BJP CM in Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया है।
इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) अकेले 90 से अधिक सीटों पर जीत के साथ राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है।
यह पहली बार हुआ है जब भाजपा ने अपने दम पर सबसे अधिक सीटें हासिल की हैं।
इस जीत के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अब बिहार में पहली बार भाजपा का अपना मुख्यमंत्री बनेगा या एक बार फिर नीतीश कुमार ही सीएम की कुर्सी संभालेंगे?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा के ‘बिग ब्रदर’ बनने के बिहार की राजनीति पर गहरे असर होंगे।
बिना नीतीश के भी NDA को बहुमत
चुनाव परिणामों के मुताबिक, NDA बिना नीतीश कुमार की जदयू के भी बहुमत का आंकड़ा पार कर सकती है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो:
- भाजपा (BJP): 95 सीटें
- लोजपा (LJP) (चिराग पासवान): 20 सीटें
- हम (HAM) (जीतन राम मांझी): 5 सीटें
- रालोसपा (RLM) (उपेंद्र कुशवाहा): 4 सीटें
इन सभी दलों को मिलाकर NDA के पास 124 सीटें हैं, जबकि बहुमत के लिए जरूरी हैं केवल 122 सीटें।
इसका सीधा सा मतलब है कि NDA को जदयू की जरूरत संख्याबल के लिए नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा कांग्रेस, वामदलों और बसपा जैसे दलों के कुछ विधायकों को मनाकर अपनी स्थिति और मजबूत कर सकती है।
NDA की प्रचंड वापसी, 206 सीटों पर बढ़त
दोपहर 1 बजे तक के रुझानों के अनुसार, NDA कुल 206 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है।
इसमें भाजपा के 95, जदयू के 82 और उसकी अन्य सहयोगी पार्टियों की 29 सीटें शामिल हैं।
यह NDA के लिए एक जबरदस्त जीत है।
25 साल में तीसरी बार BJP सबसे बड़ी पार्टी
पिछले 25 वर्षों में यह तीसरा मौका है जब NDA के भीतर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
इससे पहले 2000 और 2020 के चुनावों में भी भाजपा नंबर वन पार्टी रही थी।
हालांकि, पिछले चार चुनावों में हर बार नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने हैं।
लेकिन जब-जब जदयू को कम सीटें मिली हैं, सरकार में भाजपा का दबदबा बढ़ा है।
BJP के ‘बिग ब्रदर’ बनने के 5 बड़े असर
राजनीतिक विश्लेषकों और वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी बनने के निम्नलिखित असर होंगे:
1. सीएम पद पर भाजपा की दावेदारी
वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी और अरविंद मोहन के अनुसार, इस बार सीएम की कुर्सी पर भाजपा काबिज हो सकती है।
भाजपा अब खुद को कमजोर स्थिति में नहीं देखना चाहेगी।
ऐसे में नीतीश कुमार के राजनीतिक संन्यास लेने की संभावना है।
2. जदयू को मिल सकता है डिप्टी सीएम का पद
अगर नीतीश कुमार सीएम बनते भी हैं, तो भी सरकार में भाजपा का ही दबदबा रहेगा।
जदयू को एक डिप्टी सीएम का पद मिल सकता है, लेकिन गृह, वित्त, स्वास्थ्य और राजस्व जैसे अहम विभाग भाजपा अपने पास रख सकती है।
3. अहम फैसले भाजपा के हाथ में
राज्य की नई नीतियां बनाना, बड़ी योजनाएं शुरू करना और विधानसभा में नए बिल लाने जैसे महत्वपूर्ण फैसले भाजपा द्वारा लिए जाएंगे।
4. दिल्ली का बढ़ेगा प्रभाव
बिहार सरकार के अहम फैसले दिल्ली में बैठे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा प्रभावित होंगे।
जैसा कि वक्फ बिल के मामले में देखने को मिला था, जहां जदयू ने केंद्र की मंशा के अनुरूप ही समर्थन दिया था।
5. केंद्र में भाजपा की स्थिति मजबूत
फिलहाल केंद्र में भाजपा अपने दम पर बहुमत में नहीं है और जदयू उसकी सहयोगी है।
बिहार में भाजपा के मजबूत होने से केंद्र सरकार में भी उसकी वार्ता शक्ति बढ़ेगी और सरकार चलाने में आसानी होगी।
हालांकि, सीएम पद नीतीश कुमार के पास ही रहेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, भाजपा ‘घातकी’ की बदनामी नहीं चाहेगी, लेकिन सरकार पर उसका पूर्ण नियंत्रण होगा।
2000 से अब तक का सफर: कब किसका रहा दबदबा?
