Chandipura Virus: बरसात का मौसम शुरू होते ही कई तरह के वायरस एक्टिव हो जाते हैं। इन्हें मे से एक है चांदीपुरा वायरस, जिसने गुजरात में अबतक 6 लोगों की जान ले ली है।
ये वायरस इतना खतरनाक है कि 24 घंटे के अंदर ही जान ले सकता है।
क्यों कहते हैं चांदीपुरा वायरस
चांदीपुरा कोई नया वायरस नहीं है, इसका पहला मामला साल 1965 में महाराष्ट्र से सामने आया था।
इसका नाम चांदीपुरा इसलिए पड़ा क्योंकि इसका सबसे पहला मामला महाराष्ट्र के नागपुर स्थित चांदीपुरा गांव में हुआ था।
यह उस एक ही जगह में आइसोलेट वायरस था। फ्लू और जापानीज इंसेफेलाइटिस के संयुक्त लक्षणों वाला यह वायरस बच्चों को संक्रमित करता है।
खास बात है कि तब से लेकर अभी तक इस वायरस का कोई भी केस दुनिया के किसी और देश में नहीं मिला है।
लेकिन, महाराष्ट्र से निकलकर यह आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी फैला।
आइए जानते हैं इस वायरस के लक्षण, कारण और इसका इलाज
क्या है चांदीपुरा वायरस
चांदीपुरा वायरस एक दुर्लभ और खतरनाक बीमारी है जिससे बुखार, फ्लू और तीव्र एन्सेफलाइटिस हो सकता है। जो मौत का कारण भी बन सकता है।
कैसे फैलता है चांदीपुरा वायरस
चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है, जो सबसे ज्यादा मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है। इसके फैलने के पीछे मच्छर में पाए जाने वाले एडीज जिम्मेदार हैं यह वायरस मुख्य रूप से मच्छरों, टिक्स और सैंडफ्लाइज के जरिए फैलता है।
चांदीपुरा वायरस के लक्षण
24 घंटे में हो सकता है जानलेवा
इस वायरस की सबसे खतरनाक बात ये है कि इसके लक्षण जल्दी बढ़ सकते हैं, जिससे शुरुआत के पहले 24 घंटों के भीतर न्यूरोलॉजिकल हानि और संभावित रूप से घातक ऑटोइम्यून एन्सेफलाइटिस हो सकता है।
चांदीपुरा वायरस इतना खतरनाक है कि इसकी मृत्युदर 75% तक है।
बच्चों के लिए खतरनाक
9 महीने से 14 साल की उम्र के बच्चों में यह संक्रमण पाया जाता है। खास तौर पर यह ग्रामीण क्षेत्रों में इस वायरस का संक्रमण ज्यादा देखने को मिलता है।
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि चांदीपुरा वायरस से संक्रमित बच्चे लक्षण दिखने के 48-72 घंटों के भीतर मर जाते हैं।
इसलिए यह वायरस शिशुओं और वयस्क के लिए बेहद घातक है।
क्या करें और क्या न करें
इस वायरस से बचने का एक ही तरीका है कि मच्छरों से बचा जाए
बच्चों को पूरी बाजू के कपड़े पहनाएं
ऐसी जगह न जाएं जहां मच्छरों के काटने की आशंका हो
चांदीपुरा वायरस का इलाज
चांदीपुरा वायरस का कोई खास इलाज नहीं है, ऐसे में सावधानी ही इसका इलाज है।
बीमारी के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करें और शुरुआती इलाज शुरू कर दें।
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