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UPSC में लेटरल एंट्री की भर्ती रद्द, जानें क्या है सीधे IAS बनाने का सिस्टम

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UPSC Lateral Entry : UPSC (Union Public Service Commission) ने 17 अगस्त को लेटरल एंट्री भर्ती के लिए 45 पोस्ट पर वैकेंसी निकाली थी।

केंद्र सरकार के फैसले के बाद इस आदेश को रद्द कर दिया गया है।

लेकिन UPSC में लेटरल एंट्री से जुड़ा विवाद अभी क्यों शुरू हुआ है ?

क्यों लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर RSS के लोगों की भर्ती कराने का आरोप लगाया ?

आईए समझते हैं UPSC में लेटरल एंट्री क्या है और इसके लिए BJP या कांग्रेस कौन जिम्मेदार है ?

UPSC में लेटरल एंट्री से नियुक्ति का आदेश रद्द

लेटरल एंट्री की 45 वैकेंसी का विज्ञापन निकालने के तीसरे दिन UPSC पीछे हट गई।

17 अगस्त को जारी विज्ञापन में जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर जैसे बड़े सरकारी पदों पर भर्ती की जानी थी।

ये पहली बार होता जब इतनी बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र के लोगों को सरकार के सीनियर पदों पर रखा जाता।

कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC के चेयरमैन प्रीति सुदन को पत्र लिखकर यह वैकेंसी रद्द करने के निर्देश दिए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर यह फैसला बदला गया है।

UPSC में लेटरल एंट्री से जुड़ा विवाद क्यों शुरू हुआ

इस वैकेंसी का राहुल गांधी ने भी विरोध किया था। इसके बाद से ही लेटरल एंट्री को लेकर विवाद शुरू हो गया।

राहुल ने कहा था- लेटरल एंट्री के जरिए खुलेआम SC-ST और OBC वर्ग का हक छीना जा रहा है।

मोदी सरकार RSS वालों की लोकसेवकों में भर्ती कर रही है।

इस पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पलटवार करते हुए कहा है कि UPSC में लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट कांग्रेस सरकार का है।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को लेटरल एंट्री के जरिए ही 1976 में फाइनेंस सेक्रेटरी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया को योजना आयोग का उपाध्यक्ष और सोनिया गांधी को नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (NAC) चीफ बनाया गया।

पहले की सरकारों में लेटरल एंट्री फॉर्मल सिस्टम नहीं था।

पीएम मोदी ने UPSC को नियम बनाने का अधिकार देकर लेटरल एंट्री सिस्टम को व्यवस्थित बनाया है।

क्या होती है UPSC में लेटरल एंट्री

UPSC में लेटरल एंट्री का मतलब प्राइवेट क्षेत्र के लोगों की सरकार के बड़े पदों पर सीधी भर्ती से है।

लेटरल एंट्री के जरिए सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक या उप-सचिव पदों के लिए भर्ती होती है।

इससे 2 फायदे होते हैं, पहला तो प्रशासन में एक्सपर्ट्स शामिल हो जाते हैं और दूसरा ये कि प्रतिस्पर्धा बनी रहती है।

बता दे किसी भी सरकारी विभाग में सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद संयुक्त सचिव का पद तीसरा सबसे बड़ा और ताकतवर पद है।

संयुक्त सचिव अपने विभाग में प्रशासनिक प्रमुख के रूप में काम करते हैं। ये वो पद है जहां से किसी विभाग में फैसला लेने की प्रक्रिया शुरू होती है।

फिर निदेशक संयुक्त सचिव से एक रैंक नीचे होता है और उप-सचिव निदेशक से एक रैंक नीचे होता है।

लेटरल एंट्री की वैकेंसी में आरक्षण लागू होगा या नहीं

वहीं UPSC में लेटरल एंट्री की वैकेंसी में आरक्षण लागू होता है या नहीं इसको लेकर दोनों तरह की बातें सामने आती है।

कुछ का कहना है कि UPSC के जरिए निकाली गई वैकेंसी में आरक्षण के वहीं नियम लागू होंगे जो UPSC की किसी भी दूसरी परीक्षाओं में लागू होते है।

वहीं कुछ रिपोर्ट के मुताबिक इसमें रिजर्वेशन लागू नहीं होगा।

भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने एक RTI जवाब में कहा है कि सरकारी नौकरियों में 13 रोस्टर पॉइंट के जरिए रिजर्वेशन लागू होता है।

रोस्टर सिस्टम के मुताबिक सरकारी नौकरी में हर चौथा पद OBC, हर सातवां पद SC, हर चौदहवां पद ST और हर 10वां पद EWS के लिए रिजर्व होना चाहिए।

इस बार निकली वैकेंसी पर इस हिसाब 6 SC, 3 ST, 12 OBC और 4 EWS के लिए पद रिजर्व होना चाहिए।

सरकार ने कानूनी टेक्निकल वजहों का लाभ उठाते हुए अलग-अलग विभागों से 3 से कम पदों के लिए ये विज्ञापन जारी किए थे।