1. 2000 विधानसभा चुनाव:
भाजपा 67 सीटों के साथ बड़ी पार्टी बनी, लेकिन केंद्र में भाजपा सरकार होने के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया।
हालांकि, वे बहुमत साबित नहीं कर पाए और सिर्फ 7 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा।
2. 2005 विधानसभा चुनाव (अक्टूबर):
जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और भाजपा के सुशील कुमार मोदी डिप्टी सीएम बने।
स्पीकर का पद भी जदयू को मिला। अहम विभाग जदयू के पास रहे।
3. 2010 विधानसभा चुनाव:
जदयू ने 115 सीटें जीतकर फिर बाजी मारी। नीतीश कुमार सीएम बने।
30 मंत्रियों की कैबिनेट में जदयू के 19 और भाजपा के 11 मंत्री शामिल थे।
4. 2015 विधानसभा चुनाव:
इस बार नीतीश कुमार महागठबंधन (RJD+कांग्रेस) के साथ थे और सीएम बने।
2017 में वे फिर से NDA में लौट आए।
5. 2020 विधानसभा चुनाव:
जदयू को महज 43 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा 74 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी।
इसके बावजूद नीतीश कुमार सीएम बने, लेकिन सरकार में भाजपा का दबदबा कायम हुआ।
भाजपा के दो डिप्टी सीएम बने और स्पीकर का पद भी उसे मिला।
क्या नीतीश महागठबंधन के साथ जा सकते हैं?
मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से, अगर नीतीश कुमार महागठबंधन (महागठबंधन) के साथ जाते हैं तो उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है।
- जदयू: 82
- राजद (RJD): 26
- कांग्रेस: 3
- लेफ्ट दल: 2
- अन्य: 6
- कुल: 119 सीटें (बहुमत से 3 कम)
यानी, महागठबंधन के साथ मिलकर भी नीतीश कुमार सरकार नहीं बना सकते।
इसलिए, उनके पास NDA के साथ बने रहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नजर नहीं आता।
मुख्यमंत्री पद को लेकर असमंजस की स्थिति
चुनाव से पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह के बयानों ने सीएम पद को लेकर असमंजस पैदा कर दिया था।
जून में उन्होंने कहा था कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
वहीं, 16 अक्टूबर को उन्होंने कहा कि “मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह विधायक दल तय करेगा।”
हालांकि, विवाद बढ़ने के बाद 1 नवंबर को उन्होंने सफाई देते हुए स्पष्ट किया कि “नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री हैं और चुनाव जीतने के बाद भी वही रहेंगे।”
लेकिन नतीजों के बाद का समीकरण अब पूरी तरह बदल गया है।
बिहार की राजनीति में यह एक ऐतिहासिक मोड़ है। भाजपा अब सहयोगी दलों पर निर्भर न रहकर खुद मजबूती से खड़ी है।
ऐसे में वह मुख्यमंत्री पद पर दावा जताने की मजबूत स्थिति में है।
अगले कुछ दिनों में NDA की बैठकों में जो फैसला होगा, वह बिहार के भविष्य की दिशा तय करेगा।
फिलहाल, नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत एक अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है।


