नई दिल्ली/पटना। बिहार की पलटू पॉलिटिक्स एक बार फिर गरमा गई है। सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार पलटी मार आरजेडी का साथ छोड़ बीजेपी के साथ हो लिए हैं। नीतीश कुमार राजनीति की इंजीनियरिंग बखूबी जानते हैं। इसके बाद सवाल ये है कि क्या वे बीजेपी के लिए जरूरी हैं या फिर मजबूरी बन गए हैं। या फिर नीतीश खुद मोदी-शाह की राजनीति में फंस गए हैं।
आपको याद दिला दें कि 2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था तो नीतीश कुमार नाराज होकर एनडीए से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ छोड़ कर आरजेडी से साथ चले गए थे और 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में जेडीयू औंधे मुंह गिरी थी, लेकिन 2017 में नीतीश ने फिर पलटी मार एनडीए का रुख किया।
2022 आया तो फिर वे आरजेडी के साथ चले गए। अब 2024 में फिर लोकसभा चुनाव आने वाले हैं। नीतीश ये अच्छी तरह जानते हैं कि वर्तमान में राजनीति की हवा का रुख किस तरफ है। देश में राम लहर है इसलिए उन्होंने फिर पलटी मार ली। इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि जब-जब जेडीयू एनडीए में रही उसे लोकसभा चुनाव में फायदा मिला।
जेडीयू के लिए एनडीए फायदेमंद
- 2009 – एनडीए में रहते 20 सांसद
- 2014 – एनडीए से बाहर हुए 18 का नुकसान 02 पर आए
- 2019 – एनडीए में रहते 16 सांसद
- बीजेपी के साथ रहकर नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने रहना चाहते हैं
- ओपिनियन पोल 2023 के सर्वे में बताया गया कि यदि जेडीयू महागठबंधन में रहता है तो लोकसभा चुनाव में उसे नुकसान होगा
ऐसा नहीं है कि एनडीए में रहते जेडीयू को हमेशा फायदा ही होता है। एनडीए में रहते जब-जब जेडीयू ने विधानसभा चुनाव लड़ा उसकी सीटें कम होती गईं। अब सवाल ये है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश क्या करेंगे। क्या एनडीए में ही रहेंगे या फिर पलटी मारेंगे।
क्या बीजेपी के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ना मजबूरी होगी। अगर बीजेपी चुनाव नहीं लड़ी तो नीतीश कुमार दोबारा से आरजेडी के साथ जा सकते हैं इसलिए नीतीश जब भी चाहेंगे, उनके लिए दोनों ओर दरवाजा खुले रहेंगे।
नीतीश के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गए हैं, ऐसा कहने वाली बीजेपी की आखिर क्या मजबूरी है जो नीतीश कुमार को गठबंधन में वापस लिया गया।
पहला कारण – इंडी गठबंधन को निष्प्रभावी करना
28 विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के प्लेटफॉर्म पर लाने के सूत्रधार नीतीश कुमार रहे हैं। इससे उन्हें अलग कर पूरे देश में यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले बीजेपी और एनडीए के मुकाबले विपक्ष पूरी तरह से बिखर चुका है।
दूसरा कारण – बिहार की सभी 40 सीटें जरूरी
बीजेपी 2024 का लोकसभा चुनाव ‘तीसरी बार, 400 पार’ के नारे के साथ लड़ रही है। इस मिशन को पूरा करने के लिए बिहार की सभी 40 सीटें जरूरी हैं।
तीसरा कारण – ‘जंगल राज’ की आशंका का डर खत्म
बिहार में लालू-विरोधी राजनीति में कथित ‘जंगल राज’ का भय एक बहुत बड़ा सियासी मुद्दा रहा है। बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार को साथ लाकर वह लोगों के मन से ‘जंगल राज’ की आशंका को पूरी तरह से दूर कर सकती है।
चौथा कारण – नीतीश कुमार का जनाधार
नीतीश कुमार भले ही कुर्मी जाति से हों लेकिन उन्होंने खुद को गैर-यादव वाली पिछड़ी राजनीति में शीर्ष राजनेता के तौर पर स्थापित किया है। जातिगत जनगणना करवाने की वजह से उन्होंने देश में भी खुद को एक प्रभावी ओबीसी चेहरे के तौर पर कायम किया है जिसका फायदा बीजेपी उठाना चाहती है।
बिहार में लालू यादव की आरजेडी मुस्लिम-यादवों की पार्टी मानी जाती है। अब बीजेपी नीतीश के कंधे पर बंदूक रख आरजेडी को रोकना चाहती है। सवाल ये भी है कि इस पुराने राजनीतिक गठजोड़ के बाद अब इंडी गठबंधन का क्या होगा।