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मोक्षदा एकादशी 2025: इसी दिन श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी गीता, जानें पौराणिक कथा और महत्व

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Mokshada Ekadashi 2025 हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है, और मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी मोक्षदा एकादशी को इनमें से एक सबसे पवित्र और फलदायी तिथि माना जाता है।

यह व्रत मनुष्य के सभी पापों को नष्ट करके उसे मोक्ष यानी मुक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है।

इस वर्ष 2025 में, मोक्षदा एकादशी का यह शुभ व्रत 1 दिसंबर, सोमवार को रखा जाएगा।

इस दिन का एक और महत्व है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का अमर ज्ञान दिया था।

इसीलिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।

मोक्षदा एकादशी 2025: शुभ मुहूर्त और तिथि

द्रिक पंचांग के अनुसार, मोक्षदा एकादशी तिथि का समय इस प्रकार रहेगा:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 30 नवंबर 2025, रविवार, शाम 04 बजकर 30 मिनट से
  • एकादशी तिथि समाप्त: 1 दिसंबर 2025, सोमवार, दोपहर 02 बजकर 20 मिनट तक

चूंकि एकादशी तिथि 1 दिसंबर की सुबह को उदयकाल में प्रभावी है, इसलिए व्रत 1 दिसंबर को ही रखा जाएगा।

इस बार इस पावन दिन पर रेवती नक्षत्र और व्यतिपात योग का दुर्लभ और अत्यंत शुभ संयोग बन रहा है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, यह संयोग भक्तों के द्वारा किए गए अच्छे कर्मों और पूजा-पाठ के पुण्य फल को हजार गुना तक बढ़ा देता है।

मोक्षदा एकादशी का धार्मिक महत्व

मोक्षदा एकादशी को वैष्णव समुदाय के लिए साल के सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है।

पद्म पुराण में इस व्रत के महत्व को विस्तार से बताया गया है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत रखने, भगवान विष्णु का पूजन करने और दान-पुण्य करने से भक्त के सारे पाप धुल जाते हैं और मृत्यु के बाद उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

यह एकादशी पितृ मोक्ष का भी पर्व है।

मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पितरों (पूर्वजों) को नरक के कष्टों से मुक्ति मिलकर स्वर्ग या मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इसलिए जो लोग अपने पूर्वजों की शांति के लिए कर्म करना चाहते हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत फलदायी होता है।

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा: राजा वैखानस और उनके पितरों की मुक्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में गोकुल नगर में वैखानस नामक एक धर्मात्मा राजा रहते थे।

वे प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे और सब सुखी-समृद्ध थे।

एक रात राजा ने स्वप्न में देखा कि उनके पिता नरक लोक में अनेक प्रकार के कष्ट भोग रहे हैं।

यह देखकर राजा बहुत दुखी हुए और इसका कारण व उपाय जानने के लिए उन्होंने राज्य के विद्वान ब्राह्मणों और ऋषियों को बुलाया।

तब पर्वत मुनि नामक एक ज्ञानी ऋषि ने राजा को बताया, “हे राजन! आपके पिता ने अपने जीवन में कुछ पाप कर्म किए थे, जिनके कारण उन्हें नरक की प्राप्ति हुई है।

इसका एक ही उपाय है। आप आगामी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं, का विधिपूर्वक व्रत करें।

इस व्रत के पुण्य के प्रभाव से आपके पिता सभी कष्टों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होंगे।”

राजा वैखानस ने ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए पूरी श्रद्धा के साथ मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा।

इस व्रत के पुण्य प्रताप से उनके पिता को नरक के बंधनों से मुक्ति मिल गई और उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

तभी से यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसे पापों का नाश करने वाली तथा मोक्ष प्रदान करने वाली माना जाने लगा।

मोक्षदा एकादशी पर पूजन की सरल विधि

  1. स्नान एवं शुद्धि: एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में (सूर्योदय से पहले) उठकर गंगाजल या तिल मिले पानी से स्नान करें। स्वच्छ श्वेत या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: घर के मंदिर या पूजा स्थल को स्वच्छ करें और एक स्वच्छ आसन बिछाएं।
  3. भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें। पंचोपचार पूजा विधि से उनकी पूजा करें। इसमें गंध (चंदन), पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें।
  4. तुलसी दल है अत्यंत महत्वपूर्ण: भगवान विष्णु को तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं, क्योंकि तुलसी उन्हें अत्यंत प्रिय है।
  5. व्रत एवं जप: दिनभर निराहार रहकर या फलाहार लेकर व्रत रखें। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें या ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करें। भजन-कीर्तन करते रहें।
  6. दान-पुण्य: इस दिन यथाशक्ति दान करने का विशेष महत्व है। अनाज, वस्त्र, फल या दक्षिणा दान करनी चाहिए।
  7. पारण (व्रत तोड़ना): व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि के दौरान सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण के समय पहले भगवान को भोग लगाकर फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
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