छत्तीसगढ़ः 2019 में जारी प्रमोशन में आरक्षण के नोटिफिकेशन को बिलासपुर हाईकोर्ट ने किया निरस्त

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Manish Kumar
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रायपुर। सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए एक बड़ी खबर है। प्रमोशन में आरक्षण मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा 22 अक्टूबर 2019 को जारी किए एक नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया है।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी किए इस नोटिफिकेशन में प्रथम से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने की बात कही गई थी जिसमें अनुसूचित जाति (SC) के लिए 13 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 32 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।

इस नोटिफिकेशन में स्पष्ट किया गया था कि यह आरक्षण प्रथम श्रेणी के पदों से प्रथम श्रेणी के उच्च वेतनमान के पदों पर पदोन्नति होने, द्वितीय श्रेणी के पदों से प्रथम श्रेणी के पदों पर पदोन्नति और तृतीय श्रेणी के पदों पर पदोन्नत होने पर दिया जाएगा।

राज्य सरकार के इस अधिसूचना के खिलाफ रायपुर के एस संतोष कुमार ने अधिवक्ता योगेश्वर शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए जनहित याचिका लगाई थी।

राज्य शासन के प्रमोशन पर आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में पहली जनहित याचिका दायर करके मांग की गई थी कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आरक्षण नियम के विपरीत है। साथ ही राज्य शासन द्वारा जारी किए गए नोटिफिकेशन को निरस्त करने की मांग की गई थी।

अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की डबल बेंच ने प्रमोशन में आरक्षण के मामले में 2019 की राज्य सरकार के आदेश को पूरी तरह से निरस्त कर दिया है। इससे पहले हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाई थी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डबल बेंच ने याचिका का निराकरण करते हुए अपने फैसले में कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने आदेश को लागू करने में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्देशों का पालन नहीं किया था।

इसमें कहा गया है कि प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए हर विभाग से जातिगत डाटा एकत्रित कर केवल जिन्हें जरूरत है उन्हीं SC/ST कर्मचारियों को इसका लाभ दिया जाना चाहिए जबकि डाटा कलेक्ट करने का काम पूर्ववर्ती सरकार ने नहीं किया था।

बता दें कि, प्रमोशन में आरक्षण मामले पर कुछ दिनों पहले हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा आरक्षण पर लगी रोक के आदेश में संशोधन या फिर उसे रद्द करने की मांग खारिज कर दी थी। मामले पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और एनके चंद्रवंशी की डबल बेंच ने ही अपना फैसला सुनाया था।

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