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खुलासा: महीने में इतनी बार धुलता है रेलवे का कंबल, जानकर दोबारा नहीं करेंगे इस्तेमाल

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Railway Blanket Washed: भारतीय रेलवे के एसी कोच में यात्रा करने वाले यात्रियों को ठंड से बचने के लिए दो चादरों का सेट और एक कंबल दिया जाता है।

इसे लेकर अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर ये चादर और कंबल कितने दिन बाद धोए जाते हैं।

अगर आपके मन में भी ये सवाल है तो इसका जवाब सामने आ चुका हैं…

महीने में इतने बार धुलते हैं चादर और कंबल

एक RTI के जवाब में रेल मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी है कि ऊनी कंबल महीने में कितनी बार धुला जाता है।

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस (TNIE) की रिपोर्ट के मुताबिक, RTI के जवाब में रेल मंत्रालय ने कहा है कि यात्रियों को दिए जाने वाले लिनन (सफेद बेड सीट) को हर बार इस्तेमाल के बाद धोया जाता है, लेकिन ऊनी कंबलों के साथ ऐसा नहीं है।

कंबल को महीने में कम से कम 1 बार धुला जाता है। हालांकि प्राथमिकता रहती है कि कंबल को महीने में दो बार धोया जाना चाहिए लेकिन यह उपलब्धता और लॉजिस्टिक व्यवस्था पर निर्भर करता है।

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बदबू आने या दाग लगने पर दोबारा धोया जाता है कंबल

रिपोर्ट में लंबी दूरी की ट्रेनों के हाउसकीपिंग स्टाफ से बातचीत के आधार पर कहा गया है कि कंबलों को महीने में सिर्फ एक बार धोया जाता है।

कंबलों को एक से अधिक बार तभी धोया जाता है, जब उन पर किसी तरह का दाग लग जाए या उसमें से किसी तरह की बदबू आए।

सेहत के लिए कितना सही?

ये खबर सामने आने के बाद रेल यात्रियों के बीच खलबली मच गई है और हर कोई ये जानना चाहता है कि ऐसा करना कितना सही है।

1 महीने में अनगिनत लोग एसी कोच पर यात्रा करते हैं, ऐसे में कंबलों का एक बार धुलना सेहत के लिए बिल्कुल सही नहीं है और इससे स्किन डिसीज या एलर्जी होने का भी खतरा है।

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क्या करें यात्री

आपने देखा होगा कि ट्रेन में अक्सर कई लोग अपने कंबल और चादर साथ लेकर चलते हैं।

ऐसे में अगर आप भी किसी तरह की त्वचा समस्या से जूझ रहे हैं या फिर किसी भी तरह की एलर्जी से बचना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि अपना चादर और खासकर कंबल घर से लेकर चलें।

कोरोना काल में बंद थी ये सुविधा

आपको याद दिला दें कि कोविड काल में एसी कोच में परदे, चादर, कंबल और पिलो कवर हटा दिए गए ताकि इंफेक्शन न फैले।

हालत ठीक होने के बाद से दोबारा एसी कोच में ये व्यवस्था शुरू की गई थी।

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रेलवे के पास 46 विभागीय लॉन्ड्री और 25 बूट लॉन्ड्री

आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार, भारतीय रेलवे के पास देश भर में 46 विभागीय लॉन्ड्री और 25 बूट लॉन्ड्री हैं। हालांकि, इसमें कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं।

विभागीय लॉन्ड्री का मतलब है कि भूमि और वाशिंग मशीन रेलवे की है। हालांकि, इसमें काम करने वाले कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नियुक्त किया जा सकता है।

बूट का मतलब है बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर लॉन्ड्री। ये रेलवे की भूमि पर स्थापित की गई हैं, लेकिन वॉशिंग उपकरण और कर्मचारी निजी पार्टी या संबंधित ठेकेदार के होते हैं।

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