अब भाजपा के उम्मीदवार शंकर लालवानी के सामने कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी नहीं बचा है। सोमवार की सुबह अक्षय बम भाजपा विधायक रमेश मेंदोला के साथ फॉर्म वापस लेने आए थे।
बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग सुप्रीम कोर्ट में खारिज, EVM-VVPAT पर्ची का मिलान भी नहीं होगा; सुप्रीम कोर्ट बोला सिस्टम में दखल से बेवजह शक पैदा होगा।
त्रिपुरा में सबसे ज्यादा तकरीबन 79.66% तो उत्तर प्रदेश मे सबसे कम 54.85% के आसपास मतदान हुआ। वहीं, महाराष्ट्र में 59.63% और बिहार में 57.81% वोटिंग हुई। 2019 के आम चुनावों में इन सीटों पर 70.05% मतदान हुआ था।
पहले चरण के मतदान के पश्चात विंध्य-महाकौशल में कुछ ऐसे सवाल हवाओं में तैर रहे हैं। क्या यह कम वोटिंग बीजेपी के प्रतिकूल जाएगी? क्या इसके लिए कांग्रेस से बीजेपी में आई दलबदलुओं की भीड़ जिम्मेदार है? ये वोटिंग ट्रेंड किसके पक्ष में जाएगा? यही सबसे बड़ा सवाल है जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
कुल जमा चुनाव में एक दूसरे को घेरने और तोहमत लगाकर वोटर्स को रिझाने का ये सिलसिला सियासत में नया नहीं है, लेकिन मोदी के हालिया बयान ने इस सियासत की रिवायत को नई हवा दे दिया है, कहना गलत नहीं होगा।
कांग्रेस आलाकमान से हुई बातचीत से नाराज चल रहे रामनिवास रावत की नाराजगी दूर हो गई है और वे सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के चुनाव प्रचार के लिए राजगढ़ भी पहुंच गए।
ये वो बागी हैं जो खुलकर बीजेपी और कांग्रेस को चुनौती दे रहे हैं। इसके अलावा भी दोनों दलों में ऐसे छुपे रुस्तम मौजूद हैं जो टिकट ना मिलने से असंतुष्ट हैं। चुनाव में ये भी भितरघाती का किरदार निभा रहे हैं, लेकिन कोई कितना ही दम लगा ले। जनता-जनार्दन जिस प्रत्याशी पर भरोसा जताएगी विजय उसकी होगी।
शादी के सीजन से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी क्यों परेशान हैं, चुनाव आयोग भी चिंतित है क्या, 'शुभ मंगल सावधान' कैसे चुनाव को प्रभावित कर रहा है। देखिए ये खास रिपोर्ट...
देश में आजादी के बाद राजशाही तो नहीं रही, लेकिन राजघरानों का दबदबा सामाजिक तौर के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी कायम है। लोकसभा चुनाव 2024 में ही उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक बीजेपी और कांग्रेस के टिकट पर राजे रजवाड़ों के वारिस चुनाव में ताल ठोक रहे हैं।
सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार पलटी मार आरजेडी का साथ छोड़ बीजेपी के साथ हो लिए हैं। नीतीश कुमार राजनीति की इंजीनियरिंग बखूबी जानते हैं। इसके बाद सवाल ये है कि क्या वे बीजेपी के लिए जरूरी हैं या फिर मजबूरी बन गए हैं। या फिर नीतीश खुद मोदी-शाह की राजनीति में फंस गए हैं।
बीजेपी सत्ताधारी दल है। लिहाजा उसके प्रिस्क्रिप्शन यानि वही संकल्प पत्र जिसपर सबकी निगाहें खास तौर पर होती है, वो तैयार है और इसका उनवान (शीर्षक) है भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी।
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