Holashtak 2025 Start: 7 मार्च 2025 से होलाष्टक की शुरुआत हो चुकी है। इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाएगा, क्योंकि इस समय को अशुभ माना जाता है।
लेकिन क्या आपको पता है ऐसा क्यों होता है और ये परंपरा कब से शुरू हुई।
इस आर्टिकल में हम जानेंगे होलाष्टक का मतलब, इस दौरान किए जाने वाले शुभ-अशुभ काम और इसकी प्राचीन कथा।
क्यों कहते हैं होलाष्टक
होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका मतलब होता है होली के आठ दिन।
होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक रहता है।
अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है।
होलाष्टक शुरू होने के साथ ही होलिका दहन और होली की तैयारियां शुरू हो जाती है।

होलाष्टक को क्यों मानते हैं अशुभ
होलाष्टक को लेकर शिव पुराण में कथा है जिसके अनुसार, तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह होने जरुरी थी।
क्योंकि, असुर का वध शिव पुत्र के हाथ से होना था। लेकिन, देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन थे।
सभी देवताओं ने भगवान शिव को तपस्या से जगाना चाहा। इस काम के लिए कामदेव और देवी रति को बुलाया गया।
कामदेव और रति ने शिवजी की तपस्या को भंग कर दिया और जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया।
जिस दिन भगवान शिव से कामदेव को भस्म किया उस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी।
इसके बाद सभी देवताओं ने रति के साथ मिलकर भगवान शिव से क्षमा मांगी।
भगवान शिव को मनाने में सभी को आठ दिन का समय लग गया।
इसके बाद भगवान शिव ने कामदेव को जीवित होने का आशीर्वाद दिया।
इसी वजह से इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है।

होलाष्टक के दौरान क्यों नहीं होते शुभ काम
होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं, इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है।
होलाष्टक के दौरान मौसम के परिवर्तन के कारण मन अशांत, उदास और चंचल रहता है।
इस दौरान मन से किए हुए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं होते हैं। इसलिए जैसे ही होलाष्टक समाप्त होता है, लोग होली खेलकर खुशियां मनाते हैं।
प्रहलाद और होलिका से जुड़ी है कथा
पुराने समय में होलाष्टक शुरू होते ही होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी।
साथ ही वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था। जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।
माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है। क्योंकि होलिका दहन के दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी, जिसमें वो भस्म हो गई।
जब प्रहलाद को नारायण भक्ति से विमुख करने के सभी उपाय निष्फल होने लगे तो, हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को इसी तिथि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया और मृत्यु हेतु तरह तरह की यातनाएं देने लगे, किन्तु प्रहलाद विचलित नहीं हुए।

होलाष्टक में कौन-कौन से कार्य वर्जित?
होलाष्टक के दौरान किए गए शुभ कार्यों से पारिवारिक कलह, धन हानि और बीमारी का भय बढ़ जाता है।
- इस दौरान नया मकान, चल-अचल सम्पत्ति जैसे गहने और गाड़ी नहीं खरीदना चाहिए।
- इस दौरान मकान का निर्माण भी नहीं शुरू करना चाहिए।
- होलाष्टक के आठ दिनों में हवन और यज्ञ पर भी रोक लग जाती है।
- होलाष्टक के दौरान बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए।
- इस दौरान विवाह, मुंडन संस्कार, नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश आदि शुभ काम भी नहीं करना चाहिए।
- इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- इस अवधि में तामसिक भोजन जैसे – लहसुन, प्याज, अंडा और मांस आदि का सेवन करने से बचना चाहिए।
- इस अवधि के दौरान विवाद करने से बचना चाहिए।
- इस दौरान नौकरी बदलना भी सही नहीं माना गया है और न ही कोई नई नौकरी ज्वाइन करना चाहिए।
होलाष्टक के दौरान क्या करें
- इन दिनों में धार्मिक कार्य से जुड़े रहना चाहिए।
- इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
- इस अवधि में भगवत गीता का पाठ जरूर करना चाहिए।
- इस दौरान घर और मंदिर को प्रतिदिन साफ करना चाहिए।
- होलाष्टक में हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम और महामृत्युंजय का जाप करें। इससे घर में शांति और सकारात्मक ऊर्जा आती है।
- गरीबों को अन्न, अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। ऐसा करने से जीवन में समृद्धि आती।
- इस समय पितरों का तर्पण कर सकते हैं। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
- ग्रह शांति के लिए पूजा करवा सकते हैं। इससे पीड़ा देने वाले ग्रहों से शांति मिलती है।