Sri Akal Takht Sahib: सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब (अमृतसर) इन दिनों सुर्खियों में है।
अकाल तख्त ने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को 30 अगस्त को धार्मिक कदाचार का दोषी ठहराते हुए तनखैया घोषित किया था, जिसकी सजा उन्हें अब जाकर मिली है।
सोमवार को अकाल तख्त साहिब ने पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल को सजा सुनाई, जिसमें बादल सहित कई नेताओं को स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे में वॉशरूम साफ करने, झाडू लगाने और बर्तन साफ करने जैसी सजा मिली।
यहीं नहीं सजा के दौरान उन्हें गले में तख्ती भी लटकाकर रखनी होगी।
सिखों की ये धार्मिक संस्था और इसके नियम सैकड़ों साल पुराने हैं, इसलिए हर कोई इनके बारे में नहीं जानता।
शायद इसीलिए हर किसी के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर इस संस्था के पास ऐसी क्या ताकत है जो पूर्व डिप्टी सीएम जैसा व्यक्ति भी सिर झुकाकर इसके सारे फैसलों को मान रहा है और इनका पालन कर रहा है।
तो आइए जानते हैं सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के बारे में सब कुछ…
क्या है अकाल तख्त?
अकाल तख्त सिखों के पांच तख्तों में से एक है ये सिखों की सबसे मजबूत और ताकतवर संस्था है।
पंजाब की राजनीति, धर्म और सामाजिक तंत्र में अकाल तख्त का अच्छा-खासा दखल है।
सिख धर्म में अकाल तख्त के फैसले को न मानने वाले का हर तरह से बहिष्कार कर दिया जाता है।
कहां स्थित है अकाल तख्त
अकाल तख्त, हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) अमृतसर (पंजाब) में स्थित है।
3 जून से 8 जून 1984 के बीच, भारतीय सेना ने भिंडरावाले को गिरफ्तार करने के लिए प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर आतंकवाद विरोधी अभियान ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था।
भारतीय सेना द्वारा किए गए इस विवादित सैन्य अभियान के दौरान अकाल तख्त को भारी नुकसान पहुंचा था।
कब हुई अकाल तख्त की स्थापना
सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहब ने श्री अकाल तख्त की स्थापना साल 1609 में की थी।
इसे एक ऐसे स्थान के रूप में स्थापित किया गया था जहां से सिख समुदाय की आध्यात्मिक और लौकिक चिंताओं पर काम किया जा सकता था।
यह 17वीं और 18वीं सदी में मुगल सम्राटों के खिलाफ राजनीतिक सुरक्षा के प्रतीक के रूप में खड़ा था।
अकाल तख्त और हरमंदिर साहिब पर कई हमले अहमद शाह अब्दाली और मस्सा रंगर ने 18वीं सदी में किए थे।
भारत में कितने अकाल तख्त हैं?
कैसे चुना जाता है अकाल तख्त का जत्थेदार?
- अकाल तख्त के जत्थेदार का ओहदा हमेशा सबसे बड़ा होता है।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी SGPC के 160 सदस्य और एग्जीक्यूटिव कमेटी के 15 सदस्य मिलकर अकाल तख्त के जत्थेदार को चुनते हैं।
- अकाल तख्त का जत्थेदार सिख पंथ का सर्वोच्च प्रवक्ता होता है। वह किसी बाहरी, राजनीतिक रूप से प्रेरित स्रोतों से नियंत्रित या प्रभावित न होने वाला आध्यात्मिक नेता है।
- वर्तमान जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) द्वारा 22 जून 2023 को नियुक्त किया गया था।
अकाल तख्त के पास धार्मिक फैसले लेने का अधिकार
सिखों की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने पर दो तरह की सजा का विकल्प है।
एक तो कानूनी सजा, जो अदालत सुनाती है लेकिन यह अपराध भारतीय न्याय संहिता के दायरे में आना चाहिए।
दूसरी सजा वो जो श्री अकाल तख्त साहिब धार्मिक संस्था के तौर पर सुनाता है लेकिन ये सिर्फ सिख व्यक्ति को ही सजा सुना सकती है।
श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा दी गई सजा को ही तनखैया घोषित करना कहा जाता है।
क्या मतलब होता है तनखैया का?
- सिख धर्म के अनुसार तनखैया का मतलब होता है धार्मिक दुराचार का दोषी।
- कोई भी सिख अगर धार्मिक तौर पर कुछ गलत करता है तो उसके लिए व्यवस्था है कि वह नजदीकी सिख संगत के सामने उपस्थित होकर अपनी गलती के लिए माफी मांग ले।
- तब संगत की ओर से पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में उसके अपराध की समीक्षा की जाएगी और फिर उसी के हिसाब से उसके लिए सजा तय की जाएगी।
- इसके तहत आरोपी को गुरुद्वारों में बर्तन, जूते और फर्श साफ करने जैसी सजाएं सुनाई जाती हैं।
- साथ ही हर्जाना भी तय किया जाता है। इसके तहत जो सजा दी जाती है, वह मूलरूप से सेवा भाव वाली होती है।
सिखों की सबसे ताकतवर संस्था
- सिख धर्म के लोगों की सर्वोच्च पीठ होने के नाते राजनीतिक या धार्मिक मामलों में भी इसकी ताकत सबसे ज्यादा होती है।
- किसी भी हाल में कोई सरकार भी अकाल तख्त का खुला विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाती है।
- अकाल तख्त ने पहले भी महाराजा रणजीत सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और गृहमंत्री रहे बूटा सिंह जैसे बड़े नामों को भी कड़ी सजा सुनाई और इन्होंने ये सजा स्वीकार भी की थी।
बूटा सिंह से साफ करवाए जूते, रणजीत सिंह को पड़े कोड़े
अकाल तख्त ने महाराजा रणजीत सिंह को एक मुस्लिम लड़की से प्यार करने पर 100 कोड़ों की सजा सुनाई थी।
1984 के सिख दंगों के समय बूटा सिंह राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री थे। ज्ञानी जैल सिंह उस समय देश के राष्ट्रपति थे।
अकाल तख्त के आदेश पर पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को भी हाजिर होने का आदेश दे दिया गया था मगर उन्होंने संदेश भिजवाया कि भारत के राष्ट्रपति के तौर पर वह अकाल तख्त में पेश नहीं हो सकते।
उन्होंने अपना प्रतिनिधि मंडल अकाल तख्त के पास भेजा और उनके प्रतिनिधि मंडल के जवाब से संतुष्ट होकर अकाल तख्त ने ज्ञानी जैल सिंह को माफ कर दिया।
मगर राष्ट्रपति पद से हटने के बाद ज्ञानी जैल सिंह अकाल तख्त गए और माफी मांगी।
अकाल तख्त ने 1994 में बूटा सिंह को पांचों तख्तों में जाकर एक-एक हफ्ते के लिए बर्तन साफ करने, झाड़ू लगाने और जूते साफ करने की सजा सुनाई थी।
इतना ही नहीं, इस दौरान उनके गले में माफीनामे की तख्ती भी लटकाई गई थी।