मोहम्मद अशरफ ने बताया, ”हमारे गांव के लोगों और रिश्तेदारों ने शुरुआत में पैसे देकर नदीम की ट्रेनिंग करवाई है। यहां तक की उसकी यात्रा का भी खर्च उठाया है।”
टोक्यो ओलंपिक में नहीं मिली थी मदद
नदीम पेरिस ओलंपिक में 7 पाकिस्तानी एथलीटों में से एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिसके हवाई टिकट उनकी सरकार ने स्पॉन्सर किए। इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में, उन्हें सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली थी।
सोशल मीडिया पर मांगी थी मदद
इस साल पेरिस ओलंपिक से कुछ महीने पहले ही उन्होंने अधिकारियों से अपने पुराने भाले को बदलने की रिक्वेस्ट की थी क्योंकि उससे प्रैक्टिस करना मुश्किल हो गया था।
इससे पहले तक, उनके दोस्त और पड़ोसी ही विदेशी टूर्नामेंटों के लिए उनकी यात्रा और अन्य खर्चों की व्यवस्था करते थे।