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CAA: पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र सरकार का बड़ा फैसला

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

CAA New Rules भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर एक बहुत बड़ा और अहम फैसला लिया है।

इस फैसले के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को बहुत बड़ी राहत मिलेगी।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में जारी एक आदेश में कहा है कि इन देशों से 31 दिसंबर 2024 तक भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के लोग बिना पासपोर्ट या वीजा के भारत में रह सकेंगे और उन्हें नागरिकता के लिए आवेदन करने का मौका मिलेगा।

पहले क्या नियम था?

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को साल 2019 में संसद से पास किया गया था।

इसका मुख्य उद्देश्य पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए गैर-मुस्लिमों को भारत में नागरिकता देना था।

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हालांकि, इस कानून में एक ‘कट-ऑफ डेट’ (अंतिम तिथि) तय की गई थी।

इसके मुताबिक, सिर्फ वही लोग आवेदन कर सकते थे जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे।

इस तारीख के बाद आए लोगों के लिए नागरिकता का रास्ता बंद था और वे पासपोर्ट/वीजा न होने के कारण अवैध प्रवासी भी माने जा सकते थे।

नए नियम में क्या बदलाव हुआ?

गृह मंत्रालय ने ‘इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट, 2025’ के तहत एक नया आदेश जारी किया है।

इस आदेश के मुताबिक, नागरिकता के लिए आवेदन करने की कट-ऑफ डेट को 31 दिसंबर 2014 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2024 कर दिया गया है।

यानी अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2024 तक भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे।

सबसे बड़ी राहत: पासपोर्ट और वीजा से छूट

नए आदेश की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन देशों से आए उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को पासपोर्ट और वीजा के सख्त नियमों से छूट दी गई है।

अक्सर, उत्पीड़न से बचकर भागने वाले लोगों के पास कोई वैध यात्रा दस्तावेज नहीं होते।

नए नियम के तहत, अगर कोई व्यक्ति 31 दिसंबर 2024 से पहले धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आया है, तो भले ही उसके पास पासपोर्ट या वीजा न हो, उसे भारत में रहने की अनुमति होगी और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

इससे हजारों लोगों को, विशेषकर पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों को, जो 2014 के बाद आए थे, बहुत राहत मिलेगी।

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किनके लिए है यह छूट?

ह छूट सिर्फ तीन पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश) से आए छह समुदायों—हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई—के लोगों के लिए है। यह छूट उन लोगों पर लागू होती है जो धार्मिक उत्पीड़न या उसके डर के कारण भारत आए हैं।

किनके लिए नहीं है यह छूट?

सरकार ने इस छूट के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी रखी हैं। निम्नलिखित मामलों में शामिल लोग इसका लाभ नहीं उठा सकेंगे:

  • आतंकवाद
  • जासूसी
  • हत्या
  • बलात्कार
  • मानव तस्करी
  • नशीली दवाओं की तस्करी
  • बाल दुर्व्यवहार
  • साइबर अपराध
  • क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े गैर-कानूनी धंधे (ऐसे किसी भी अपराध में दोषी पाए गए व्यक्ति को इस छूट से वंचित रखा जाएगा।)

नेपाल और भूटान के नागरिकों के लिए क्या नियम हैं?

गृह मंत्रालय के आदेश में नेपाल और भूटान के नागरिकों के लिए भी स्पष्टता दी गई है।

  • अगर कोई नेपाली या भूटानी नागरिक भारत की सीमा से सीधे प्रवेश करता है, तो उसे भारत में आने-जाने या रहने के लिए पासपोर्ट या वीजा की आवश्यकता नहीं होगी। यह पुराना नियम ज्यों का त्यों बरकरार है।
  • हालांकि, अगर कोई नेपाली या भूटानी नागरिक चीन, मकाऊ, हांगकांग या पाकिस्तान के रास्ते भारत आता है, तो उसके पास मान्य पासपोर्ट होना अनिवार्य होगा।
  • इसी तरह, भारतीय नागरिकों को भी नेपाल या भूटान की सीमा से आने-जाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर वे किसी अन्य देश (चीन, मकाऊ, हांगकांग और पाकिस्तान को छोड़कर) से लौटते हैं, तो उन्हें पासपोर्ट दिखाना होगा।
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सैन्य कर्मियों के लिए विशेष प्रावधान

भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के कर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों (अगर वे सरकारी परिवहन से यात्रा कर रहे हैं) के लिए पासपोर्ट या वीजा की कोई आवश्यकता नहीं होगी, चाहे वे ड्यूटी पर भारत से बाहर जा रहे हों या वापस आ रहे हों।

केंद्र सरकार का यह फैसला पड़ोसी देशों में धार्मिक अत्याचार सह रहे अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक मानवीय कदम है।

इससे उन हजारों लोगों को कानूनी सुरक्षा मिलेगी जो पिछले एक दशक में भारत आए थे और बिना दस्तावेजों के अनिश्चित जीवन जी रहे थे।

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