हालांकि 3 से कम पदों पर भर्ती के लिए रिजर्वेशन लागू नहीं होता है। इसलिए इसमें रिजर्वेशन लागू नहीं हो सकता है।

लेटरल एंट्री के जरिए पहली भर्ती

2018 में पहली बार लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती की शुरुआत हुई।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशक जैसी सीनियर पोस्ट के लिए आवेदन मांगे थे।

उस दौरान 9 विभागों में 9 लोगों की नियुक्ति हुई थी। इसके लिए 6 हजार आवेदन आए थे।

9 अगस्त 2024 को भारत सरकार ने बताया कि पिछले 5 साल में लेटरल एंट्री से 63 नियुक्तियां हुईं, जिसमें 57 अधिकारी अब भी काम कर रहे हैं।

भले की पहली भर्ती 2018 में हुई हो लेकिन इससे पहले फरवरी 2017 में ही नीति आयोग ने 3 साल के लिए एक एक्शन प्लान तैयार कर लिया था।

जिसके तहत केंद्रीय सचिवालय में प्राइवेट क्षेत्र के अनुभवी लोगों को बहाल करने का सुझाव दिया गया।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लेटरल एंट्री से 3 साल के लिए कांट्रैक्ट बेसिस पर भर्ती हो।

जिसे बाद में 2 और साल के लिए बढ़ाकर 5 साल किया जा सकता है।

नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 साल से कम आयु होनी चाहिए और वह अनिवार्य रूप से एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हो।

इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों की सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त की जाती है।

BJP क्यों कह रही है ये कांग्रेस की देन है ?

जब UPSC में लेटरल एंट्री के जरिए पहली भर्ती 2018 में हुई तो BJP क्यों कह रही कि ये कांग्रेस की देन है ?

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का कहना है कि 1976 में मनमोहन सिंह भी लेटरल एंट्री के जरिए ही फाइनेंस सेक्रेटरी बने थे।

इतना ही नहीं सोनिया गांधी को नेशनल एडवाइजरी काउंसिल का प्रमुख बनाया गया था।

वहीं कांग्रेस का कहना है कि 2005 में UPA सरकार ने सरकारी नौकरियों में रिफॉर्म के लिए एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म कमीशन यानी ARC बनाया था।

इसका नेतृत्व वीरप्पा मोइली ने किया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हर सरकारी विभागों में उस क्षेत्र के एक्सपर्ट्स लोगों की भर्ती होनी चाहिए।

लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिए एक भी भर्ती नहीं की थी।

बता दें कि 1966 में भी मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था।

हालांकि, आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी।

इसके बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिए भरा जाने लगा।

क्या OBC, SC-ST का हक मारा जा रहा है ?

क्या आरक्षण की वजह से मोदी सरकार पीछे हटी है और फैसला बदला गया है ?

इस पूरे विवाद पर कांग्रेस का कहना है कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार के सबसे बड़े पदों पर भर्ती होती है।

सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन लागू करना सरकार का दायित्व है।

जिन 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए वैकेंसी निकली है, उसके विज्ञापन में रिजर्वेशन शब्द का जिक्र तक नहीं है।

लेकिन इस पर बीजेपी का तर्क है कि सरकार सभी विभागों और मंत्रालयों में रिजर्वेशन के तहत नौकरी दे रही है।

कांग्रेस सरकार के सुझावों के आधार पर ही मोदी सरकार ट्रांसपेरेंसी के साथ लेटरल एंट्री के जरिए अधिकारियों को बहाल करती है।

बता दें सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सभी सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन लागू होना संवैधानिक तौर पर जरूरी है।

हालांकि, रोस्टर सिस्टम के तहत कुछ नौकरियां रिजर्वेशन के दायरे से बाहर हो जाती हैं।

क्या हैं लेटरल एंट्री की खामियां

लेटरल एंट्री उच्च प्रशासनिक पदों पर शॉर्टकट भर्ती का तरीका है।

इस हाई लेवल भर्ती प्रक्रिया में सामाजिक न्याय के संविधानिक प्रावधानों का खुलेआम तोड़ा जाता है।

कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का उदाहरण बन सकता है: किसी निजी कंपनी से अगर कोई व्यक्ति सरकारी अधिकारी बनेगा तो उसे पता होगा कि 3 साल या 5 साल बाद उसे वापस उसी कंपनी में जाना है।

ऐसे में सरकार के ताकतवर पदों पर रहते हुए वो अधिकारी अपने हितों में काम कर सकता है।

इस तरह लेटरल एंट्री के कई मामलों में कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का उदाहरण भी बनेगा।

सामाजिक न्याय के लिए बनाए गए कुछ संवैधानिक प्रावधान का भी लेटरल एंट्री उल्लंघन करता है।

यह सिविल सेवा की तैयारी कर रहे करोड़ों युवाओं को हतोत्साहित करने वाली नीति है।

इससे नौजवान अधिकारियों और तैयारी कर रहे छात्रों का मोटिवेशन घटेगा।

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