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Chhath 2024: जानें किसने किया था छठ का पहला व्रत, रामायण-महाभारत काल से जुड़ी है परंपरा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Chhath Puja History: हर साल छठ महापर्व बिहार और पूर्वांचल में काफी धूमधाम से मनाया जाता है, ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।

यह पर्व विशेष रूप से बिहार में मनाया जाता है लेकिन अब दूसरे राज्यों में भी इस पर्व की धूमधाम शुरू हो गई है।

मगर क्या आपको पता है कि छठ का पहला व्रत किसने किया था और छठ पूजा की परंपरा कब से शुरू हुई?

इन सारे सवालों के जवाब हम आपको बताएंगे, साथ ही बताएंगे कितना कठिन होता है छठ का व्रत…

माता सीता ने मुंगेर में की थी पहली छठ पूजा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सीता ने बिहार में मुंगेर के गंगा तट में सबसे पहले छठ पूजा की थी। जिसके बाद महापर्व छठ पूजा की शुरूआत हुई।

माता सीता मिथिला (बिहार) की रहने वाली थीं, जहां प्राचीन काल से सूर्य की उपासना होती आ रही है, भगवान श्री राम खुद भी सूर्यवंशी थे।

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वाल्मिकी और आनंद रामायण के अनुसार, मुंगेर में माता सीता ने छह दिन तक छठ पूजा की थी।

दरअसल, श्रीराम जब 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तो रावण वध के पाप से मुक्ति के लिए ऋषि-मुनि के कहने पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया गया।

इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने श्रीराम और माता सीता को आश्रम में आने का आदेश दिया था और माता सीता को सूर्यदेव की उपासना करने को कहा।

उसके बाद मुग्दल ऋषि के कहे अनुसार श्री राम और माता सीता मुंगेर आए और कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर सूर्यदेव की उपासना की।

आज भी मुंगेर में उस पूजा के सूप, डाला और लोटा और माता सीता के चरण चिन्ह इस स्थान पर मौजूद हैं। जो इस पर्व का प्रमाण हैं।

द्रौपदी ने भी किया था सूर्य षष्ठी पूजन

एक अन्य कथा के अनुसार छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी।

महाभारत के अनुसार, जब पांडव अपना पूरा राजपाट जुए में हार गए थे और 12 वर्षों के वनवास पर चले गए थे। तब उनके साथ द्रौपदी भी थीं और उन्होंने सूर्य षष्ठी पूजन का महाव्रत रखा था।

कहते है, इस व्रत को करने से पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया और द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई थी।

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बेहद कठिन है छठ का व्रत

छठ का व्रत बहुत कठिन होता है। इसका व्रत रखने वाले को ‘व्रती’ कहते हैं। व्रती छठ पर्व के 4 दिनों में काफी पवित्रता और निष्ठा से इससे जुड़े हर रस्म और रिवाज को पूरा करते हैं।

मान्यता है कि एक छोटा से छोटा नियम टूटने पर व्रत खंडित हो जाता है, चाहे वह भूल अनजाने में भी क्यों न हुआ हो।

लोगों के मानना है कि छठ पूजा में किसी भूल या गलती की थोड़ी भी गुंजाइश नहीं है। कहते हैं, छठ पूजा में की हुई गलती का फल तुरंत मिल जाता है, जो अक्सर अशुभ और अनिष्टकारी होता है।

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36 घंटे तक होता है निर्जला व्रत

छठ पूजा में लगभग 36 घंटे तक निर्जला यानी बिना पानी पिए रहना पड़ता है, जो इस पर्व का सबसे कठिन भाग है।

दूसरी सबसे बड़ी कठिनाई है, डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए ठंड के मौसम में ठंडे पानी में घंटों हाथ जोड़कर खड़ा रहना।

व्रती का मन, वचन और कर्म से खुद को पूरी पूजा के दौरान शुचिता और पवित्रता से रखना भी काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इन कारणों से छठ को बेहद कठिन माना जाता है।

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