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30 दिन जेल में रहे तो छोड़ना पड़ेगा पद! क्या है 130th Constitution Amendment Bill, जिस पर छिड़ी बहस

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

130th Constitution Amendment Bill: केंद्र सरकार ने 20 अगस्त, बुधवार को लोकसभा में तीन ऐसे विधेयक पेश किए हैं, जो देश की राजनीति के नियम ही बदल सकते हैं।

ये बिल सीधे तौर पर उन चुनावी राजनीतिक नेताओं को टारगेट करते हैं, जो गंभीर आपराधिक मामलों में घिरे हैं।

इन विधेयकों का मकसद है कि अगर कोई मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में लगातार 30 दिन तक जेल में रहता है, तो उसे अपने पद से हटना होगा।

आइए आसान भाषा में समझते हैं कि आखिर इन विधेयकों में है क्या और क्यों इन पर विवाद हो रहा हैं…

30 दिन की हिरासत, फिर ऑटोमैटिक हटाने का प्रावधान

सरकार का कहना है कि वर्तमान में न तो संविधान में और न ही केंद्र शासित प्रदेशों या जम्मू-कश्मीर के कानूनों में कोई ऐसा स्पष्ट प्रावधान है, जो किसी मुख्यमंत्री या मंत्री को गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तारी और लंबी हिरासत की स्थिति में पद से हटाने का रास्ता दिखाए।

इसी ‘कानूनी खालीपन’ को भरने के लिए सरकार ने ये तीनों बिल लाए हैं:

  1. 130वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025: यह संविधान में बदलाव करेगा।
  2. गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025: यह केंद्र शासित प्रदेशों के लिए है।
  3. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025: यह जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान करेगा।

इन सभी बिल्स का एक ही मूल मंत्र है: “30 दिन की हिरासत, फिर पद छोड़ो।”

130वां संविधान संशोधन: केंद्र और राज्यों के मंत्रियों के लिए सीधा नियम

यह सबसे महत्वपूर्ण बिल है क्योंकि यह सीधे भारत के संविधान में छेड़छाड़ करता है।

इसमें दो मुख्य अनुच्छेदों- अनुच्छेद 75 (केंद्र सरकार) और अनुच्छेद 164 (राज्य सरकार) में संशोधन प्रस्तावित है।

केंद्र सरकार के लिए नए नियम (अनुच्छेद 75):

  • अगर कोई केंद्रीय मंत्री (प्रधानमंत्री समेत) किसी ऐसे गंभीर अपराध के आरोप में है, जिसमें 5 साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है, और वह लगातार 30 दिन जेल में रहता है, तो:

  • राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर उस मंत्री को पद से हटा देंगे।
  • अगर प्रधानमंत्री ऐसी सलाह नहीं देते हैं, तो 31वें दिन से वह मंत्री अपने-आप पद से हटा हुआ माना जाएगा।

अगर प्रधानमंत्री खुद 30 दिन तक जेल में रहते हैं, तो उन्हें 31वें दिन तक इस्तीफा देना होगा।

अगर वे इस्तीफा नहीं देते, तो उनका पद स्वतः ही (ऑटोमैटिक) खत्म हो जाएगा।

राज्य सरकारों के लिए नए नियम (अनुच्छेद 164):

  • अगर कोई राज्य मंत्री (मुख्यमंत्री समेत) ऐसे ही गंभीर आरोप में 30 दिन जेल में रहता है, तो:

  • राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर उसे हटा देंगे।
  • अगर सलाह नहीं दी जाती, तो 31वें दिन से मंत्री का पद अपने-आप खाली हो जाएगा।

अगर मुख्यमंत्री स्वयं 30 दिन जेल में रहते हैं, तो उन्हें इस्तीफा देना होगा, नहीं तो उनका पद स्वतः समाप्त।

सबसे दिलचस्प बात: ‘वापसी का दरवाजा’ खुला

इन प्रावधानों में यह भी कहा गया है कि अगर कोई मंत्री या मुख्यमंत्री हिरासत से रिहा हो जाता है, तो उसे दोबारा उसी पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

यानी, अगर कोर्ट से बरी होने या जमानत मिलने पर वह फिर से मंत्री बन सकता है।

बाकी दो बिलों में क्या है?

  • गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025: यह बिल दिल्ली, पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के लिए ठीक वही नियम लागू करेगा, जो 130वें संशोधन में प्रस्तावित हैं। यहां के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के लिए 30 दिन के बाद ऑटोमैटिक हटाने का प्रावधान होगा।

  • जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025: जम्मू-कश्मीर के लिए बने अधिनियम में भी इसी तरह का प्रावधान जोड़ा जाएगा, ताकि वहां के मंत्रियों के लिए भी यह नियम लागू हो सके।

क्यों हो रहा है विवाद? 

सरकार का तर्क है कि ये बिल “साफ-सुथरी राजनीति” और “जवाबदेही” की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।

इनसे यह सुनिश्चित होगा कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे नेता सरकार की बागडोर संभालने के पात्र नहीं रहेंगे।

हालांकि, विपक्ष और आलोचकों का मानना है कि ये बिल “विवादास्पद” हैं। उनके आपत्ति के बिंदु हैं:

  1. न्यायपालिका पर अतिक्रमण: आलोचकों का कहना है कि किसी व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसे अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराया जाता। सिर्फ हिरासत में लिए जाने के आधार पर किसी को पद से हटाना, न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांत के खिलाफ है।

  2. सत्तारूढ़ दल के हाथ में हथियार: विपक्ष का डर है कि केंद्र सरकार के पास एजेंसियों (जैसे CBI, ED) का नियंत्रण है। ऐसे में ये प्रावधान सत्तारूढ़ दल के लिए विपक्षी नेताओं को हिरासत में लेकर उन्हें सरकार से हटाने का एक “आसान हथियार” बन सकते हैं।

  3. राजनीतिक प्रतिशोध का डर: आरोप है कि यह बिल विशेष रूप से उन विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है जो currently various investigation agencies के radar पर हैं।

ऑनलाइन गेमिंग पर बैन वाला बिल 

इन तीनों बिलों के साथ-साथ, केंद्र सरकार ऑनलाइन गेमिंग पर बैन लगाने वाला एक और बिल लाने की तैयारी में है।

कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी इस बिल के तहत ऑनलाइन मनी गेमिंग (पैसे लगाकर खेले जाने वाले गेम) पर रोक लगेगी।

इसका उल्लंघन करने वालों के लिए तीन साल तक की जेल या 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान हो सकता है।

प्रोडक्शन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025

  • वैसे ऑनलाइन गेम जो पैसे के लिए खेले जाते हैं (जैसे रियल मनी गेम्स, सट्टा, जुआ) पर पूरी तरह बैन लगेगा।
  • नियमों के उल्लंघन पर 3 साल तक की जेल और ₹1 करोड़ तक का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
  • ऐसे प्लेटफार्मों पर विज्ञापन देने पर दो साल तक की कैद या ₹50 लाख तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान होगा।
  • नेशनल ऑनलाइन गेमिंग कमीशन (NOGC) बनेगा, जो सभी ऑनलाइन गेम्स को रेगुलेट करेगा और लाइसेंस देगा।
  • जो गेम मनोरंजन, कौशल या सामाजिक उद्देश्यों के लिए होते हैं (जैसे ई-स्पोर्ट्स), उन्हें प्रमोट किया जाएगा।
  • बिल में उम्र वेरिफिकेशन, गेमिंग टाइम लिमिट, वित्तीय लेनदेन की निगरानी, और डेटा प्राइवेसी के प्रावधान शामिल हैं।

सरकार के लिए, ये बिल भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ एक सख्त संदेश हैं।

लेकिन विपक्ष की नजर में, ये लोकतंत्र की न्यायिक प्रक्रिया और राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने का एक जरिया बन सकते हैं।

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इन विधेयकों पर कैसी बहस होती है और क्या ये अपने मौजूदा स्वरूप में कानून बन पाते हैं।

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