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निर्मला सीतारमण के खिलाफ FIR का ऑर्डर, ये है वो मामला जो बना वित्त मंत्री के लिए मुसीबत

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FIR Against Nirmala Sitharaman: केंद्रीय वित्त मंत्री के खिलाफ बेंगलुरु की एक स्पेशल कोर्ट ने FIR दर्ज करने का आदेश दिया है।

कोर्ट के इस फैसले के बाद कांग्रेस ने निर्मला सीतारमण से इस्तीफे की मांग की है।

निर्मला सीतारमण के खिलाफ FIR का आदेश

बेंगलुरु की पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव कोर्ट ने देश की केंद्रीय वित्त मंत्री के खिलाफ याचिका पर एक्शन लेते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।

जनाधिकार संघर्ष परिषद (JSP) के आदर्श अय्यर ने बेंगलुरु में शिकायत दर्ज कर मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की थी।

याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने बेंगलुरु के तिलक नगर पुलिस स्टेशन को FIR दर्ज करने का आदेश दिया है।

हालांकि अभी इस मामले की सुनवाई को 10 अक्टूबर तक के लिए स्थगित किया गया है।

लेकिन, ये मामला कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले देश की केंद्रीय मंत्री के खिलाफ मुद्दा बन सकता है।

कांग्रेस ने की निर्मला सीतारण से इस्तीफे की मांग

इधर खबर के सामने आने के बाद कांग्रेस ने भाजपा पर हमलावर रुख अपना लिया है। है।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से इस्तीफे की मांग की है और कहा कि इसमें बड़ा घोटाला हुआ है।

सोशल मीडिया एक्स पर की गई पोस्ट में सीएम सिद्धारमैया ने लिखा कि कर्नाटक भाजपा के नेता निर्मला सीतारमण के इस्तीफे के लिए कब प्रदर्शन और मार्च करेंगे।

अगर निष्पक्ष जांच होती है, तो PM मोदी और कुमारस्वामी को भी इस्तीफा देना चाहिए।

वित्त मंत्री पर पैंसे ऐंठने का आरोप

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए जबरन वसूली का आरोप लगा है।

जनाधिकार संघर्ष परिषद ने अप्रैल में 42वीं ACMM कोर्ट में दायर याचिका में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, ED अधिकारियों, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं, तत्कालीन भाजपा कर्नाटक अध्यक्ष नलिन कुमार कटील, बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ शिकायत की थी।

शिकायत में कहा गया है कि अप्रैल 2019 से अगस्त 2022 तक व्यवसायी अनिल अग्रवाल की फर्म से लगभग 230 करोड़ रुपए और अरबिंदो फार्मेसी से 49 करोड़ रुपए चुनावी बॉन्ड के जरिए वसूले गए।

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वित्त मंत्री ने कहा था स्कीम वापस लाएंगे

लोकसभा चुनाव से पहले वित्त मंत्री ने बॉन्ड स्कीम को दोबारा लाने का संकेत दिया था।

निर्मला सीतारमण ने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर हम सत्ता में आए तो इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फिर से वापस लाएंगे।

इसके लिए पहले बड़े स्तर पर सुझाव लिए जाएंगे।

हालांकि, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने उनके इस बयान पर कहा था अब BJP लोगों को और कितना लूटना चाहती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था यह स्कीम असंवैधानिक

15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी।

तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था यह स्कीम असंवैधानिक है, यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

कोर्ट ने SBI और चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा पूरा डेटा सार्वजनिक करें।

21 मार्च को डेटा सामने आया, इसमें पता चला था कि 2018 से 2023 तक देश की 771 कंपनियों ने 11,484 करोड़ के बॉन्ड खरीदे थे।

ट्रेडिंग कंपनियों ने सबसे ज्यादा 2955 करोड़ रुपए सियासी दलों को दिए।

डेटा सार्वजनिक होने के बाद जुलाई 2024 में भी कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों के बीच लेन-देन की जांच SIT से करवाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी।

ऐसे हुई थी इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत

2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था।

अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी और ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा।

2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया।

दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

बता दे इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं।

इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है, ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा।

इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है, बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।

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