भोपाल। कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता लेकिन, आसमान की हसरत में जमीन को ठोकर जो मार दे उसे सिवा जगहंसाई के कुछ नहीं मिलता।
माफ कीजिएगा किसी शायर के कलाम में अपना काफिया मिलाने की गुस्ताखी का सबब दरअसल पूर्व डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे हैं जिन पर ये लाइनें सटीक बैठती हैं। सब जानते हैं कि राजनीति में नाम चमकाने की चाह में निशा बांगरे ने सरकारी नौकरी को ठोकर मारी और जिद भी ऐसी की सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया।
जमकर शोर मचाया, पदयात्रा निकाली, भोपाल में धरना दिया, लेकिन जब तक इस्तीफा होता समय निकल चुका था और बैतूल की आमला सीट जो बांगरे मैडम के लिए रिजर्व मानी जा रही थी उसपर कांग्रेस को अन्य प्रत्याशी घोषित करना पड़ा और निशा कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता बनकर रह गईं।
उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किसी सीट से उन्हे टिकट दे दे तो ये उम्मीद भी जाती रही। कुल जमा जिस कांग्रेस के भरोसे निशा बांगरे ने अपना करियर दांव पर लगाया उसी कांग्रेस ने एक हाथ बढ़ाकर दूसरे हाथ से उन्हें ठेंगा दिखा दिया और अब जबकि फुल ठगा हुआ महसूस कर रही हैं बांगरे मैडम तो उन्हें वापस नौकरी चाहिए।
आपको बता दें बाबा साहब आंबेडकर की जयंती पर उन्होने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है और बाबा साहब का हवाला देते हुए कांग्रेस पर आरोप मढ़े हैं।उनका आरोप है कि संविधान निर्माता बाबा साहब को भी कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था। कांग्रेस ने उनके साथ भी न्याय नहीं किया था और आज भी न्याय नहीं कर रही है।
बहरहाल अब उनका झुकाव बीजेपी की तरफ दिखाई देने लगा है और इसकी बानगी उस वक्त देखने मिली जब निशा बांगरे छिंदवाड़ा में बीजेपी प्रत्याशी के समर्थन में चुनाव प्रचार के लिए जा पहुंची और वहां कांग्रेस से मिले जख्म का दर्द भी फूटा और गुस्सा भी।
इसके बाद मैडम शायद यही सोच रही हैं कि जिस तरह कांग्रेस नेताओं को बीजेपी अपने कुनबे में शामिल करती जा रही है तो सियासी बहाव में उनके हाथ भी कमल लग जाए, लेकिन यहां भी आसार ना के बराबर हैं क्योंकि इस्तीफा स्वीकार कराने के लिए जिस तरह निशा बांगरे ने पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और सरकार को कोसा है बीजेपी भूली नहीं होगी।
बदले परिदृष्य में निशा बांगरे की फिलवक्त प्राथमिकता तो सरकारी नौकरी है जिसके लिए उन्होने शासन और मुख्य सचिव को पत्र लिखा है और वापस नौकरी मांगी है और बीजेपी की तरफ उनके झुकाव की वजह भी यही है। इधर बीजेपी की न्यू ज्वॉइनिंग कमेटी ने निशा बांगरे से इस संबंध में किसी बातचीत से इनकार किया है यानि बांगरे मैडम को बीजेपी घास डालने के मूड में नहीं है, पार्टी का रवैया तो यही बताता है।
निशा बांगरे की मौजूदा स्थिति यही है कि खुदा ही मिला ना विसाले सनम। ना इधर के रहे ना उधर के रहे। नियम कायदों के मुताबिक निशा बांगरे की नौकरी में वापसी संभव नहीं है और सियासी करियर शुरू होने से पहले खड्डे में चला गया है। उम्मीद की किरण बची है तो बीजेपी।
सवाल यही है कि सियासत के सूरज की मानिंद हर दिल और दल को अपने आभामंडल से चकाचौंध करने वाली बीजेपी क्या चाहेगी कि ‘निशा’ आए…