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Paralympic: सुबह 2 बजे प्रैक्टिस, 6 घंटे टीचिंग, फिर ऐसे चैंपियन बने किसान परिवार के सचिन खिलारी

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Sachin Sarjerao Khilari Paralympic: Paralympic 2024 में भारत के लिए मेडल की बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रही है।

4 सितंबर को महाराष्ट्र के सचिन सरजेराव खिलारी ने पेरिस पैरालंपिक में शॉटपुट में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता।

इसे के साथ भारत को मिलने वाले मेडल्स की संख्या 21 हो चुकी है जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

सचिन सरजेराव खिलारी ने पुरुषों की शॉटपुट एफ46 स्पर्धा में एशियाई रिकॉर्ड 16.32 मीटर के थ्रो के साथ सिल्वर मेडल जीता।

सचिन ने दूसरे कोशिश में बेस्ट थ्रो फेंका। उन्होंने मई में जापान में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था।

कनाडा के ग्रेग स्टीवर्ट ने टोक्यो पैरालंपिक में जीता गोल्ड मेडल बरकरार रखा।

क्रोएशिया के लुका बाकोविच ने कांस्य पदक जीता।

सचिन का सिल्वर मेडल पेरिस पैरालंपिक में एथलेटिक्स में भारत का 11वां मेडल है।

पीएम मोदी ने दी बधाई (PM Modi congratulated)

पीएम मोदी ने सचिन को बधाई देते हुए X पर लिखा- #Paralympics2024 में सचिन को उनकी अविश्वसनीय उपलब्धि के लिए बधाई!

शक्ति और दृढ़ संकल्प का शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने पुरुषों की शॉटपुट F46 स्पर्धा में रजत पदक जीता है। भारत को उन पर गर्व है।

क्या है एफ46 कैटेगरी (What is F46 category)

पैरा एथलेटिक्स स्पर्धाओं में एफ46 श्रेणी उन लोगों के लिए है जिनकी एक या दोनों भुजाओं की गतिविधि मामूली रूप से प्रभावित है या जिनके हाथ-पैर नहीं हैं।

इन एथलीटों को कूल्हों और पैरों की ताकत से थ्रो करना होता है। ऐसे एथलीट खड़े होकर प्रतिस्पर्धा करते हैं।

महाराष्ट्र से पैरालंपिक तक (Maharashtra to Paralympics)

34 साल के सचिन के लिए महाराष्ट्र से पैरालंपिक तक का सफर बेहद मुश्किल भरा था लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने जोश और जज्बे की बदौलत यहां तक पहुंचे।

किसान परिवार से है संबंध (Belongs to a farmer family)

सचिन महाराष्ट्र के सांगली जिले के अटपडी तालुका के कार्गनी गांव से ताल्लुक रखते हैं, जो अनार की खेती के लिए मशहूर है।

उनके परिवार के पास 18 एकड़ की जमीन थी।

वह बचपन से अपने किसान पिता सरजेराव रंगनाथ खिलारी से पेड़ और मिट्टी की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं।

उनके पिता महाराष्ट्र कृषि रत्न पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं।

9 साल की उम्र में हुए हादसे का शिकार

सचिन 9 साल की उम्र में दुर्घटना का शिकार हो गए थे, जिससे उन्होंने कोहनी की मांसपेशियां गंवा दी।

दरअसल, साइकिल से फिसलने के कारण उसका बायां हाथ टूट गया और इसे ठीक होने में काफी वक्त लगा।

लेकिन जब उनका फ्रैक्चर ठीक हुआ तो उन्हें गैंगरीन नाम की बीमारी हो गई। जिससे उनके बाएं हाथ ने काम करना बंद कर दिया।

पुणे से ली इंजीनियरिंग में डिग्री, जेवलिन थ्रो खेला

इन सारी मुश्किलों के बावजूद सचिन ने हार नहीं मानी और पुणे के एक कॉलेज से उन्होंने इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।

पुणे में ही सचिन ने पहली बार एथलेटिक्स ट्रैक देखा।

उन्होंने कोच अरविंद चौहान से ट्रेनिंग लेनी शुरू की और डिस्कस और जेवलिन थ्रो में जीत हासिल की।

पुणे में किराए के घर पर रहते हुए सचिन ने भाला फेंक (एफ 46 श्रेणी) में भाग लेना शुरू कर दिया।

2017 में जयपुर नेशनल्स में 58.47 मीटर की थ्रो के साथ उन्होंने गोल्ड जीता, लेकिन सचिन के लिए और मुश्किलें इंतजार कर रही थीं।

2019 में दिल्ली में पैरा नेशनल में गोल्ड जीतने के बाद कंधे में चोट लगने के कारण खिलाड़ी को जेवलिन छोड़ना पड़ा।

कोच ने दी Shot Put (गोला फेंक) खेलने की सलाह

ऐसे में कोच सत्य नारायण ने उन्हें फोन कर गोला फेंक में हिस्सा लेने की नसीहत दी।

हालांकि, शॉटपुट में जाने का मतलब यह था कि सचिन के पास थ्रो से पहले अपने बाएं हाथ को ब्लॉक के रूप में इस्तेमाल करने का विकल्प नहीं था।

इसलिए उन्होंने अपने कंधे का इस्तेमाल किया और छाती से ताकत लगाने की कोशिश की।

पैसों की कमी और संघर्ष भरे दिन (Lack of money and struggle days)

एक इंटरव्यू में सचिन ने बताया था – ‘2013, 2015 और 2016 में महाराष्ट्र में भयंकर सूखा पड़ा।

ऐसे में जब मैंने 2016 में पैरा खेलों में भाग लेने का निर्णय लिया, तो मुझे पैसे की भी चिंता थी क्योंकि खेती से होने वाली कमाई लगभग शून्य थी।

सुबह 2 बजे से प्रैक्टिस, 6 घंटे टीचिंग (Practice at 2 am, teaching for 6 hours)

सचिन ने आगे बताया कि वो तड़के सुबह दो बजे प्रैक्टिस करने के लिए जाते थे।

फिर पैसों के लिए दिन में 6 घंटे UPSC के स्टूडेंट्स को भूगोल की कोचिंग देते थे।

लेकिन इन सबके बीच सचिन ने अपने खेल को कभी नहीं छोड़ा और न ही हिम्मत हारी।

सचिन की ये कहानी हर किसी के लिए एस मिसाल और प्रेरणा है।

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