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स्तन पकड़ना और पायजामे का नाड़ा तोड़ना रेप की कोशिश नहीं, हैरान कर देगा इलाहाबाद HC का ये फैसला

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Allahabad HC Verdict: प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग के स्तन पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे जबरन खींचने की कोशिश करना दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।

कोर्ट ने इस मामले में जारी समन को संशोधित करते हुए आरोपियों पर पॉक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) और आईपीसी की धारा 354-B (निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया है।

जानें क्या है पूरा मामला ?

यह घटना उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र की है।

पीड़िता की मां द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार 10 नवंबर 2021 को शाम 5 बजे उसकी 14 वर्षीय बेटी को तीन आरोपियों – पवन, आकाश और अशोक ने घर छोड़ने के बहाने अपनी बाइक पर बैठा लिया।

रास्ते में एक पुलिया के पास आरोपियों ने कथित रूप से पीड़िता के स्तन पकड़े और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया।

इसके बाद वे उसे पुलिया के नीचे खींचने लगे, लेकिन पीड़िता की चीख-पुकार सुनकर राहगीर इकट्ठा हो गए, जिससे आरोपी वहां से भाग निकले।

घटना के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (दुष्कर्म के प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया और निचली अदालत ने इन्हीं धाराओं में समन जारी किया था।

हाईकोर्ट ने सुनाया चौंकाने वाला फैसला

आरोपियों ने निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।

इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा कि स्तन पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और खींचने की घटना को दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

हाईकोर्ट ने कहा कि इन हरकतों को देखने के बाद यह स्पष्ट नहीं होता कि यह दुष्कर्म की मंशा से किया गया कृत्य था।

इसलिए, आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं बनता, लेकिन यह गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।

कोर्ट ने निचली अदालत के समन को संशोधित करने का निर्देश देते हुए आईपीसी की धारा 354-B और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 के तहत मुकदमा चलाने को कहा।

कोर्ट के फैसले पर उठ रहे सवाल

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब निचली अदालत में आरोपियों पर दुष्कर्म के प्रयास के बजाय छेड़खानी और गंभीर यौन उत्पीड़न के तहत मुकदमा चलेगा।

दूसरी ओर इस फैसले को लेकर बहस भी शुरू हो गई है।

महिला अधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के फैसले से यौन अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई में ढील आ सकती है और आरोपी बच सकते हैं।

वहीं कुछ कानूनी जानकारों का मानना है कि कोर्ट ने कानून की सही व्याख्या की है और जो कृत्य हुआ, उसे उसी के अनुरूप सजा मिलनी चाहिए।

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