Nalanda University Bihar: नालंदा तीन शब्दों से मिलकर बना है- ना, आलम और दा। इसका मतलब है ऐसा उपहार, जिसकी कोई सीमा नहीं है। इसे 5वीं सदी में गुप्त काल में बनाया गया था और 7वीं शताब्दी तक यह महान यूनिवर्सिटी बन चुकी थी। विध्वंस के बाद पिछले 800 सालों से ये अपने पुननिर्माण का इंतजार कर रहा था, जो अब जाकर पूरा हुआ है।
पीएम मोदी ने किया उद्घाटन
पीएम नरेंद्र मोदी ने बुधवार 19 जून की सुबह बिहार के राजगीर नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में 17 देशों के राजदूत शामिल हुए।
1749 करोड़ रुपये की लागत से बना
नालंदा विश्वविद्यालय का कैंपस करीब 1749 करोड़ रुपये की लागत से बनकर तैयार हुआ है। इसकी जो तस्वीरें सामने आई हैं वो बहुत ही शानदार हैं।
इसकी खूबसूरती और सुविधाएं देखकर आप ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसी बड़ी यूनिवर्सटीज को भी भूल जाएंगे।
एक से बढ़कर एक सुविधाएं
- नालंदा विश्वविद्यालय कैंपस में 40 कक्षाओं के साथ दो शैक्षणिक ब्लॉक हैं, इसमें करीब 1900 लोग बैठ सकते हैं।
इसमें 2 ऑडिटोरियम हैं, जिनमें 300 लोग बैठ सकते हैं। - इसमें लगभग 550 छात्रों की क्षमता वाला एक छात्रावास है।
- इसमें इंटरनेशनल सेंटर, एम्फीथिएटर जिसमें 2000 लोगों तक की क्षमता हो सकती है, फैकल्टी क्लब और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स सहित कई अन्य सुविधाएं भी हैं।
‘नेट जीरो’ ग्रीन कैम्पस
नालंदा विश्वविद्यालय कैंपस ‘नेट जीरो’ ग्रीन कैम्पस है। ये सौर संयंत्र, घरेलू और पेयजल उपचार संयंत्र, अपशिष्ट (खराब) जल को दोबारा उपयोग के लिए जल पुनर्चक्रण संयंत्र (रीसाइक्लिंग), 100 एकड़ जल निकायों और कई अन्य पर्यावरण अनुकूल सुविधाओं के साथ आत्मनिर्भर है।
अब्दुल कलाम का सपना हुआ सच
पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन नालंदा के पुनरुद्धार को लेकर पहल की थी। बिहार विधानसभा के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए मार्च 2006 में पूर्व राष्ट्रपति ने ये प्रस्ताव रखा था।
जनवरी 2007 में फिलीपींस में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) के सोलह सदस्य राजी हो गए। भारत की संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 पारित किया और सितंबर 2014 में छात्रों के पहले बैच का नामांकन हुआ।
सीएम नीतीश कुमार ने यूनिवर्सटी कैंपस के लिए 455 एकड़ जमीन आवंटित करने में देर नहीं लगाई।
बी.वी. दोषी ने प्राचीन नालंदा के वास्तु को दर्शाते हुए पर्यावरण के अनुकूल वास्तुकला का डिजाइन तैयार किया है।
साथ ही विश्व मानकों से मेल खाने वाली सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस किया।
नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास
- विश्वविद्यालय का इतिहास से गहरा नाता है। लगभग 1600 साल पहले स्थापित मूल नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है।
- 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था।
- नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 427 ईस्वी में हुई थी। इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय कहा जाता है। एक समय में मध्य पूर्व एशिया के करीब 10 हजार छात्र और 2 हजार धर्माचार्य यहां रहकर अध्ययन करते थे।
- इसकी लाइब्रेरी में करीब 90 लाख किताबों का संग्रह था। मेडिसिन, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों के बारे में छात्र यहां अध्ययन करते थे।
- इस विश्वविद्यालय को ज्ञान को भंडार माना जाता रहा है। यहां धार्मिक ग्रंथों के अलावा लिट्रेचर, थियोलॉजी,लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे कई सब्जेक्ट पढ़ाया जाते थे।
- कहा जाता है कि उस दौर में जो सब्जेट यहां पढ़ाए जा रहे थे, वो कहीं भी नहीं पढ़ाए जा रहे थे।
स्थापना के बाद करीब 800 साल बाद तक दुनियाभर में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र बना रहा। - विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम को प्राप्त है।
- यह एक विशाल बौद्ध मठ का हिस्सा था और कहा जाता है कि इसकी सीमा करीब 57 एकड़ में थी।
19वीं सदी में चला पता
कई सदी तक ये विश्वविद्यालय जमीन में दबा हुआ था। 1812 में बिहार में लोकल लोगों को बौद्धिक मूर्तियां मिली थीं, जिसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों ने इस पर अध्ययन किया।
आधुनिक समय में इसके बारे में 19वीं शताब्दी के दौरान पता चला था।
विदेशों से आते थे विद्यार्थी?
- नालंदा विश्वविद्यालय में नागार्जुन, बुद्धपालिता, शांतरक्षिता और आर्यदेव जैसे महान शिक्षक पढ़ाते थे।
- दूसरी तरफ कई देशों से लोग यहां पढ़ने आते थे। चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग भी यहां से पढ़े हैं।
300 कमरें, 9 मंजिला लाइब्रेरी
- ये विश्वविद्यालय इतना विशाल था कि यहां 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष थे। यह कई एकड़ में फैला हुआ था।
- हर विषय के गहन अध्ययन के लिए 9 मंजिला लाइब्रेरी बनाई गई थी, जिसमें 90 लाख से ज्यादा किताबें रखी हुई थी
- बताया जाता है कि जब इसमें आग लगाई गई तो इसकी लाइब्रेरी 3 महीने तक जलती रही, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसमें कितनी किताबें रही होंगी।
क्या है विध्वंस की कहानी?
अपने 800 साल के लंबे सफर के बाद 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने एक हमले में नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया।
उसने अनेकों धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला और नालंदा विश्वविद्यालय को खंडहर बना डाला।
लेकिन अब 800 साल बाद ये दोबारा अपने ज्ञान के प्रकाश से दुनिया को रोशन करने के लिए तैयार है।
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