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भारत में महिला पत्रकारों के साथ भेदभाव: तालिबान मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एंट्री न मिलने पर विपक्ष ने उठाए सवाल

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Taliban Minister Woman Journalist: अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के भारत दौरे ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है।

शुक्रवार को हुई उनकी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को एंट्री से रोके जाने के फैसले ने राजनीतिक घमासान मचा दिया है।

विपक्षी नेताओं ने इस घटना को “हर भारतीय महिला का अपमान” बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सफाई मांगी है।

दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने अपने आप को इस पूरे मामले से अलग करते हुए स्पष्ट किया है कि इस निर्णय में उसकी कोई भूमिका नहीं थी।

क्या था पूरा मामला?

अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी 9 से 16 अक्टूबर तक सात दिनों के भारत दौरे पर हैं।

इस दौरान शुक्रवार को उन्होंने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की।

इस मुलाकात में द्विपक्षीय व्यापार, मानवीय सहायता और सुरक्षा सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।

मीटिंग के बाद कोई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं हुई, बल्कि मुत्तकी ने अलग से अफगानिस्तान दूतावास में एक मीडिया इंटरैक्शन किया।

महिला पत्रकारों को नहीं मिली एंट्री

यहीं से विवाद शुरू हुआ। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक भी महिला पत्रकार को शामिल नहीं होने दिया गया।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुत्तकी के साथ आए तालिबान अधिकारियों ने ही तय किया था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसे बुलाया जाएगा।

नतीजा यह हुआ कि केवल चुनिंदा पुरुष पत्रकार और अफगान दूतावास के अधिकारी ही वहां मौजूद रहे।

कई महिला पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर शिकायत की कि उन्हें प्रवेश ही नहीं दिया गया।

विदेश मंत्रालय (MEA) ने क्या कहा?

विवाद गर्म होने पर भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने सफाई दी।

MEA ने स्पष्ट किया कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस अफगान दूतावास में आयोजित की गई थी और इसे अफगानिस्तान के मुंबई स्थित काउंसिल जनरल ने आयोजित किया था।

मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि पत्रकारों को बुलाने या प्रवेश देने का निर्णय पूरी तरह से आयोजकों का था और भारत सरकार का इस मामले में कोई हस्तक्षेप या भूमिका नहीं थी।

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MEA के अनुसार, अफगान दूतावास भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

विपक्ष का हमला: ‘महिलाओं का अपमान, PM की चुप्पी खोखले दावे’

विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला है।

प्रियंका गांधी

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी से सवाल किया।

उन्होंने ट्वीट कर पूछा, “प्रधानमंत्री मोदी जी, कृपया स्पष्ट करें कि तालिबान मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को क्यों हटाया गया? क्या आपके महिला अधिकारों के दावे सिर्फ चुनावी नारे हैं?”

उन्होंने आगे लिखा कि भारत की कुछ सबसे सक्षम महिलाओं का इस तरह अपमान होने दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।

राहुल गांधी

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि जब PM मोदी महिला पत्रकारों को सार्वजनिक मंचों से बाहर रखने की इजाजत देते हैं, तो वे भारत की हर महिला को यह संदेश दे रहे हैं कि वे उनके लिए खड़े नहीं हो सकते।

उन्होंने कहा कि इस तरह के भेदभाव पर चुप्पी ‘नारी शक्ति’ के नारों की खोखलीपन को उजागर करती है।

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पी. चिदंबरम

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने हैरानी जताई कि महिला पत्रकारों को बाहर रखा गया।

उन्होंने एक महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहा, “मुझे लगता है कि जब पुरुष पत्रकारों को पता चला कि उनकी महिला सहकर्मियों को नहीं बुलाया गया है, तो उन्हें तुरंत विरोध स्वरूप वॉकआउट करना चाहिए था।”

महुआ मोइत्रा

तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस घटना को “हर भारतीय महिला का अपमान” करार दिया।

उन्होंने एक तीखा ट्वीट कर कहा, “सरकार ने तालिबान मंत्री को महिला पत्रकारों को बाहर रखने की अनुमति देकर देश की हर महिला का अपमान किया है। यह शर्मनाक और रीढ़विहीन कदम है।”

उन्होंने भारतीय मुसलमानों पर लगने वाले प्रतिबंधों और तालिबान मंत्री को दी गई छूट के बीच विरोधाभास भी दिखाया।

सोशल मीडिया पर उठे सवाल, पत्रकारिता की आजादी पर चिंता

यह मामला सोशल मीडिया पर तुरंत ट्रेंड हो गया।

#Taliban, #WomenJournalists, #IndiaAfghanistan जैसे हैशटैग के साथ यूजर्स ने अपना गुस्सा जाहिर किया।

ज्यादातर लोगों ने इस फैसले को पत्रकारिता की स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों पर हमला बताया।

कई यूजर्स ने पी. चिदंबरम के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि पुरुष पत्रकारों को विरोध में प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़ देनी चाहिए थी।

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तालिबान का महिला-विरोधी रिकॉर्ड

इस घटना ने तालिबान के लिंग आधारित भेदभावपूर्ण रवैये पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है।

अफगानिस्तान पर अगस्त 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद से, वहां की महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को लगातार कुचला गया है।

लड़कियों को सेकेंडरी स्कूल जाने से रोका गया है, महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर अकेले यात्रा करने पर पाबंदी है, और उनके काम करने तथा शिक्षा हासिल करने के अधिकारों पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए हैं।

इस पृष्ठभूमि में, भारत की राजधानी में महिला पत्रकारों के साथ हुआ यह व्यवहार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान की सोच को एक बार फिर उजागर कर गया।

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कूटनीति बनाम मूल्यों का सवाल

आमिर खान मुत्तकी का भारत दौरा दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक कूटनीतिक कदम माना जा रहा था। हालांकि, प्रेस कॉन्फ्रेंस में हुई यह घटना एक बड़ा सवाल खड़ा कर गई है।

सवाल यह है कि कूटनीतिक संबंधों को बढ़ावा देते समय क्या देश को अपने मूलभूत लोकतांत्रिक मूल्यों और लैंगिक समानता के सिद्धांतों से समझौता करना चाहिए?

भारत सरकार ने इस मामले में अपनी भूमिका से इनकार कर दिया है, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि भारत की धरती पर ऐसा भेदभाव होने देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी थी।

यह मामला दर्शाता है कि तालिबान के साथ कूटनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाना भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए कितनी बड़ी चुनौती है।

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